कुमार गिरीश : हर ग्रामीण की मनपसंद स्वीट डिश हमारे दैनिक भोजन में शामिल थी हर वार त्यौहार पर खीर के साथ चूरमा बनता था सफर के लिए जाना तो चूरमा
सावन में सहस्र घट के बाद भोजन में चूरमा बाटी कड़ी दाल, बारीश में चूरमा की गोठ।
अब समझा कि महान बुजुर्गों ने कैसे दैनिक भोजन में औषध विज्ञान शामिल कर रखा है
दरअसल दुनिया में दो ही झगड़े हैं अच्छा और बुरा या कहिए जोड़ा है इनमे संतुलन तो दुनिया सही चलती है असंतुलन तो व्यवस्था चौपट
शरीर भी छोटी दुनिया है और इसमें संतुलन आवश्यक है जीवाणुओं का यानी प्री एंड प्रोबायोटिक का इनकी कमी तो शरीर का संतुलन खराब और अधिक्ता तो शरीर टनाटन
लेकिन यो लाभदायक जीवाणु नमक और अम्ल की अधिक्ता में नष्ट हो जाते है और बैड बैक्टीरिया की ग्रोथ होती है जिससे शरीर में एसिड तथा कार्बनडाइऑक्साइड का स्तर बढता है तथा मीठे और वसा के मिश्रण में खूब फलते फूलते हैं इसलिए हमारी दैनिक जीवन में शामिल हुआ चूरमा जो वसा फाइबर और मीठे का जबरदस्त मिश्रण है जिसमें प्री एंड प्रोबायोटिक का जबरदस्त संवर्धन होता है
ये प्री एंड प्रोबायोटिक ही आपके मुख से लेकर पूरे पाचन तंत्र को सुचारू रूप से चलाने और किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाने का काम करते हैं चूरमे मे मौजूद घृत आपकी आंतों को सुरक्षित और चिकना रखता है जिससे कब्ज जैसे समस्या का निदान होता है साफ चिकनी आंत मतलब स्वस्थ युवा त्वचा भोजन का अच्छे से पचाने और साफ आंतों से शरीर में शुद्ध रक्त का निर्माण होता है ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा शरीर की हर कोशिका तक पहुंचती है जिससे शरीर युवा निरोग बलवान बना रहता है पाचनतंत्र के रक्षक सफाई कर्मी और पोषक इन जीवाणुओं का जीवन है चचौपट
चूर में में मौजूद गुड कालेस्ट्राल तथा भरपूर फाइबर आपकी रक्त धमनियों को साफ और लचीला रखता है ट्राईग्लिसराइड और बैड कालेस्ट्राल को नियंत्रित कर हृदय को बलवान बनाने में सफल भूमिका निभाता है
(लेकिन आजकल बूरा मिलाते हैं)
मुंह गले पेट लीवर और आंतों के कैंसर की रोकथाम करने में चूरमे से कारगर कुछ ना है यदि ये गौघृत से बना हो तो सोने पर सुहागा।
हाँ घी होना चाहिए बटरऑयल (डेयरी) नहीं
तो अब देर कैसी.. बनाओ चूरमा,