भकूट-विचार : भकूट का तात्पर्य वर-कन्या की राशियों के आपसी अन्तर से होता है ||
भकूट छ प्रकार का
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1.सप्तमभकूट 2.द्वादशभकूट
3.एकादशभकूट 4.दशमभकूट
5.नवमभकूट 6.षडाष्टकभकूट
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6 प्रकार के भकूट में से
द्विर्द्वादश नवम पञ्चम एवं षडाष्टक
यह तीनो अशुभ
तथा शेष शुभ भकूट कहलाते है ||
भकूट जानने की सरल विधि
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वर की राशि से कन्या की राशि तक गिनती कर लेनी चाहिए ||
● यदि इन दोनों की राशि आपस में दूसरे एवं बारहवें भाव में पड़ती हो तो द्विर्द्वादश भकूट होता है ||
● यदि इनकी राशि परस्पर 9वीं या 5वीं पड़ती हो तो नवम पञ्चम भकूट होता है ||
● यदि वर-कन्या की राशियाँ परस्पर छठे एवं आठवें पड़ती हो तो षडाष्टक भकूट होता है ||
मेलापक में द्विर्द्वादश नवम पञ्चम तथा षडाष्टक ये तीनो भकूट अशुभ एवं त्याज्य माने गए है ||
इसका कारण यह कि
दूसरा स्थान धन का तथा बारहवाँ खर्च का स्थान होता है ||
द्विर्द्वादश भकूट में एक की राशि से दूसरे की राशि बारहवें में पड़ती है ; जो इस बात का प्रतीक है कि इन दोनों भावों के खर्चे को अधिक बढ़ाएगा ||
अर्थात कि इन द्विर्द्वादश भकूट भावी जीवन में खर्चे को बढ़ाकर आर्थिक सन्तुलन को बिगाड़ देता है ||
जिससे जीवन में धन की कमी या निर्धनता आ जाने की सम्भावना रहती है ||
इसलिए
नवम पञ्चम भकूट त्याज्य है क्योंकि
दाम्पत्य सम्बन्धो में विरक्ति तथा सन्तान की हानि करता है ||
नवम स्थान धर्म एवं तप का प्रतिनिधि भाव होता है ||
वर-वधु की राशियाँ जब आपस में 5वें एवं 9वें स्थान में हो तो धार्मिक भावना तप-त्याग दार्शनिक दृष्ट या प्रबल है ||
दाम्पत्य सम्बन्धो को सुखमय बनाने के लिए अनुरक्ति आकर्षण एवं आसक्ति का होना अनिवार्य है ; किन्तु नवम पञ्चम भकूट तीनो वृत्तियों भावनाओ को दबा देता है ||
परिणाम ; दम्पत्ति का गृहस्थ धर्म की ओर ध्यान न देने से सन्तान आभाव की आशंका बन जाती है ||
अर्थात ; अनुराग आकर्षण या आसक्ति के बिना भोग-सम्भोग की कल्पना करना सम्भव नही है ||
अतः विरक्ति उत्पन्न करने वाले नवम पञ्चम भकूट का परिणाम सन्तान का अभाव होता है ||
षडाष्टक भकूट एक महादोष
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छठा स्थान शत्रुता का तथा
आठवाँ स्थान मृत्यु का होता है ||
यदि वर एवं कन्या की राशियाँ आपस में छठी एवं आठवीं हों तो इन दोनों के भावी जीवन शत्रुता विवाद कलह एवं रोजाना के झगड़े झंझट होते रहते है ; न केवल तलाक अपितु नवदम्पत्ति में से किसी एक की हत्या या आत्महत्या के सर्वाधिक मामले षडाष्टक भकूट में विवाह करने पर देखे गए है ||
इसलिए षडाष्टक भकूट महादोष होता है तथा मेलापक में त्याज्य है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
शेष तीन भकूट
तृतीय-एकादश, चतुर्थ-दशम, प्रथम-सप्तम शुभ होते है ||
प्रथम-सप्तम भकूट में दाम्पत्य सुख तथा अच्छी सन्तान होती है ||
तृतीय एकादश में आर्थिक स्थिति तथा जीवन स्तर उन्नत होता है तथा चतुर्थ-दशम भकूट में विवाह करने से दम्पत्ति में अतिशय प्रेम बना रहता है ||
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-1) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-2) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-3) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-4) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
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