सन्तान योग :
● पञ्चम का स्वामी गुरु से युक्त हो व लग्न का स्वामी उच्च राशि में स्थित हों तो गुणी एवं यशस्वी पुत्र होता है ||
● पंचमेश गुरु से आलोकित होकर केंद्र 1-4-7-10 अथवा कोण 5-9 में होने से सन्तान होती है ||
● पंचमेश पञ्चम में उच्च के बृहस्पति से दृष्ट हो तो सन्तान उत्तम होती है ||
● पञ्चम भाव का पति अपनी परमोच्च राशि में होकर लग्न के स्वामी से युक्त होता हुआ केंद्र या त्रिकोण में हो तो ज्ञानी पुत्र प्राप्त होता है ||
● पञ्चम स्थान में कुम्भ राशि का शनि स्वतन्त्र होने से 5 पुत्र प्राप्त होते है || तथा शनि अपनी राशि 10-11 मकर कुम्भ से 5वें स्थान पर किसी भी राशि में हो तो एक पुत्र अवश्य ही जीवित रहता है और शेष नष्ट हो जाते है ||
● मंगल उच्च राशि का होकर पञ्चम में हो तो 3 पुत्र होते है ||
● बृहस्पति अपने घर का स्वामी होकर पञ्चम भाव में हो 5 पुत्र होते है ||
● पञ्चम भाव में गुरु या गुरु की राशि धनु या मीन हो तो प्रथम सन्तान नही बचती है ||
● धनु राशि में गुरु शनि का योग पञ्चम भाव में सन्तान बाधक होता है ||
● बृहस्पति से पञ्चम स्थान में शुभ ग्रह बलवान होकर स्थित होने से पुत्र प्राप्ति अवश्य होती है ||
● पञ्चम स्थान में मेष मिथुन सिंह तुला कुम्भ इन राशियों में से किसी एक के होने से पुत्र प्राप्ति निश्चय रूपेण हो जाती है ||
● पञ्चम स्थान में शुभ ग्रह हो अथवा शुभ ग्रह देखे तो सन्तान अवश्य होती है ||
● मेष लग्न में पंचमेश क्षीण हो और राहु लाभ स्थान में बैठा हो तो वृद्घावस्था में सन्तान का सुख प्राप्त होता है ||
● मिथुन लग्न में पंचमेश शुक्र बृहस्पति के साथ हो या दृष्ट हो तो प्रथम सन्तान पुत्र होता है ||
● सिंह लग्न हो तथा पंचमेश स्थान में मंगल और बुध की युति हो तो जुड़वा सन्तान होती है ||
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शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज