मेलापक : दो युगलों की कुण्डली की ग्रह स्थिति और जन्म नक्षत्र के आधार पर उनकी प्रकृति एवं अभिरुचि में साम्यता तथा पूरकत्व का विचार को ही मेलापक कहा जाता है ||
समान स्वभाव एवं समान रूचि के लोगो में सहज प्रेम होता है ||
जो लोग एक-दूसरे के पूरक होते है ||
अथवा जो लोग एक-दूसरे पर आश्रित रहते है ; उनका साथ लम्बे समय तक चलता है ||
मेलापक में इसी समानता एवं पूरकता का विचार किया जाता है ||
दूसरे शब्दों में ,
मेलापक ज्योतिष शास्त्र की वह रीति
जिसके द्वारा किसी अपरिचित युगल की प्रकृति एवं अभिरुचि की समानता तथा जीवन के विविध पहलुओ में उनकी परस्पर पूरकता का विचार किया जाता है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
मेलापक के भेद
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दो भेद माने गए है
प्रथम
नक्षत्र मेलापक
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इस मेलापक में वर-वधु की प्रकृति एवं अभिरुचि की समानता का विचार करना ||
द्वितीय
ग्रह मेलापक
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इस मेलापक में मंगल शनि सूर्य राहु एवं केतु इन पांच ग्रहो की स्थिति उसके प्रभाववश दोष एवं अंततोगत्वा वर-वधु में पूरकत्व भाव का विश्लेषण करना ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी
नक्षत्र मेलापक में मुख्य विचारणीय
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इसमें 8 अष्टकूटों का विचार किया जाता है
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अष्टकूट
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वर्ण
वैश्य
तारा
योनि
ग्रहमैत्री
गण
भकूट
नाड़ी
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कुलयोग 36
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वर-वधु के जन्म नक्षत्रो से उक्त 8 बातो का विचार किया जाता है ||
जिन बातो में समानता या शुभता होती है ; उनके गुण या अंको का योग कर लिया जाता है ||
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-2) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-3) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-4) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-5) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
सीखिये वर-बधु की कुण्डली मिलान (अध्याय-1- भाग-6) : शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज