पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री : लग्नेश की दशाकाल से सम्बन्धित व्यक्ति इस काल में शारीरिक दुःख-सुख को भोगता है, क्यूंकि लग्न स्वयं व्यक्ति ही है, यदि लग्नेश 12 वें भाव में हो अथवा गोचर में 12 वें आ जाए तो व्यक्ति धन हानि तथा अपयश के कारण घर भी छोड़ देता है। यदि दुसरे भाव की दशाकाल है तो व्यक्ति धन, कुटुम्ब, आँख, मुंह शुरूआती शिक्षा, खासकर पारिवारिक व संस्कार भी इसमें सम्मलित होते है, जमा पूंजी, यह मारक स्थान भी है, इनसे सम्बन्धित दुःख-सुख पाता है यदि दुसरे भाव का सम्बन्ध सूर्य से हो तो ऐसे लोग थोडा परोपकारी व ज्ञान के धनी होते है जबकि गुरु से सम्बन्ध होने पर व्यक्ति धार्मिक, अध्यात्मिक होता है, देखने में आता है कि धनेश का शनि से सम्बन्ध शिक्षा में बाधाएं खड़ी करता है किन्तु इसी भाव में मंगल हो तो व्यक्ति तार्किक व बातों का राजा होता है उसे कोई जल्दी अशिक्षित नहीं बता पायेग, द्वितीय भाव व भावेश के पीड़ित होने पर आँखों की तकलीफ होती है.इत्यादि…!!