रोहित गौतम, चंडीगढ़ : बेल्जियम में सन् 1909 में जन्मे कामिल बुल्के जी बेल्जियम में कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद जब ईसाई मिशनरियों के सम्पर्क में आए तो उन्होंने चर्च की धार्मिक शिक्षा प्राप्त की । ध्यान देने की बात है कि जब चर्च से उन्हें भारत में ईसाइयत के प्रसार या कहें धर्मान्तरण के लिए अध्यापक बनाकर दार्जिलिंग और बिहार भेजा गया तो वे ईसाई बनाना तो दूर स्वयम् फादर से बाबा हो गए । यहाँ उन्हें भारतीय धर्म, संस्कृति, भाषा तथा दर्शन का अध्ययन करने का अवसर मिला ।
निर्धन तथा अशिक्षित हिन्दुओं को छल-बल और लालच से ईसाई बनाने का काम उन्हें निरर्थक लगने लगा और अंततः उन्होंने सदा के लिए भारत को ही अपनी कर्मभूमि बनाने का निश्चय कर लिया। उन्होंने बेल्जियम की नागरिकता छोड़ कर पूरी तरह भारतीय बनकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में सहयोग देने लगे ।
वे फ्रेंच, अंग्रेजी, फ्लेमिश,
हिन्दी तथा अंग्रेजी में उन्होंने 29 पुस्तक, 60 शोध निबन्ध तथा 100 से अधिक लघु निबन्ध लिखे। उनका हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश आज भी एक मानक ग्रन्थ माना जाता है। 1974 में भारत सरकार ने उन्हें‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया।
(इस लेख को लिखने में हर दिन पावन नामक वेबसाइट से जानकारी ली गयी है)