डॉक्टर मनीषा तिवारी : भारतवर्ष पूरे विश्व में अपनी संस्कृति की विरासत के लिए जाना जाता है, हम सभी जानते हैं हमारे देश में अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं और भारत विश्व में एक ऐसा देश है जहां विदेशी संस्कृति का बहुत ही प्रभाव रहा है परन्तु विदेशी संस्कृति के प्रभाव मैं आने के बावजूद भारतीय लोगों ने अपने पुराने रीति रिवाजों को कभी नहीं भुलाया हे ।
हां बहुत से नौजवान अपने रीति रिवाजों के महत्व को शायद नहीं जानते हैं, मैं आज आपको एक ऐसा ही त्यौहार के बारे में बताने जा रही हूँ , जिसे हम बचपन से मनाते चले आ रहे हैं परंतु बहुत से लोग आज इसके महत्व को नहीं जानते हैं ।
जैसा की आप सभी जानते हैं भारत में भाई बहन के स्नेह के प्रतीक दो त्यौहार मनाए जाते हैं जो बहन की प्रेम को मजबूत करता है, रक्षाबंधन एवं भईया दूज । रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा में मनाया जाता है जिसमें भाई बहन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है और दूसरा त्योहार भईया दूज यह दीपावली के 2 दिन बाद मनाया जाता है ( भईया दूज का त्योहार कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है।) इसमें बहने भाई की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं भाई को टीका लगाती हैं ।
भईया दूज (भैया दूज) को कुछ राज्यों में भातृ द्वितीया भी कहा जाता है, इस त्योहार का मुख्य लक्ष्य बहन और भाई के पावन रिश्तों की स्थापना करना है, इस दिन बहने बेरी पूजन भी करती हैं। बहने भाइयों की लंबी उम्र की मंगल कामना करते हुए उन्हें तिलक लगाती हैं । कई राज्यों में तो बहने भाइयों को तेल लगा कर नदी में स्नान भी करवाती हैं अगर नदी में स्नान ना हो तो भाई को बहन के घर में स्नान कराया जाता है ।
इस दिन बहनें भाइयों को चावल बना कर भी खिलाती हैं, यह माना जाता है कि इस दिन बहन के घर का भोजन करने का बहुत बड़ा महत्व रहता है । बहन कोई भी हो सकती है चाहे वह चचेरी हो व् ममेरी हो, यदि किसी व्यक्ति की कोई बहन नहीं हो तो है गाय व् नदी को ध्यान करके भोजन करने पर भी शुभ माना गया है ।
कई राज्यों में इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी मनाई जा रही है। गोबर की एक मानव रूपी मूर्ति बना कर बहने इसे मूसलों से तोड़ती हैं। इस दिन यमराज तथा यमुना जी के पूजन का विशेष महत्व है।
भईया दूज की कथा
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।