करणो में उपादेय कर्म
● बव में पौष्टिक कर्म मन्दिर जाना व्यापार करना व्रत करना ||
● बालव में स्वाध्याय यज्ञ ब्राह्मणों को दान देना विद्वानों का आदर करना ||
● कौलव में मैट्रिकर्ण एवं स्त्रीकर्म पित्रों सम्बन्धी मित्रता हठयोग ||
● तैतिल में सौभाग्यवती स्त्री के प्रिय कर्म ||
● गर में हल प्रवहण व् बीजारोपण ||
● वणिज में व्यापार करना ||
● विष्टि [ भद्रा ] में अग्नि युद्घ विषादि क्रूर कर्म ||
● शकुनि में मन्त्र-साधना औषध कर्मादि ||
● चतुष्पद में राज्य प्रशासनिक कर्म ||
● नाग में विषादि रसायनिक कर्म ||
● किंस्तुघ्न में मांगलिक कर्म करने प्रशस्त होते है ||
● शकुनि चतुष्पद नागादि अंतिम 4 करणों में पितृ कर्म करने प्रशस्त माने जाते है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज