चंडीगढए 15 जुलाई : नशा मुक्त समाज का निर्माण अत्यंत अपेक्षित हैए नशा नाश का द्धार है। नशे के कारण ही अनेकानेक अपराध पैदा हुए हैंए बडी से बडी दुर्घटनाएं नशो की बदौलत हो रही है। अणुव्रत समिति ने नशा मुक्ति का कार्य हाथ में लेकर महत्वपूर्ण काम किया है। यह कार्य जितना आगे बढेगा देश के लिए उतना ही महत्वपूर्ण बनेगा। ये शब्द पंजाब के राज्यपाल महामहिम वी पी सिंह बदनौर ने मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक से मुलाकात दौरान कहे।
उन्होंने आगे कहा नशा पहले भी थाए आज भी है पर आज और पहले वाले में अतंर बडा साफ दिखाई दे रहा है। घृणित से घृणित कार्य नशे की डोज में हो रहा है। इस पर केवल सरकार काबू पा नही सकती जब तक जनता में यह भावनाएं पैदा ना हो ओर यह कार्य जैन संत कर सकते है। मुनिश्री व सरकार अगर मिलकर यह नशा मुक्त कार्य करे तो जना आंदोलन का रूप ले सकता है। विचार संगिति में मुनिश्रीअभयकुमारजीए कर्मठ कार्यकत्र्ता श्री मनोज जैनए श्री हैप्पी जैन आदि उपस्थित थे।
मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने कहा किसी भी विचार को कार्यरूप में कैसे बदलेंगे इसके लिए भी आपके पास एक योजना होना चाहिए। उदाहरण के लिए दांत का दर्द से गुजरने वाले व्यक्ति के लिए वह दर्द एक सचाई है। ऐसे में कयास नहीं लगाए जा सकते बल्कि उसे राहत देना महत्वपूर्ण होता है। आशय हैए सिर्फ कल्पना या बातें नहीं हों। कोई भी योजना ऐसी हो कि उसे कार्यरूप में बदला जा सके। आखिरकर किसी भी विचार का कार्यरूप में बदलना भी बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।किसी भी संस्था और संगठन की नीति ऐसी होना चाहिए कि सभी लोग उसके लिए काम करें न कि एक ढर्रे का पालन करें। अपनी रणनीति को लगातार बदलनाए नॉलेज को लगातार अपडेट करना यह बहुत जरूरी होता है।
मनीषीसंत ने आगे कहा विचारो के कार्यरूप को बदलकर व्यक्ति ऐसे वातावरण में बढिय़ा प्रदर्शन कर पाता है। उत्साह से नए विचार आते हैं। ऐसा संस्थान जहां चीजें जम गई हों वहां नयापन नहीं दिखाई देता। यह उत्साह कैसे बनाया रखा जाए इसके लिए प्रयास करने चाहिए। उत्साह है तो ही इनोवेशन होगा। व्यक्ति कई मौकों पर खुद को मूल्यहीन समझने लगता है। ऐसे में किसी भी तुलना से दूर रहते हुए खुद पर भरोसा रखकर आगे बढऩा ही आपका मंत्र होना चाहिए। क्या वाकई मैं कुछ अच्छा काम नहीं कर रहा हूंघ् क्या मैं अपनी पूरी क्षमता से काम कर पा रहा हूंघ् क्या मैं इतना अच्छा हूं कि लोग मुझसे प्यार करेंघ् ऐसे खयाल बहुत से लोगों के मन में उमड़ते हैं। अपने प्रियजनों और परिजनों की नजर में और अपने कामकाजी जीवन में अपने महत्व को लेकर अक्सर लोग कुछ ज्यादा ही चिंतित होते हैं। ऐसी चिंता बहुधा उन्हें अपनी क्षमता से कमतर होने का एहसास कराती है। किसी भी संस्था में टीम भावना हमेशा होना चाहिए ताकि कर्मचारी अलग.अलग टुकडों में काम करने के बजाय समूह के रूप में अच्छा काम कर सकें। किसी भी संस्थान की स्थिति उसकी टीम से बेहतर होती है किसी एक व्यक्ति से नहीं। इसके अलावा संस्थान में उत्साहजनक वातावरण होना ही चाहिए। मनीषीश्रीसंत ने कहा जिन लोगों को देखकर हम खुद को कमतर समझते हैं वे तो खुद को समझने में हमारी मदद भर करते हैं। अपने पर संदेह से उबरने में कुछ कदम आपकी मदद कर सकते हैं। अगर आपको लगता है कि आपको अपने साथियों के मुकाबले बहुत ही कम चीजें आती हैं। उनके स्तर तक पहुंचने के लिए आपको बहुत लंबा समय लगेगा तो इस तरह दूसरों के साथ तुलना करने के बजाय आपको समझना चाहिए कि उनके और आपके स्तर में फर्क हैए और आप दोनों की प्राथमिकताएं भी अलग.अलग हैं। जीवन में कभी न कभी जरूर आता है जबकि व्यक्ति को अपनी क्षमताओं पर संदेह होने लगता हैए अपनी योग्यता पर वह खुद ही प्रश्नचिह्न लगाने लगता है। जिंदगी के ऐसे लम्हों में जब आप खुद को कमतर आंकें तो अपने आत्मविश्वास को संभालने की बहुत ज्यादा जरूरत है। इसाक असीमोव ने इसी तरफ इशारा करते हुए कहा है सभी बातों में सबसे महत्वपूर्ण है कि कभी यह न सोचें कि आपका कोई महत्व नहीं है। किसी भी व्यक्ति को ऐसा नहीं सोचना चाहिए। मेरा मानना है कि जीवन में मिलने वाले लोग खुद को पहचानने में आपकी मदद ही करेंगे।
मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया समान परिस्थितियों में रहने वाले दो लोग भी एक स्तर पर नहीं होते हैं इसलिए खुद को दूसरों से कमतर समझने के भाव से उबरना चाहिए। इसके साथ यह भी है कि सिर्फ आप अकेले नहीं हैं जो दूसरों से इस तरह की तुलना करके दबाव में आते हैं बल्कि ऐसा सभी लोगों के साथ होता है। मुश्किल उन्हीं लोगों के साथ पेश आती है जो खुद को मूल्यहीन मान बैठते हैं। इसलिए जरूरी यही है कि खुद को मूल्यहीन न समझें।