भद्रा क्या है ?
देवदानवसंग्राम आख्यान : पूर्वकाल में जब देवताओ और असुरो का युद्घ हुआ तो देवगण हारने लगे !!!
!!! तब शिवजी को क्रोध आ गया !!!
शिवजी की आँखे एकदम सुर्ख लाल हो गयी ||
दसों दिशाएं कांपने लगी ||
इसी समय शिवजी की दृष्टि उनके हृदय पर पड़ी और
उसी समय
एक गधी के सामान
गरदन सिंह के समान
सात हाथो से व तीन पैरों से युक्त
कौड़ी के समान नेत्र
पतला शरीर
कफन जैसे वस्त्रो को धारण किय!े हुए
धुम्रवर्ण की कान्ति से युक्त
विशाल शरीर धारण किये हुए
एक कन्या की उतपत्ति हुई
जिसका नाम “भद्रा” था ||
देवताओ की तरफ से असुरो से युद्घ करते हुए असुरो का विनाश कर डाला ||
देवताओ की विजय हुई ||
तब देवगण प्रसन्न होकर उसके कानो के पास जाकर कहा
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दैत्यघ्नी मुदितै: सुरैस्तु करणं
प्रान्त्ये नियुक्ता तु सा
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तभी से भद्रा को करणों में गिना जाने लगा ||
शिवयोगीजी
यह भद्रा अब भूख से व्याकुल होने लगी तब भगवान शिवजी से कहा
हे मेरे उत्पात्तिकर्ता !!!
मुझे बहुत भूख लग रही है !!!
मेरे लिए भोजन की व्यवस्था करिये !!!
तब शिवजी ने कहा :-
विष्टि नामक करण में जो भी मंगल या शुभ कार्य किये जाए
तुम उसी कर्म के सभी पुण्यो का भक्षण करो और अपनी भूख मिटाओ ||
भद्राकाल में किये जाने वाले सभी मांगलिक कार्यो को सिद्घि को ये अपनी लपलपाती सात जीभों स!े भक्षण करती है ||
अतः इसीलिए
भद्राकाल में शुभ मांगलिक कार्य नही किये जाते है ||
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पंचांग में जो करण होते है
उसमे विष्टि नामक करण को ही भद्रा एवं विष्ट करण के काल को ही भद्रा काल कहते है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज