डॉ विवेक आर्य : आसिफ खान उर्फ़ आशु भाई गुरु का भंडाफोड़ हो गया है। पिछले महीने दांती महाराज का नाम आया था। करीब करीब रोजाना देश के किसी न किसी भाग से ऐसी ख़बरें हमें रोजाना मिलती हैं। इन ख़बरों को पढ़कर अनेक लोग अनेक प्रकार से प्रतिक्रिया करते हैं।
1. आशुभाई एवं ऐसे अनेक बाबाओं के अंधभक्त- हमारे “गुरु जी” ने ऐसा कुछ नहीं किया है। उन्हें जानकर फंसाया जा रहा है। वे निर्दोष है। वे तो समाज सेवा का बहुत काम करते हैं।
2. आशुभाई एवं ऐसे अनेक बाबाओं के पूर्व भक्त- आखिर पाप का घड़ा एक न एक दिन फूटता अवश्य है। आशु भाई को उसके किये पापों की सजा मिल ही गई। हमने उसके इन कारनामों के चलते उसका साथ छोड़ दिया था। हम इसलिए चुप थे क्यूंकि हम अगर मुंह खोलते तो वो हमें पिटवा देता।
3. मीडिया- TRP के चक्कर में मीडिया इस जैसे मामलों को खूब उछालती हैं। विशेषकर जब मामला हिन्दू बाबाओं से जुड़ा हो तो समझों मीडिया के यह अवसर हिन्दू धर्म की मान्यताओं पर हमला करने के समान होता हैं। इस्लाम/ईसाइयत से सम्बंधित धोखाघड़ी में खानापूर्ति जैसे ख़बर यदा-कदा प्रकाशित होती हैं। ध्यान दीजिये ये दुकान चलाने वाले धोखेबाज हैं। इन्हें हिन्दू समाज का प्रतिनिधि नहीं अभिशाप समझे। मीडिया के अपरिपक्व दृष्टीकौन से अनेक हिन्दू युवा नास्तिक बन जाते हैं। ऐसा धर्म की मुलभुत परिभाषा को न समझ पाने के कारण होता हैं।
4. साम्यवादी विचारक- धर्म एक अफीम है। इसलिए हम ईश्वर और धर्म को नहीं मानते। हिन्दू धर्म ढोंगी बाबाओं की दुकान मात्र है। इसलिए धर्म का त्याग करो और तर्कशील बनो। सम्यवदी आपको सदा देश और धर्म के विरुद्ध राग अलापते मिलेंगे।
5. सनातनी हिन्दू- यह ईसाईयों का षड़यंत्र है। हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए। जैसे आशाराम बापू को जेल भेजा वैसे ही रामरहीम, दांती महाराज को भी भेज दिया। इन्हें समझाना सबसे कठिन हैं। सत्य का बोध होने पर भी सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे। धर्मभीरु अर्थात धर्म के नाप पर सदा भयभीत। लोक परलोक की चिंता। धर्म के नाम पर अन्धविश्वास को पुरजोर समर्थन। यही हिन्दू समाज के पिछड़ने का सबसे प्रबल कारण हैं।
6. मुसलमान और ईसाई – चुप रहकर मौके पे चौका लगाते है। आशु भाई का मामला कुछ अलग हैं। उसका असली नाम आसिफ खान निकला। इसलिए ये लोग अभी चुप रहेंगे। ये नहीं कहेंगे कि आसिफ खान ने धोखेबाजी की। गलत किया। चूँकि उसके पीड़ित हिन्दू है। इसलिए चुप रहकर मौन स्वीकृति दें इनकी मनोदशा को पूर्णत स्पष्ट करता हैं। अन्य हिन्दू बाबा होता तो पहले उसकी खबर खूब उछालते ताकि असंतुष्ट लोगों को अपने मत में शामिल करने का अवसर मिले।
7. नेता- सभी वोटों के लिए इन बाबाओं का चक्कर काटते हैं। आज एक बाबा की दुकान बंद हुई। कल दूसरे की खुल जाएगी। अभी तो ऐसे ऐसे हज़ारों है। दूसरा पकड़ लेंगे। हमें तो वोट चाहिए। कहीं से मिले। यह सोचने लायक प्रश्न है कि क्या इन धोखेबाजों से समाज की रक्षा करना शासक का कर्त्तव्य नहीं है।
8. आर्यसमाजी- मेरे जैसा आर्यसमाजी इन बाबाओं के पनपने का कारण, उसके निराकरण आदि पर विचार कर रहा है। धर्म की मूल परिभाषा के लोप होने, धर्म और मत/मतान्तर में भेद न समझ पाने, जातिवाद, अन्धविश्वास, अशिक्षा, दिखावा,राजनीतिक संरक्षण, लोगों के पुरुषार्थ से अधिक चमत्कार में विश्वास, आर्यसमाज जैसी संस्थाओं के संगठनात्मक रूप से शिथिल होने,धर्मगुरुओं के पाखंड आदि के चलते ऐसे डेरों/आश्रमों आदि का प्रचलनबढ़ने। वर्तमान में तथाकथित धर्मगुरुओं द्वारा धर्म का उपदेश देने के स्थान पर बड़े बड़े ऐशों आराम करने के आश्रम बनाने में रूचि रखने। वेदों की कर्म-फल रूपी शिक्षा का प्रचार प्रसार न होने आदि से यह समस्या उभरी हैं। इसलिए इसका समाधान भी केवल वेदों के सत्य सन्देश का प्रचार प्रसार हैं।
आईये मित्रों अपने सामर्थ्य से जितना हो सके वैदिक धर्म के सिद्धांतों को पहले अपने जीवन में उतारे फिर उनका प्रचार करे।