भारतीय गाय का अर्थ शास्त्र……..हर इंसान को ज़ीने के लिए कम से कम 3 चीजों की जरूरत है. हवा, पानी और खाना.
स्वच्छ हवा रही नहीं (पेट्रोल, डीज़ल),
पीने का पानी मुफ्त मिलता नहीं शुद्धता की बात तो अलग है (रासायनिक खेती, ग्लोबल वार्मिंग, गिरता पानी का स्तर),
खाने में भी जहर आ चूका है (रासायनिक खेती से भी और मिलावट करने वाले मुनाफाखोरी से भी).
भारत इन तीनों समस्या से जूझ रहा है.
भारत की कुछ प्रमुख समस्याएँ :-
1. किसानों की आत्महत्या. (कारण हर चीज बाहर से खरीदना रासायनिक खेती में, जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, ट्रैक्टर और उपज के समय मंडी में भाव न मिलना.)
2. बढ़ती महंगाई. (कारण पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)
3. गिरती अर्थव्यवस्था. (घर की जगह विदेशी से प्यार किसी भी वजह से)
4. बढ़ती गरीबी. (बढ़ती महंगाई, पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)
5. बिजली की कमी.
6. पानी की कमी.
इन सबका एक मुख्य कारण है,
सब कुछ बाहर से खरीदना जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, दवाइयां, पेट्रोल, गैस.
आप इसको इस तरह समझिये, की आपने अपने घर में खाना बनाया तो खाना कितना सस्ता पड़ता है, और जब आप रोज बाहर से खाना खरीदोगे तो खाना कितना महंगा पड़ेगा. रोज रोज बाहर से खरीदना मतलब अपनी सेहत भी खराब करना और पैसे भी लुटाना.
इसी तरह भारत सरकार अपने देश में मौजूद पशुधन का इस्तेमाल न करके, जब पेट्रोल, खाद, कीटनाशक, गैस इत्यादि बाहर से रोज रोज खरीदेगी तो देश का रुपया सुधारने से तो रहा, उल्टा गर्द में ही जायेगा.
आजादी के समय भारत का रुपया 1 अमरीकन डालर के बराबर था. 1988 में भी उदारीकरण की नीतिओ से पहले तक भारत का रुपया 1 डालर के मुकाबले 8 रुपया था. यानी 41 साल आजादी में 8 गुना गिरावट और उदारीकरण के माहौल में 25 सालों में 8 गुना गिरावट से रुपया 62 रुपये प्रति डालर रह गया. उदारीकरण माने भारत ने अपने बाजार को खोल दिया, और हर चीज विदेशी यहाँ आकर बिकने लगी. नतीजा आपके सामने है. 1917 तक भारत डालर के मुकाबले 10 गुना मजबूत था माने 1 रुपया 10 डालर के बराबर था. आजादी के इन 66 सालों में हमारी कौन सी सरकार ने किस के लिए क्या काम किया, यह सोचने का विषय है. भारत के लिए कुछ किया ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा. अभी भी देर नहीं हुई है.
1. गैस, पेट्रोल और बिजली
मीथेन गैस का उत्पादन ही तेल के बढ़ते दामों का सही जवाब और विकल्प है. आज नहीं तो कल तेल के भण्डार खली हो ही जायेंगे, तब भी हमको मीथेन गैस के उत्पादन की तरफ ही आना पड़ेगा. मीथेन गैस बनती है जैविक कचरे से अथवा पशु के गोबर से जैसे देसी गाय का गोबर. भारत जैसे विकासशील देशों को चाहिए की वह मीथेन गैस का उत्पादन करके अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करें.
भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन 50 करोड़ का है, जो 25 करोड़ टन का गोबर उत्पादन करता है. इसको इस्तेमाल करके हम न सिर्फ रसोई गैस, बल्कि पेट्रोल में भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं. LPG, केरोसिन, पेट्रोल इन तीनों को पूरी तरह से मीथेन गैस से हटाया जा सकता है. मीथेन गैस से बिजली भी बनती है जो की भारत के सारे गाँवों की बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. मीथेन गैस बनने के बाद जो गोबर बचेगा वह खेती के लिए एक उपयुक्त खाद का भी काम करेगा जो कि रासायनिक फर्टिलाइजर पर भारत का खर्च होने वाला विदेशी मुद्रा को भी बचाएगा.
