शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
वैश्य विचार : वैश्य 5 प्रकार के होते है :-
● चतुष्पाद
● मानव ( द्विपद )
● जलचर
● वनचर
● और कीट
मेष वृष सिंह व धनु का उत्तरार्ध
मकर का पूर्वार्ध चतुष्पाद होते है ||
पर सिंह राशि चतुष्पाद होते हुए भी वनचर मानी गयी है ||
मिथुन कन्या तुला धनु का पूर्वार्ध
कुम्भ द्विपद या मानव संज्ञक मानी गयी है ||
मकर का उत्तरार्ध मीन कर्क जलचर होती है ||
इनमे से कर्क जलचर होते हुए भी कीट मानी गयी है ||
सिंह वनचर होता है ||
इसप्रकार वर-कन्या के वैश्य का निर्धारण उनकी राशि से कर लेना चाहिए ||
वैश्य विचार के पाँचो प्रकार के वैश्य
अपने स्वभाव एवं व्यवहार के कारण चार वर्गो में विभक्त किये गए है
● वैश्य
● मित्र
● शत्रु
● भक्ष्य
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
उदाहरणार्थ : मान लीजिये
वर का पुष्य नक्षत्र में वधु का उत्तरा फाल्गुनी के प्रथम चरण में जन्म हुआ है तो इन दोनों की राशियाँ क्रमशः कर्क एवं सिंह है तथा दोनों के वैश्य यथा क्रमेण कीट एवं वनचर है ||
वनचर एवं कीट परस्पर शत्रुभाव एवं भक्ष्यभाव रखते है अतः इनदोनो का वैश्य शुभ नही कहा जाएगा ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-1) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-2) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज