हिंदू धर्म की कोई भी पूजा बिना चरणामृत के पूरी नहीं होती है मगर काफी कम लोग ही इसके महत्व के बारे में जानते होंगे। बताता हूँ चरणामृत का महत्व:-
पंचामृत(चरणामृत) का अर्थ होता है पांच अमृत यानी पांच पवित्र वस्तुओं दूध, दही, तुलसी, घी, शहद, शक्कर या खाँड या आजकल चीनी(नये गन्ने के रस से बनी मीठी वस्तु का महत्व है) और गंगा जल से मिलकर बनता है। –
पंचामृत का प्रथम भाग दूध है, जो शुभ्रता का प्रतीक है अर्थात जीवन में दूध की तरह निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं।
दही का गुण है दूसरों को अपने जैसा बनाना। यानी पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं और फिर दूसरों को भी अपने जैसा बनाएं। –
घी प्रतीक है स्नेह का। सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हो, यही भावना हो। –
शहद बेहद शक्तिशाली होता है। कमजोर व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है। –
शक्कर का गुण है मिठास। यानी सबसे मीठा बोल कर मधुर व्यवहार बनाएं। –
श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर इस अमृत का सेवन करने से इंसान में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। –
चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए ताकि वो आपको स्थिर कर सके। (हमारे शरीर का दायाँ भाग मस्तिष्क के दो पाटो के बायें भाग से संचालित होता है जो सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह के लिये जिम्मेदार है)
चरणामृत का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं, चिकित्सकीय भी है
चरणामृत जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाना चाहिए। (पित्तशामक होता है व शरद ऋतु में पडने वाली दीपावली में पित्त का संचय होता है)
ताम्र पात्र में रखे जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते व इसमे डले तुलसी पत्ता,शहद,गौ घ्रत या गौ दुग्ध,दही व गँगा जल(हिमालय की अनेक औश्धियों के गुण को अपने अंदर समाहित किये होता है)से इसके गुणो में गुनात्मक वृद्धि होती है
विशेश – एक आदत के अनुसार सभी को चरण अमृत पीकर अपने सिर पर हाथ फिराने की आदत होती है जो गलत है क्योंकि पूजन के बाद प्रवाहित सकारात्मक ऊर्जा जो हमारे शरीर का आभा मँडल आकर्षित करने की कोशिश करता है बाधित हो जाता है व हम और भी अधिक नाकारात्मक विचारों की ओर प्रवेश कर सकते हैं_