उत्तर प्रदेश में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन ने स्थापित किया है की एक गाय एक साल में पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करने के लिए गोबर देती है. कैलोरी मान तालिका में एक किलो मीथेन गैस, एक किलो पेट्रोल, रसोई गैस, मिट्टी का तेल या डीज़ल के लिए बराबर ऊर्जा सामग्री में है.
रसोई गैस आम तौर पर मिट्टी का तेल ग्रामीण भारत में मुख्य ईंधन है, जबकि शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी प्रयोग किया जाता है. एक 15 किलो एलपीजी सिलेंडर छह लोगों के एक परिवार के लिए दो महीने तक रहता है. यही बात मिट्टी के तेल के लिए सच है. पूरे एलपीजी और मिट्टी के तेल की हमारे 121 करोड़ की आबादी की आवश्यकता को 9.2 करोड़ गायों के गोबर से उत्पादित मीथेन गैस पूरी करा सकती हैं.
सीएनजी की तरह, मीथेन गैस पेट्रोल की जगह में ऑटोमोबाइल इंजन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हमारा पेट्रोल की खपत (2003-04) में आठ लाख टन था. एक गाय पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस पैदा करता है. इस धारणा पर, हमें पेट्रोल की आठ करोड़ टन जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 4 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. अगर अब 2012-2013 में पेट्रोल की खपत 5 गुना (40 लाख टन ) भी हो गयी हो तो भी 20 करोड़ गाय ही इसके लिए काफी हैं.
बिजली एक जनरेटर 200 ग्राम पेट्रोल लेकर एक किलोवाट / घंटे (kWh) विद्युत ऊर्जा का उत्पादन
हर इंसान को ज़ीने के लिए कम से कम 3 चीजों की जरूरत है. हवा, पानी और खाना.
स्वच्छ हवा रही नहीं (पेट्रोल, डीज़ल),
पीने का पानी मुफ्त मिलता नहीं शुद्धता की बात तो अलग है (रासायनिक खेती, ग्लोबल वार्मिंग, गिरता पानी का स्तर),
खाने में भी जहर आ चूका है (रासायनिक खेती से भी और मिलावट करने वाले मुनाफाखोरी से भी).
भारत इन तीनों समस्या से जूझ रहा है.
भारत की कुछ प्रमुख समस्याएँ :-
1. किसानों की आत्महत्या. (कारण हर चीज बाहर से खरीदना रासायनिक खेती में, जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, ट्रैक्टर और उपज के समय मंडी में भाव न मिलना.)
2. बढ़ती महंगाई. (कारण पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)
3. गिरती अर्थव्यवस्था. (घर की जगह विदेशी से प्यार किसी भी वजह से)
4. बढ़ती गरीबी. (बढ़ती महंगाई, पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)
5. बिजली की कमी.
6. पानी की कमी.
इन सबका एक मुख्य कारण है,
सब कुछ बाहर से खरीदना जैसे बीज, खाद, कीट नाशक, दवाइयां, पेट्रोल, गैस.
आप इसको इस तरह समझिये, की आपने अपने घर में खाना बनाया तो खाना कितना सस्ता पड़ता है, और जब आप रोज बाहर से खाना खरीदोगे तो खाना कितना महंगा पड़ेगा. रोज रोज बाहर से खरीदना मतलब अपनी सेहत भी खराब करना और पैसे भी लुटाना.
इसी तरह भारत सरकार अपने देश में मौजूद पशुधन का इस्तेमाल न करके, जब पेट्रोल, खाद, कीटनाशक, गैस इत्यादि बाहर से रोज रोज खरीदेगी तो देश का रुपया सुधारने से तो रहा, उल्टा गर्द में ही जायेगा.
