धर्म के बिना मानव पशु के समान माना जाता है । शास्त्रों के अनुसार अपना जीवन- यापन करने से ही मानव कहलाने का अधिकारी है। शास्त्रों में मनुष्य को पग-पगपर सत्-मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई है ।सनातन धर्म में वर्णित परंपराओं का उल्लंघन करने के कारण ही मानव दानव बनता जा रहा है। धर्मशास्त्रों का विरोध करके मन-माने ढंग से खान-पान ,रहन-सहन ,पूजा-पाठ एवं मंत्र साधना, जप ,योग आदि विहार के कारण ही पूरा संसार अशांति से त्रस्त हैं । शास्त्रों द्वारा बताए गये सात्विकता के मार्ग पर चलने में ही कल्याण है। आज देश का यह महान् दुर्भाग्य है, कि हमारे धर्मप्राण भारत में राजसी और तामसी वृत्ति बढ़ती जा रही है, तथा सत्वगुण क्षीण होता जा रहा है। दूसरे देशों की तरह हमारे देश में भी मार-काट कर अपना अधिकार बनाने में लोगों की तामसी बुद्धि काम कर रही है। जिससे पूरे समाज के लोग हाहाकार मचा हुआ है।आज देश में फूट और स्वार्थ की नीति नाश कर रही है,पता नहीं देश में क्या होगा ?भारत अखंड रहे और खंडित ना होने पाए ऐसा प्रयत्न करना चाहिए। मनुष्य शांति तो चाहता है।और शांति पाने के वह बहुत प्रयत्न भी करता है ।परंतु शांति के बदले में अशांति को ही प्राप्त करता है ।इसलिए हमें सोचना चाहिए ,कि जो रास्ते पर हम चल रहे हैं ,यह रास्ता ठीक है या नहीं !हम ज्यादातर अपने लौकिक सुखों को लक्ष्य में रख कर दूसरों की तरफ दृष्टि डालें बिना बहुत कुछ करते रहते हैं ।हम यह भूलते जा रहे हैं, कि अपने किए हुए कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है । पर हम अगर सनातन धर्मशास्त्रों के पथ- नियमों पर चलें मन में विश्वास रखकर, तो निश्चित ही हमें शांति का अनुभव होगा, एवं हम दूसरों को भी सुख शांति प्रदान कर सकते हैं ।धर्मशास्त्रों वाक्यों से प्राणी मात्र का कल्याण होना सुनिश्चित है ।