श्री मोहन भागवत जी का उत्तर
हिन्दुत्व, हिन्दूनेस, हिन्दुईज्म ये गलत शब्द हैं क्योंकि ईजम एक बंद चीज मानी जाती है। ये कोई ईजम नहीं है, यह एक प्रक्रिया है जो चलती रहती है। गांधी जी ने कहा कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिन्दुत्व है। राधाकृष्ण जी का एक बहुत सुंदर कोट है, मेरे पास नहीं है इसलिए मैं नहीं बताऊँगा। लेकिन एक उसका चरण है कि हिन्दुत्व एक प्रोसेस है। सतत् चलने वाली प्रक्रिया है। मोस्ट डायनामिक है और उसमें सबका योगदान है जो भारत में हो गए विचारक। इसलिए हिन्दुत्व को हिन्दुईज्म नहीं कहना चाहिए। ऐसा मेरा मानना है और अन्य मत पंथों के साथ तालमेल कर सकने वाली एकमात्र विचारधारा, ये भारत की विचारधारा है, हिन्दुत्व की विचारधारा। क्योंकि तालमेल का आधार मूल एकत्व, प्रकार विविध है और विविध होना आवश्यम्भावी है। क्योंकि प्रकृति विविधता को लेकर चलती है, विविधता ये भेद नहीं है, विविधता ये साज-सज्जा है, प्रकृति का शृंगार है, ऐसा संदेश देने वाला और संदेश यानी थ्योराइजेशन के आधार पर नहीं अनुभूति के आधार पर देने वाला एकमात्र देश हमारा देश है। और इसलिए हिन्दुत्व ही है जो सबके तालमेल का आधार बन सकता है। जनजातीय समाज भी हिन्दू है। कल मैंने जिस राष्ट्रीयता का वर्णन किया। हमारी कल्पना का। उस अर्थ में जनजातीय समाज भी हिन्दू है। भारत में रहने वाले सब लोग हिन्दू ही हैं। पहचान की दृष्टि से, राष्ट्रीयता की दृष्टि से। ये कुछ लोग जानते हैं, गर्व से कहते हैं, कुछ लोग जानते हैं, गर्व नहीं अनुभवता है, इतना कहते हैं। कुछ लोग जानते हैं लेकिन अन्य किसी बात के कारण कहने में संकोच करते हैं और कुछ लोग नहीं जानते हैं इसलिए नहीं कहते हैं।
मैं तो कहता हूं कि भारत कि ये जो प्राचीन विचारधारा अब तक चली आ रही है और अन्यान्य रूपों में सर्वत्र प्रकट हो गई है। उन रूपों में इतनी विविधता है कि कई रूप एक-दूसरे के विरोधी भी लगते हैं। लेकिन वो एक समान मूल्यबोध लेकर चलने वाली विचारधारा है। उस मूल्यबोध का प्रारंभ हमारे जनजातियों के बंधुओं के जीवन से और कृषकों के जीवन से प्रारंभ हुआ है। इस अर्थ में तो ये हमारे पूर्वज हैं। ऐसे ही उनको देखना चाहिए और उनकी सारी स्थितियों का, समस्याओं का विचार करना चाहिए। ये सब अपने हैं। भारत में कोई पराया नहीं, परायापन हमने निर्माण किया है। हमारी परंपरा ने नहीं, वो तो एकता ही सिखाती है।