आजादी के समय भारत का रुपया 1 अमरीकन डालर के बराबर था. 1988 में भी उदारीकरण की नीतिओ से पहले तक भारत का रुपया 1 डालर के मुकाबले 8 रुपया था. यानी 41 साल आजादी में 8 गुना गिरावट और उदारीकरण के माहौल में 25 सालों में 8 गुना गिरावट से रुपया 62 रुपये प्रति डालर रह गया. उदारीकरण माने भारत ने अपने बाजार को खोल दिया, और हर चीज विदेशी यहाँ आकर बिकने लगी. नतीजा आपके सामने है. 1917 तक भारत डालर के मुकाबले 10 गुना मजबूत था माने 1 रुपया 10 डालर के बराबर था. आजादी के इन 66 सालों में हमारी कौन सी सरकार ने किस के लिए क्या काम किया, यह सोचने का विषय है. भारत के लिए कुछ किया ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा. अभी भी देर नहीं हुई है.
1. गैस, पेट्रोल और बिजली
मीथेन गैस का उत्पादन ही तेल के बढ़ते दामों का सही जवाब और विकल्प है. आज नहीं तो कल तेल के भण्डार खली हो ही जायेंगे, तब भी हमको मीथेन गैस के उत्पादन की तरफ ही आना पड़ेगा. मीथेन गैस बनती है जैविक कचरे से अथवा पशु के गोबर से जैसे देसी गाय का गोबर. भारत जैसे विकासशील देशों को चाहिए की वह मीथेन गैस का उत्पादन करके अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करें.
भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन 50 करोड़ का है, जो 25 करोड़ टन का गोबर उत्पादन करता है. इसको इस्तेमाल करके हम न सिर्फ रसोई गैस, बल्कि पेट्रोल में भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं. LPG, केरोसिन, पेट्रोल इन तीनों को पूरी तरह से मीथेन गैस से हटाया जा सकता है. मीथेन गैस से बिजली भी बनती है जो की भारत के सारे गाँवों की बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. मीथेन गैस बनने के बाद जो गोबर बचेगा वह खेती के लिए एक उपयुक्त खाद का भी काम करेगा जो कि रासायनिक फर्टिलाइजर पर भारत का खर्च होने वाला विदेशी मुद्रा को भी बचाएगा.
उत्तर प्रदेश में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन ने स्थापित किया है की एक गाय एक साल में पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करने के लिए गोबर देती है. कैलोरी मान तालिका में एक किलो मीथेन गैस, एक किलो पेट्रोल, रसोई गैस, मिट्टी का तेल या डीज़ल के लिए बराबर ऊर्जा सामग्री में है.
रसोई गैस आम तौर पर मिट्टी का तेल ग्रामीण भारत में मुख्य ईंधन है, जबकि शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी प्रयोग किया जाता है. एक 15 किलो एलपीजी सिलेंडर छह लोगों के एक परिवार के लिए दो महीने तक रहता है. यही बात मिट्टी के तेल के लिए सच है. पूरे एलपीजी और मिट्टी के तेल की हमारे 121 करोड़ की आबादी की आवश्यकता को 9.2 करोड़ गायों के गोबर से उत्पादित मीथेन गैस पूरी करा सकती हैं.
सीएनजी की तरह, मीथेन गैस पेट्रोल की जगह में ऑटोमोबाइल इंजन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हमारा पेट्रोल की खपत (2003-04) में आठ लाख टन था. एक गाय पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस पैदा करता है. इस धारणा पर, हमें पेट्रोल की आठ करोड़ टन जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 4 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. अगर अब 2012-2013 में पेट्रोल की खपत 5 गुना (40 लाख टन ) भी हो गयी हो तो भी 20 करोड़ गाय ही इसके लिए काफी हैं.
बिजली एक जनरेटर 200 ग्राम पेट्रोल लेकर एक किलोवाट / घंटे (kWh) विद्युत ऊर्जा का उत्पादन