भद्रा का अंग विभाग : भद्रा के सम्पूर्ण काल मान के आधार पर किया जाता है ||
इसलिए भद्रा का सम्पूर्ण काल का मापन पहले कर लेना चाहिए ||
चूँकि तिथियों में घटत-बढ़त होती रहती है ||
तिथि का आधा भाग एक करण मान का होता है ||
इस हिसाब से ! माना तिथि का मान 60घटी है
तो भद्रा या विष्टि करण का मान! 30घटी हो गया ||
यदि भद्रा का मान 30घटी हुआ तो अंग विभाग इस क्रम में होता है, भद्राकाल का 6ठां भाग 5घटी मुख संज्ञक, अगला 30वां भाग 1घटी कण्ठ संज्ञक, 5वां भाग 6घटी कटि संज्ञक
अंतिम 3घटी पुच्छ संज्ञक होती है ||
● भद्रा मुख में किये गए कार्य नष्ट हो जाते है ||
● गले में करने से स्वास्थ्य की हानि होती है ||
● हृदय में करने से कार्य की हानि होती है ||
● नाभि में करने से कलह होती है ||
● कटि में कार्यारम्भ करने से बुद्घि भ्रमित होती है ||
जबकि भद्रा पुच्छ में किये गए कार्य सफल होते है ||