भद्रा और भद्राकाल
शुक्लपक्ष में अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्घ में व एकादशी तिथि के उत्तरार्द्घ में विष्टि करण अर्थात भद्रा होती है ||
जबकि कृष्णपक्ष में तृतीया व दशमी तिथि के उत्तरार्द्घ में एवं सप्तमी व चतुर्दशी के पूर्वार्द्घ में भद्रा होती है ||
तिथि के सम्पूर्ण भोगकाल का प्रथम आधा हिस्सा पूर्वार्द्घ तथा अंतिम आधा हिस्सा उत्तरार्द्घ होता है ||
मुख्य बात
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जितने समय तक विष्टि करण रहता है
उतने समय तक ही भद्रा रहती है ||
सभी शुभ कार्य के प्रारम्भ करने में वर्जित है ||
शुक्लपक्ष में
चतुर्थी को 27 घटी
अष्टमी को 5 घटी
एकादशी को 12 घटी
पूर्णिमा को 20 घटी के उपरान्त
3 घटी भद्रा पुच्छ संज्ञक होती है ||
जबकि कृष्णपक्ष में !
तृतीया को 20 घटी
सप्तमी को 12 घटी!
दशमी को 5 घटी
चतुर्दशी को 27 घटी के उपरान्त
3 घटी भद्रा पुच्छ संज्ञक होती है ||
भद्रा पुच्छ को शुभ माना गया है ||