ज्योति तिवारी : ” शुक्ला जी की बड़ी बेटी से मुलाकात हुई। मैंने पूछा,” क्यों भाई तुम खुद ही अपने पापा से दहेज़ मांग रही हो ?बड़ी मासूमियत से बोली ,”आप ही बताईये ऐसे हमको कुछ मिलेगा क्या? सम्पत्ति सब भाई को जाएगी और वैसे भी बचपन से आज तक जब भी कुछ माँगा यही सुनने को मिला कि शादी में देंगे।”
“हम्म मतलब दहेज़ तुमसे माँगा नहीं गया कभी ससुराल में। ” मैंने पूछा।
“नहीं वो तो बस गिफ़्ट दिखाते हैं कि क्या मिला,अरे जैसे बाजार से शॉपिंग करते हैं और घर आकर दिखाते हैं एक दूसरे को ना ,वैसे ही मायके से आती हूँ तो सबको शान से दिखाती हूँ। कुछ महंगा मिला हो तो अपनी साख ऊँची रहती है। ”
“सही बात है। ” मैंने व्यग्यात्मक लहजे में कहा ,सारा खेल तो साख का ही है। अच्छा तो तुम्हारे हिसाब से दहेज़ एक्ट क्या है फिर ?”
वो तपाक से बोली,” वो तो ससुराल वालों और पति को काबू में रखने का तरीका है, ज़रा भी कुछ कहे तो सीधे दहेज़ एक्ट की धमकी दे दो काम ख़तम। हम औरतों का जीवन ही ऐसा है, क्या करे मजबूरी है। ”
“हाँ काफी मजबूर टाइप लगती भी हो तुम। ” मैंने कहा (क्रमशः ) ……..
#दहेजकीमार्मिककथा