तुलसीदास का सच, सिर्फ जागरूक हिन्दुओ के लिए
जगदीश भाति : इस लेख को पढ़कर अंधभक्त के ह्रदय को जो चोट पहुंचेगी उसके लिए खेद है, तुलसीदास ने सिर्फ और सिर्फ वाल्मीकि रामायण के वैज्ञानिक प्रसंगों को जादू टोने चमत्कारों में बदल कर हिन्दू समाज को अंधविश्वास और अकर्मण्यता की गहरी खाई में धकेला है
नारियो को गाली देना, अरे एक जगह नही अनेको जगह, यह नारियो को ताडन का अधिकारी तो बताता ही है , उन्हें कुटिल, सुंदर पुरुष देखकर विकल हो जाने वाली, अशुद्ध, अविश्वस्निय कहता है
भग्यवादी सन्देश देना और श्री राम व् हनुमान जी के काल्पनिक किस्से बताना ही इसका साहित्यिक कार्य है
जब मुल्ले हिन्दुओ का विनाश कर रहे थे तब ये मस्जिद में रहकर लिखता था
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए!
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए!!
वास्तविक वाल्मीकि रामायण के शौर्यवान व वैज्ञानिक प्रसंगों को जादू टोने, भाग्यवाद व अंधविश्वास में परिवर्तित करके तुलसीदास ने मुसलमानों की मदद ही कि है।
सच जानने के लिए आपको वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस दोनो को पढ़ना होगा ।
उदाहरण1: वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को तीन वेदों का ज्ञाता कहा है, रावण ने जिसमे आग लगाई थी वह हनुमान जी की पूंछ नही अपितु लांगुलम नामक वस्त्र आभूषण था , किन्तु तुलिदास जी ने सब अर्थ का अनर्थ कर दिया।
“बन्दर” एक सर्वभक्षी,द्वेषी,हिंसक,व्यसनी पशु है।
जबकि पूज्य श्री हनुमान जी , वाल्मीकि रामायण के अनुसार सदाचारी,वृह्मचारी,वेदज्ञ,धर्मात्मा,सर्व गुण सम्पन्न देव पुरुष थे।
लांगुलम शब्द का अनर्थ करके श्री हनुमान जी को बन्दर प्रचारित करना पाप है, यह उनका अपमान है।
उदाहरण2: वाल्मीकि रामायण में जटायु एक आर्य वानप्रस्थी था और पूर्व में एक राजा भी था , परन्तु तुलसीदास ने उसे पंछी बना दिया। वाल्मीकि रामायण में खुद जटायु अपना परिचय श्री राम इस प्रकार देता है किंतु बुद्धिहीन तुलसीदास ने जटायु नाम से पक्षी का अर्थ प्रस्तुत कर दिया।
उदाहरण 3: राम जी ने रामसेतु तैरते पत्थरो से नही बल्कि बड़ी बड़ी मशीनों के द्वारा समुद्र तल में नींव बनाकर किया था। किन्तु इस मूर्ख तुलसीदास ने तैरने वाले पत्थरो की झूठी कथा रच् कर हिन्दू समाज को भृमित किया है इसके इन्ही मूर्खताओं का परिणाम है कि हिन्दू युवक श्री राम का सम्बन्ध विज्ञान गुरुकुल वेद से ना जोड़ कर जादू टोने चमत्कारों से जोड़ते है
तैरने वाले पत्थर पूरे संसार मे पाए जाते है ये आग्नेय चट्टानों के पत्थर है, बेचारे हिन्दू युवक इन पत्थरों को पूजनीय मानकर प्रदर्शनी लगाते है, चूमते है , पूजा करते है। एक झूठ ने हिन्दुओ का कितना पतन किया??
उदाहरण 4 वाल्मीकि रामायण में श्री राम अपने को कहते है कि शायद मेरे किसी पूर्व जन्मों के बुरे कर्मो के कारण में इस मनुष्य जन्म में ये दुख भोग रहा हूँ , किन्तु तुलसीदास ने उन्हें ईश्वर का अवतार बता कर समाज को सन्देश दिया कि मनुष्यो में धर्म रक्षा का सामर्थ्य नही यह कार्य सिर्फ ईश्वर का है।
क्या ईश्वर पाप करता है?
क्या ईश्वर बुरे कर्म करता है?
वाल्मीकि रामायण में श्री राम को कही भी ईश्वर या अवतार नही कहा गया , इस महामूर्ख अंधविश्वासी व्यक्ति से पूरे हिन्दू समाज को कर्तव्यहीन बनाकर भाग्यवादी बना दिया
होइ वही जो राम रची राखा
क्यों करे तर्क बढ़ावे शाखा
ऐसे ऐसे वेद विरुद्ध दोहो ने हिन्दुओ को नपुंसक बना कर रख दिया ।
वेद की आज्ञा है
कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः (अथर्व 7/50/8)
अर्थात् “तेरे दाएं हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय ”
वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ । लोगों ने कर्म को छोड़कर ग्रहों फलित ज्योतिष आदि पर आश्रय पाया ।
परिणाम : कर्महीनता, भाग्य के भरोसे रहकर आक्रान्ताओं को मुँहतोड़ जवाब न देना । धन-धान्य का अपव्यय, मनोबल की कमी और मानसिक दरिद्रता ।
श्री राम व कृष्ण ने जीवन भर कर्म किया, कभी भाग्य भरोसे नही बैठे, ओर ये मूर्ख तुलसी हिन्दुओ को उन्ही राम जी के भरोसे हाथ पर हाथ रखकर बैठने को कहता है, ये श्री राम का अपमान है कि सम्मान है
उदाहरण5
रिश्तो का भी सम्मान नही किया इस तुलसीदास ने
नारियो को नीचा दिखाना, ताडन का अधिकारी बताने तक ही इसका द्वेष समाप्त नही होता
नारी द्वेष से पीड़ित होकर यह भी लिख दिया
भ्राता, पिता, पुत्र उरगारी। पुरुष मनोहर निरखत नारी।।
होइ विकल सक मनहिं न रोकी। जिमि रविमनि द्रव रबिहि बिलोकी।।
स्त्री ,सुन्दर पुरुष को देखते ही, चाहे वह भाई, पिता, पुत्र ही क्यों न हो, विकल हो जाती हैं और अपने मन को रोक नहीं सकती हैं जैसे सूर्य को देखकर सूर्यमणि पिघल जाती है।
धिक्कार है ऐसी सोच पर
में हर एक को नही समझा सकता किन्तु जिसे सत्य से प्रेम है उसके लिए समझना काफी है कि
कुरान व बाइबल की तरह इस तुलसीदास ने अपने ग्रन्थ को निकट सम्बन्धो में व्याभिचार् के विचार से दूषित किया है
जागरूक हिन्दू भाइयो, धर्म की रक्षा करनी हो तो बुद्धि विवेक का प्रयोग करो, श्री राम की कथा सही सही जानने के लिए वाल्मीकि रामायण पढ़ो न् की रामचरित मानस
जय आर्य जय आर्यवर्त जय श्री राम
लेखक महोदय से निवेदन है कि कृपया श्री रामकिंकर उपाध्याय महाराज जी का मानस प्रवचन का बार बार पठन कर रामचरित मानस पर दिए गए अपनी उपरोक्त विचार पर मनन करें और गड़बड़ कहाँ से पैदा हुई है उस पर लेख लिखें I