शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज : भृगसहिता ज्योतिषशास्त्र भावो का महत्व
अष्टम भाव : मनुष्य के उपर्युक्त सभी गुण और मोक्ष प्राप्ति की साधनाएं निष्फल हो जायेगी यदि वह दीर्घायु न हो ||
अतः आयु का विचार अष्टम भाव से किया जाता है ||
यह भाव जातक के जीवन में आने वाली अशुभ हालात तथा
मुसीबतो को भी दर्शाता है ||
अष्टम भाव को सन्यास-अवस्था का भाव भी कहा जाता है ||
क्योंकि इसका कारक शनि ग्रह होता है ||
कालपुरुष की कुण्डली के अनुसार अष्टम भाव में वृश्चिक राशि पड़ती है जिसका स्वामी मंगल है ||
अतः मंगल भी एक भाव में कारक माना गया है ||
जातक का मकान अच्छी या बुरी किस जगह पर होगा इसी भाव से पता चलता है ||
रोगों में पूर्वजन्म के इस जन्म के रोग का आरम्भ रोग वृद्घि आदि इस भाव से जाना जाता है ||
जातक की मृत्यु किस प्रकार होगी इसी भाव से पता चलता है ||
विपरीत राजयोग एवं प्रचुर धन सम्पदा [ गडा हुआ धन ] आदि भी इसी भाव से पता चलता है ||
अष्टम भाव गूढ़ अन्वेषण वाला भाव है ||
क्योंकि खतरे में पड़ कर ही खोज और आविष्कार होते है ||
इसी भाव से पति पत्नी की वाणी का भी पता चलता है ||
इसके अतिरिक्त विदेश यात्रा आत्मघात आदि का भी पता चलता है ||
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में प्रथम भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में द्वितीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में तृतीय भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में चतुर्थ भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में पञ्चम-भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में षष्ठ भाव )
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में सप्तम भाव)
भृगसहिंता ज्योतिष में भाव का महत्व (भाव में अष्टम भाव)