स्नेहा अग्रवाल : मित्रो हमारे यहां कुछ शतकों से ब्राम्हणों को समाज के शत्रु के स्वरुप में देखा जाने लगा है।वामपंथी और बुद्धिस्ट समाज ने तो मानो ब्राम्हणों को किसी दैत्य के समान बताया है जैसे की ब्राम्हण ही सकल समस्याओं का द्योतक है।अपनी कार्यहीनता और और आलस्य तथा प्रमाद को ब्राम्हणी अत्याचार का चोला पहना कर सदैव ये लोग स्वयं को एक भ्रम में रखते आए है।और कई प्रश्न तथा टिका टिप्पणियां करते आए है।
मित्रो ऐसे ही कुछ प्रश्नों और टीकाओं में एक टिका ऐसी होती है कि ब्राम्हण दान पर क्यों जीता है,क्या यह कर्महीनता का प्रकार नही?
परन्तु मित्रो,यह सर्वथा अज्ञान तथा मूर्खता वश किये हुए प्रश्न है। जो व्यक्ति गूढ़ता से अध्ययन करता है वो व्यक्ति ऐसे आधारहीन प्रश्न नही करते।
मित्रो हमारे यहां ब्राम्हणों को देवताओं का दर्जा दिया जाता था इसका एक नही अनेक कारण थे ।
हमारे यहां स्थापित वर्ण व्यवस्था कर अनुसार प्रत्येक वर्ण का व्यक्ति अपने वर्ण के अनुसार ही कार्य करे और उसके भी कुछ नियम हुआ करते थे।उनमें ब्राम्हणों के लिए अत्यंत कठोर नियम हुआ करते थे। संध्योपासना, वेदाध्ययन, कठोर व्रत नियम,इन्द्रिय निग्रह,शौच (स्वच्छता),सत्यभाषण और ज्ञान का दान। इस प्रकार के कठोर नियम हुआ करते थे और दंडविधान के अनुसार भी ब्राम्हणों को दंड स्वरूप अत्यंत कठोर नियम थे।
ब्राम्हणों को स्वच्छ रहना सबसे प्रथम और मुख्य नियम था जिनमे वर्षा हो चाहे शीत ऋतु उन्हें हर पूजा और संध्या के समय मे स्नान करना आवश्यक होता था।साथ ही वेद,उपनिषदों और मोटे मोटे ग्रंथो का अध्ययन करना उनके एक एक वाक्य को समझना , पाठान्तर करना स्मरण रखना और वही ज्ञान लोगो को बांटना एक अध्ययनकर्ता से अध्यापक तक कि भूमिका निभाना।और साथ ही हमारे यहां शिक्षा का व्यापार करना महापातक माना जाता था और ब्राह्मण केवल ज्ञानदान और पूजन आदि पर ही अपना जीवनयापन करने बाध्य हुआ करता था अन्य कोई व्यापार तथा उद्योग करना ब्राम्हणों के लिए नही था। और यह भी नीम था कि पूजन आदि कर्म और वेदों की शिक्षा दान करने पर आपको जो दक्षिणा स्वेच्छा से यजमान देता है उसी से अपना उदरनिर्वाह करना होगा।और केवल 5 घरों में भिक्षा मांग कर ही आपको भोजन करना होगा और इन पांच घरों में भी आपको कुछ ना मिले तो भी आप छठा घर याचना करने के हेतु देखने का भी अधिकार नही रखते थे।
वेद विद्या के दान के लिए जिसका जन्म हुआ है वो अन्य उद्योग करने का अधिकारी नही होता इसलिए केवल अन्य वर्णों से मिले दान पर ही जीविकोपार्जन का नियम था।
तो मित्रो जो वर्ण स्वयम दान और दक्षिणा पर अवलम्बित थे वे किसी का क्या शोषण करेंगे ?
हां, कुछ लोभियों ने स्वयहित के हेतु अपने ज्ञान का दुरुपयोग किया और स्वलाभ कि मंशा से स्मृति विरुद्ध कार्य किया। परंतु उनके कारण सर्वब्राह्मण वर्ण को हम दोषी समझ कर धिक्कार नही सकते यह भी उतना ही सत्य है।