कुमार गिरीश , जयपुर : आज बात करते है मूल त्रिकोण राशि की तो सबसे पहले हम यह समझ ले की किन किन ग्रहो की मूल त्रिकोण राशि कौन सी है सूर्य की सिंह , चन्द्रमा की कर्क ,मंगल की मेष , बुध की कन्या , शुक्र की तुला , गुरु की धनु और शनि की कुंभ राशि मूल त्रिकोण राशि होती है तो सबसे पहले यह समझ ले की सभी ग्रह मुख्य अपना फल मूल त्रिकोण राशि का देते है जैसे की किसी का कर्क लग्न हो तो गुरु की दशा होगी तो उसमें हम कहेंगे की गुरु की दशा अच्छा फल प्रदान नही करेंगी साधारण लाभ रहता है कारण क्या है कारण यही है गुरु मुख्य फल मूल त्रिकोण राशि का देगा तो वो 6 भाव मे होगी , अब मेष लग्न मंगल को लेले , मंगल की राशि एक तो लग्न में होती है दूसरी अष्टम भाव मे होती है तो फिर भी मेष लग्न में अष्टम भाव मे मंगल हो तो अच्छा फल करता है कारण क्या है कारन यही है की मेष लग्न में मुख्य राशि है जो की वो लग्न में पड़ती है अब वृश्चिक लग्न को लेले उस लग्न में मंगल इतना अच्छा नही होता कारण यही है की मूल त्रिकोण राशि है वो लग्न में पड़ती है तो मंगल की दशा अच्छी ना होकर साधारण होती है अब तुला लग्न को लेले और तुला लग्न में शनि की राशि 4-5 भाव में होती है यदि शनि बलबान हो तो तुम कहेंगे की इस जातक को सन्तान के द्वारा बहुत सुख होगा , अब यदि शनि बलहीन हो तो हम यह कहेंगे की इसको जीवन मे सन्तान से बहुत दुख उठाना पड़ेगा , कारण यही है की शनि पीड़ित हुआ तो उसकी मूल त्रिकोण राशि 5 भाव मे है तो सन्तान की कारक होगी ,इस तरह हमें यह समझना चाहिए और इससे यह #निष्कर्ष निकलता है की जिन 2 भावो में एक ही ग्रह की 2 राशिया रहती है तो वो दोनों राशिया मिलकर कार्य करती है!