डॉ विवेक आर्य : यज्ञ शब्द का परिभाषित अर्थ “पुरुषार्थ युक्त कर्म है” जबकि व्यवहार काल में यज्ञ से “अग्निहोत्र” शब्द का भी ग्रहण किया जाता है। वैदिक काल में यज्ञ में पशु बलि आदि का स्पष्ट निषेध था। कालांतर में वाम मार्ग के प्रभाव से यज्ञ में पशु बलि आदि दी जाने लगी। महात्मा बुद्ध कि उनका तपस्वी आत्मा, उनका ह्रदय धर्म के नाम पर पशुओं पर हो रहे अत्याचार को देखकर द्रवित हो उठा। उन्होंने यज्ञ में पशु बलि के विरुद्ध सन्देश दिया। साम्यवादी एवं अम्बेडकरवादी लोग यह प्रचार करते है कि महात्मा बुद्ध ने यज्ञों का खंडन किया है। यह सत्य नहीं है। इस वृतांत से हम इस तथ्य को समझने का प्रयास करते है।
“हे ब्राह्मण! इस यज्ञ में गो वध नहीं हुआ है, छाग वध नहीं हुआ है, मेष वध नहीं हुआ है, कुक्कुट वध नहीं हुआ है, शुकर वध नहीं हुआ है एवं अन्य प्राणियों की हत्या भी नहीं हुई हैं। वह यज्ञ घृत, तैल, नवनीत और दही, गुड़-मधु के द्वारा ही सम्पन्न हुआ था।’