शुभ और अशुभ तिथियाँ
प्रत्येक पक्ष में 15 तिथियाँ होती है जिसका प्रभाव जातक पर आता है ||
यह तिथियाँ प्रत्येक पक्ष में 5 प्रकार की होती है जो इसप्रकार है :-
1: नन्दा तिथियाँ
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1,6 व 11 तिथियाँ नन्दा तिथि कहलाती है ||
इन तिथियों में शुभ कार्य किया जा सकता है ||
जैसे : गृह सम्बन्धी कार्य बीज बोना दाखिला लेना नृत्य सीखना आदि ||
इन तिथियो में
● यदि शुक्रवार पड़ जाए तो
सिद्घि नामक योग बनता है जिसमे
सभी कार्य सिद्घ हो जाता है ||
● यदि रविवार और मंगलवार पड़ जाए तो
मृत्युनामक योग बनता है
जिसमे शुभ कार्य वर्जित है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
2 : भद्रा तिथियाँ
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2,7 व 12 तिथियाँ भद्रा तिथि होती है
इन तिथियों में
विवाह करना यात्रा करना नए वस्त्र क्रय करना आभूषण क्रय करना पशु और वाहन क्रय करना
शुभ होता है ||
यदि इन तिथियों में
● बुधवार आ जाए तो
सिद्घ नामक योग बनता है
जिससे सभी कार्य सिद्घ होते है ||
● सोमवार या शुक्रवार आ जाए
तो मृत्युनामक योग बनता है जो अशुभ होता है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
3 : जया तिथियाँ
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3,8 और 13 तिथियाँ जया तिथियाँ होती है ||
यह तिथि मंगल से अधिक प्रभावित होती है ||
इन तिथियों में
नए फ़ौज का गठन शस्त्रो का निर्माण युद्घ करना दवा बनाना शुभ होता है ||
यदि इन तिथियों में
● मंगलवार आ जाए तो
सर्वार्थसिद्घ नामक योग बनता है ||
जो अति शुभ होता है ||
● बुधवार आ जाए तो
मृत्यु नामक अशुभ योग बनता है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
4 : रिक्ता तिथियाँ
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4,9 व 14 तिथियाँ रिक्ता संज्ञक होती है ||
इन तिथियों में
मुकदमा दायर करना आपरेशन करना शस्त्रो का प्रयोग करना इत्यादि कार्य प्रशस्त माने गए है ||
यदि इन तिथियों में
● शनिवार आ जाए तो
सर्वार्थसिद्घ नामक योग बनता है ||
जो अति शुभ होता है ||
● गुरूवार आ जाए तो
मृत्युनामक अशुभ योग बनता है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
5 : पूर्णा तिथियाँ
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5,10 व 15 तिथियाँ
पूर्णा तिथियाँ कहलाती है ||
इन तिथियों में
विवाह यज्ञ नींव खोदना गृहप्रवेश फैक्ट्री लगाना शान्तियज्ञ दूकान खोलना इत्यादि प्रशस्त होते है ||
यदि इन तिथियों में
● गुरुवार आ जाए तो
सर्वार्थसिद्घ बनता है जो शुभ होता है ||
● शनिवार आ जाए तो
अशुभ मृत्युनामक योग बनता है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
विशेष तिथियाँ
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इसके अतिरिक्त
● शुक्ल पक्ष की प्रथम 5 तिथियों को भी अशुभ माना जाता है ||
● 6 से 10 तक की तिथियों को अधिक प्रबल माना जाता है ||
● 11 से 15 तक की तिथियों को पूर्ण शुभ माना जाता है ||
क्योंकि उस समय
चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं पर विचरण कर रहा होता है ||
● कृष्ण पक्ष की प्रथम 5 तिथियों को पूर्ण प्रबल माना जाता है ||
● बीच की 5 तिथियाँ मध्यम
● अंतिम की 5 तिथियाँ निबल होता है ||