इन्द्रकृष्ण भारद्वाज,बीकानेर : श्राद्ध करने का सीधा संबंध पितरों यानी दिवंगत पारिवारिकजनों का श्रद्धापूर्वक किए जाने वाला स्मरण है, जो उनकी मृत्यु की तिथि में किया जाता हैं। अर्थात पितर प्रतिपदा को स्वर्गवासी हुए हों, उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही होगा। इसी प्रकार अन्य दिनों का भी, लेकिन विशेष मान्यता यह भी है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाए। परिवार में कुछ ऐसे भी पितर होते हैं, जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है, यानी दुर्घटना, विस्फोट, हत्या या आत्महत्या अथवा विष से। ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। साधु और सन्न्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन और जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। जीवन मे यदि कभी भूले-भटके माता-पिता के प्रति कोई दुर्व्यवहार, निंदनीय कर्म या अशुद्ध कर्म हो जाए तो पितृ पक्ष में पितरों का विधिपूर्वक ब्राह्मण को बुलाकर दूब, तिल, कुशा, तुलसीदल, फल, मेवा, दाल-चावल, पूरी व पकवान आदि सहित अपने दिवंगत माता-पिता, दादा-ताऊ, चाचा, परदादा, नाना-नानी आदि पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करके श्राद्ध करने से सारे ही पाप कट जाते हैं। यह भी ध्यान रहे कि ये सभी श्राद्ध पितरों की दिवंगत यानि मृत्यु की तिथियों में ही किए जाएँ। यह मान्यता है कि ब्राह्मण के रूप में पितृ पक्ष में दिए हुए दान पुण्य का फल दिवंगत पितरों की आत्मा की तुष्टि हेतु जाता है। अर्थात् ब्राह्मण प्रसन्न तो पितृजन भी प्रसन्न रहते हैं। अपात्र ब्राह्मण को कभी भी श्राद्ध करने के लिए आमंत्रित नहीं करना चाहिए। ‘मनुस्मृति’ में इसका ख़ास प्रावधान है।
पितृ पक्ष की सभी पंद्रह तिथियाँ श्राद्ध को समर्पित हैं। अतः वर्ष के किसी भी माह एवं तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों का श्राद्ध उसी तिथि को किया जाना चाहिए। पितृ पक्ष में ‘कुतप वेला’ अर्थात मध्याह्न के समय (दोपहर साढे़ बारह से एक बजे तक) श्राद्ध करना चाहिए। प्रत्येक माह की अमावस्या पितरों की पुण्य तिथि मानी जाती है, किंतु आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या पितरों हेतु विशेष फलदायक है। इस अमावस्या को पितृविसर्जनी अमावस्या अथवा महालया भी कहा जाता है। इसी तिथि को समस्त पितरों का विसर्जन होता है। जिन पितरों की पुण्य तिथि ज्ञात नहीं होती अथवा किन्हीं कारणवश जिनका श्राद्ध पितृ पक्ष के पंद्रह दिनों में नहीं हो पाता, उनका श्राद्ध, दान, तर्पण आदि इसी तिथि को किया जाता है। इस अमावस्या को सभी पितर अपने-अपने सगे-सम्बन्धियों के द्वार पर पिण्डदान, श्राद्ध एवं तर्पण आदि की कामना से जाते हैं, तथा इन सबके न मिलने पर शाप देकर पितृलोक को प्रस्थान कर जाते हैं।
पितरों का आगमन
श्राद्ध से पहले श्राद्धकर्ता को एक दिन पहले उपवास रखना होता है, जिसे हबीक कहते। अगले दिन निर्धारित मृत्यु तिथि को अपराह्न में गजछाया के बाद श्राद्ध तर्पण तथा बाह्मण भोज कराया जाता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितर दोपहर बाद श्राद्धकर्ता के घर पक्षी/कौवे या चिडिया के रूप मे आते हैं। अतः श्राद्धकर्म कभी भी सुबह या एक बजे से पहले नहीं करना चाहिए, क्योंकि तब तक दिवंगत पितर अनुपस्थित रहते हैं। कुछ लोग भोजन पकाकर बिना पिण्ड दिये ही मन्दिर में थाली दे आते हैं। इससे भी मृतआत्मा की शान्ति नहीं होती और श्राद्धकर्ता को श्राद्ध का पुण्य नहीं मिलता।
भोजन में क्या बनाए और क्या नहीं बनाएं?
श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन घर की रसोई में बनना चाहिए, जिसमें उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध-घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जो बेल पर लगती है, जैसे- तोरई, लौकी, सीताफल, भिण्डी, कच्चे केले की सब्जी आदि ही भोजन मे मान्य है। आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियाँ पितरो को नहीं चढ़ती हैं। श्राद्ध के लिए तैयार भोजन की तीन-तीन आहुतियों और तीन-तीन चावल के पिण्ड तैयार करने के बाद ‘प्रेतमंजरी’ के मंत्रोच्चार के बाद ज्ञात और अज्ञात पितरों को नाम और राशि से सम्बोधित करके आमंत्रित किया जाता है। कुशा के आसन में बिठाकर गंगाजल से स्नान कराकर तिल, जौ और सफ़ेद रंग के फूल और चन्दन आदि समर्पित करके चावल या जौ के आटे का पिण्ड आदि समर्पित किया जाता है। फिर उनके नाम का नैवेद्ध रखा जाता है।
संतानहीन का श्राद्ध किसको करना चाहिए?
श्राद्ध करने के लिए ‘मनुस्मृति’ और ‘ब्रह्मवैवर्तपुराण’ जैसे सभी प्रमुख शास्त्रों में यही बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो धेवता (नाती), भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। कई ऐसे पितर भी होते हैं, जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतानहीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई, भतीजे, भांजे या अन्य चाचा-ताऊ के परिवार के पुरुष सदस्य पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते हैं तो पीड़ित आत्मा को मोक्ष मिलता है।