गण-विचार : गण 3 प्रकार के होते हैं
● देवगण
● मनुष्यगण
● राक्षसगण
प्रकृति ने 3 ही गुण प्रदान किया है
सात्विक राजसी और तामस गुण ||
इन्ही गुणों के आधार पर हमलोगो का स्वभाव तैयार होता है ||
देवगुण में उत्पन्न व्यक्ति
स्वभावतः सात्विक होता है ||
मनुष्यगुण में उत्पन्न व्यक्ति
चतुर चैतन्य दूरदर्शी स्वाभिमानी साहसी अपने हित का चिंतक अपने हित की रक्षा करने वाला सौंदर्यप्रेमी व्यवहार कुशल सामाजिक कार्यकर्ता प्रभावशाली प्रतिष्ठा यश चाहने वाला स्वयं को परिस्थिति के अनुरूप ढालने वाला होता है ||
राक्षसगुण में उत्पन्न व्यक्ति
किसी को भी किसी तरह से हानि पहुंचाने वाला होता है ||
गण-गुण बोधक-चक्र
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|| वर के गुण
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वधु के गुण || देव मनुष्य राक्षस
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देव || 6 5 1
मनुष्य || 6 6 0
राक्षस || 1 0 6
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वर एवं कन्या
दोनों का गण एक ही हो तो
उन दोनों के स्वभाव में समानता होने के कारण उन दोनों में अत्यंत प्रेम रहता है ||
यदि उनमे से एक का गण मनुष्य
व दूसरे का देव हो तो उनमे प्रेम मध्यम दर्जे का होगा ||
इस स्थिति में वे स्वयं को
आपस में व्यवस्थित कर बिना किसी विरोध या मतभेद के साथ-2 रहते है ||
किन्तु देव एवं राक्षस गण में उत्पन्न
वर-वधु में प्रेम का अभाव व स्वाभाविक मतभेद रहता है ||
अतः इस स्थिति में विवाह करना वर्जित माना गया है ||
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-1) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-2) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-3) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-4) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-5) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-6) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज