रोहित शर्मा, चंडीगढ़ : आज अक्षय तृतीया है , यानि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है । भगवान परशुराम जी का प्राकट्य दिवस । सामान्यतया ब्राह्मण सभाओं के पोस्टर बॉय के रूप में ही अब की पीढी परशुराम जी को जानेगी । इस का कारण भी ब्राह्मण वर्ण के कुछ लोग हैं ।
जब हम किसी महापुरुष को एक जाति पंथ से जोड़ देते हैं तो उससे जाति का तो पता नहीं कितना मान बढ़ता है , उस महापुरुष की प्रतिष्ठा को हम अवश्य गिरा देते हैं ।
—
क्यों अग्रसेन पर वणिक , महाराणा प्रताप पर क्षत्रीय , आंबेडकर पर सेवक समाज और श्रीगुरु गोविन्द सिंह पर सिख अपना अपना कॉपीराईट ठोकता है , क्यों उनकी जयंतियां एक संप्रदाय तक सीमित रहती हैं , क्यों जातिगत संस्थाएं इन महापुरुषों के नाम पर होती हैं ।
अपने अभिमान को हम एक रूप देते हैं और किसी महापुरुष के उस कर्तृत्व से जोड़ते हैं , जो उसने मानवता के लिए किया , न कि अपनी जाति के उत्थान के लिए ।
—
अब महर्षि परशुराम ने पृथ्वी को २१ बार क्षत्रीय विहीन किया तो किसी जाति का उन्मूलन नहीं किया और न ही उससे ब्राह्मण का पराक्रम स्थापित होता है । उन्होंने श्रीराम जो क्षत्रिय कुल में जन्मे , उन्हीं के आगे समर्पण किया , अतः कोई जाति का विरोध नहीं । केवल धर्म संस्थापन ही उद्देश्य था ।
ब्राह्मण को अपनी वीरता सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है , वीर हम सभी में छुपा होता है , जो समय आने पर प्रकट होता है ।
ब्राह्मण तो सर्व समाज का गुरु है , उसे तो ऐसे वीर समाज में उत्पन्न करने हैं । महापुरुषों को अपने समाज के मान से जोड़ने का एक दूसरा पक्ष है । कुछ समय पहले नाभा दास जी पर इंटरनेट पर सर्च करते करते मुझे एक महाशा सम्प्रदाय के बारे में पता चला । ये अपने आपको नाभादासिये कहते हैं । मूल में डूम जाति से सम्बन्ध रखने वाले नाभादास जी ने भक्तमाल नामक ग्रन्थ लिखा था जिसमें आदि काल से तब तक हुए सभी भक्तों की जीवनी संकलित थी ।
नाभादास जी उच्च कोटि के वैष्णव थे और इन्होंने पञ्जाब की यात्रा भी की थी । अब डूम जाति के लोग इनको अपना गौरव समझते हैं और प्रत्येक वर्ष नाभादास जी से जुड़े पर्व मनाते हैं , भक्तमाल पढ़ते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का आह्वान करते हैं । इसमें शुभ पक्ष है अपने समाज को सुधारना और उनमें मानवीय गुण लाना । यद्यपि अपने समाज से आगे चल कर समस्त मानवता के लिए ये लक्षित हों , ऐसा भी इन्हें देखना चाहिए किन्तु ये उद्देश्य , किसी महान विभूति से सम्प्रदाय को जोड़ने का है तो यह बहुत सात्विक है , किन्तु अभिमान और संस्थागत उद्देश्य सिद्ध करना मूल भाव है तो यह जघन्य कृत्य है ।