शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : भृगसहिता ज्योतिषशास्त्र भावो का महत्व
सप्तम भाव : यदि मनुष्य में वीर्यशक्ति तथा दूसरों से मिलकर चलने की इच्छा न हो तो भी वह संसार में असफल समझा जाएगा ||
अतः जीवनसाथी भागीदार वीर्य आदि का विचार सप्तम भाव से किया जाता है ||
कालपुरुष की कुण्डली के अनुसार सप्तम भाव में तुला राशि पड़ती है
अतः शुक्र ग्रह इस भाव का स्वामी एवं कारक भी है ||
व्यापारिक भागीदारी के कारण बुध ग्रह भी इस भाव का कारक होता है ||
इस भाव में शनि उच्च का फल देता है और सूर्य नीच का फल देता है ||
इस भाव को मैदानी संसार कहा जाता है ; क्योंकि यह जीवन का वह क्षेत्र होता है जिसमे काम एवं सम्पत्ति के बारे में जातक संघर्ष करता है ||
इस भाव से जातक के जन्म समय के स्थान के बारे में जाना जा सकता है ||
यह भाव विशेष तौर पर पत्नी का कारक [ स्त्री की कुण्डली में पति कारक ] है ||
पुत्री पौत्री एवं बहन का सम्बन्ध भी इसी भाव से देखा जाता है ||
जातक के विवाह कितने होगें ?
यह भी जानकारी इसी भाव से मिलती है ||
शिवयोगी श्रीप्रमोदजी इस भाव का सम्बन्ध दूरदर्शिता है ||
पूर्वजन्म के भाग्य का कितना अंश हम इस जन्म में लेकर आये है ; यह सातवें भाव में उपस्थित ग्रह के शुभ अशुभ होने से पता चलता है ||
इसके अतिरिक्त यह भाव वैवाहिक सुख समृद्घ घराने में विवाह बहुविवाह प्रेमविवाह तलाक विवाहसमय कामातुरता एवं मारकेश को भी दर्शाता है ||
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में प्रथम भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में द्वितीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में तृतीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में चतुर्थ भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में पञ्चम-भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में षष्ठ भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में सप्तम भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में अष्टम भाव)