मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून : नव संवत्सर एवं आर्यसमाज स्थापना दिवस समारोह का आयोजन आज दिनांक 18-3-2018 को जिला आर्य उपप्रतिनिधि सभा, देहरादून की ओर से आर्यसमाज धर्मपुर सुमननगर, देहरादून में एक विशाल एवं भव्य पण्डाल लगाकर किया गया। इस कार्यक्रम में अनेक आर्यविद्वानों, आर्य विदुषियों एवं आर्यसमाज हरिद्वार के अधिकारियों एवं प्रतिनिधियों सहित देहरादून जनपद की अनेक आर्यसमाजों के पदाधिकारी एवं सदस्यगण भी सम्मिलित हुए। आयोजन में ऋषि भक्त आर्य भजनोपदेशक श्री धर्मसिंह जी सहित पं. वेदवसु शास्त्री एवं पं. उम्मेद सिंह विशारद के भजन हुए। आर्यसमाज स्थापना दिवस पर बोलते हुए देहरादून के प्रसिद्ध ऋषि भक्त डा. प्रो. नवदीप कुमार जी ने कहा कि आर्यसमाज की स्थापना मुम्बई में 10 अप्रैल सन् 1875 को हुई थी। आर्यसमाज की स्थापना को 143 वर्ष हो गये हैं। आर्यसमाज अभी वृद्ध नहीं हुआ है अपितु आज भी आर्यसमाज युवा है। आर्यसमाज में उतार चढ़ाव अवश्य आयें हैं। प्रश्न है कि आर्यसमाज की स्थापना की आवश्यकता क्यों पड़ी थी? प्रो. नवदीप जी ने कहा कि हमें उस दिन को याद करना चाहिये जिस दिन स्वामी दयानन्द मथुरा में गुरु विरजानन्द सरस्वती जी से दीक्षा लेकर कार्यक्षेत्र में प्रवृत्त हुए थे। गुरु विरजानन्द सरस्वती जी ने स्वामी दयानन्द जी को धार्मिक व सामाजिक जगत का अज्ञान दूर करने की प्रेरणा की थी। उस दिन से आर्यसमाज की स्थापना तिथि 10 अप्रैल, 1875 तक वह सोये नहीं थे। अन्धकार दूर करने में वह निरन्तर लगे रहे। उनके समय में सामाजिक रूप से समाज में जड़ता आ चुकी थी। समाज में चेतना नहीं थी। समाज में अनेक कुप्रथायें थीं। स्त्री शिक्षा का दरवाजा बन्द था। हिन्दू समाज में बाल विवाह प्रचलित थे। विघवाओं की दुर्दशा का उल्लेख कर विद्वान वक्ता ने कहा कि बाल विधवायें नारकीय जीवन व्यतीत करती थी। उनका पुनर्विवाह नहीं हो सकता था। समाज में दलितों व अन्यों के प्रति अस्पर्शयता की भावना व व्यवहार प्रचलित था। इस अस्पर्शयता का आधार व कारण जन्मना जाति व्यवस्था थी।
समाज में पौराणिकता व ब्राह्मणों का वर्चस्व था। वैश्य के घर में जन्मा बालक कितना भी विद्वान व ब्राह्मणोचित गुणों वाला हो, ब्राह्मण नहीं बन सकता था तथा ब्राह्मण के घर में उत्पन्न अपढ़ व मूर्ख बालक भी ब्राह्मण कहा व माना जाता था। ब्राह्मण वर्ग के सभी अधिकार ब्राह्मण परिवार में पैदा होने वाले बालक को प्राप्त होते थे। शूद्र बन्धुओं की दशा तो कुत्तों व बिल्लियों से भी खराब थी। दलितों की छाया को भी ब्राह्मण व अन्य वर्णों द्वारा अपशकुन माना जाता था और इसके लिए उन्हें प्रताड़ित किया जाता था। दलित भाई हजारों वर्षों से पिछड़े हुए थे। मीर कासिम के आक्रमण के बाद से हम पिछड़ते गये। मुसलमानों व अंग्रेजों ने आर्य हिन्दुओं को गुलाम बनाकर हमासे भयंकर अन्याय व शोषण किया। आर्य हिन्दू धर्मज्ञानी लोग वेद से सर्वथा अपरिचित थे। धर्मज्ञानियों में किसी मनुष्य का शंका समाधान करने की योग्यता नहीं थी। बंगाल में पढ़े लिखे कुछ बुद्धिमान लोग ईसाई बनना पसन्द करते थे। बंगाल के अनेक प्रमुख हिन्दू ईसाई बन गये थे। पूरा बंगाल ईसाईमय हो रहा था। ऋषि दयानन्द ने सब स्थिति को देखा, जाना व समझा। ऋषि दयानन्द जी जानते थे कि उनका जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है। मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना से पूर्व ऋषि दयानन्द राजकोट, अहमदाबाद आदि स्थानों पर आर्यसमाज की स्थापना कर चुके थे। महर्षि दयानन्द जी के इन स्थानों से अन्यत्र चले जाने पर यह आर्यसमाजें चल नहीं पाईं। इसके बाद ऋषि दयानन्द ने 10 अप्रैल सन् 1875 को मुम्बई में आर्यसमाज स्थापित किया। विद्वान वक्ता प्रो. नवदीप कुमार ने कहा कि ऋषि दयानन्द के देश व मानवजाति पर दो प्रमुख उपकार हैं। प्रथम उनके द्वारा सत्यार्थप्रकाश का लेखन किया जाना। दूसरा उन्होंने आर्यसमाज को प्रजातंत्र पर आधारित संस्था बनाया। स्वामी दयानन्द जी ने समाज में प्रचलित गुरुडमों को समाप्त कराया। स्वामी दयानन्द जी आर्यसमाज के प्रधान नहीं बने। उनके अनुयायियों द्वारा उनसे विनती करने पर उनका नाम सदस्य के रूप में आर्यसमाज के रजिस्टर में अंकित किया गया। आर्यसमाज में इसके प्रधान व मंत्रियों का निर्वाचन किया जाता है। आर्यसमाज के 10 नियम हैं। ये सभी नियम अकाट्य हैं। ऋषि दयानन्द जी ने सन् 1875 से सन् 1883 तक के मात्र 8 वर्षों में ही संगठित होकर प्रचार किया। इन वर्षों में देश में समाज ने अंगड़ाई ली। ऋषि दयानन्द जी के वैदिक साहित्य के कारण यह भावना पैदा हुई कि यदि देश में अंग्रेजों की दासता रहेगी तो आर्य हिन्दू समाज उन्नति नहीं कर सकता।
आर्य विद्वान डा. नवदीप कुमार ने कहा कि सन् 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई। इसके 3 साल बाद कांग्रेस में ऋषि दयानन्द भक्त लाला लाजपत राय जी ने प्रवेश किया। उन्होंने बताया कि लाला जी कांग्रेस के नेताओं की विधर्मियों की चापलूसी से त्रस्त थे। उन्होंने कहा कि लाला जी के पिता राधामोहन जी मुसलिम मत ग्रहण करना चाहते थे परन्तु लाला लाजपत राय ने बाल जीवन में ही उस घटना को टाल दिया था। प्रो. नवदीप जी ने कहा कि उन दिनों लोकप्रिय ‘कोहिनूर’ समाचार पत्र में लाला जी के लेख छपते थे। लाला जी के पिता सैयद अहमद खां के प्रशंसक थे। इस कारण से लाला जी अपने लेखों में अपना नाम न देकर स्वयं को सैयद अहमद खां के शिष्य का बेटा लिखते थे। विद्वान वक्ता ने कोहिनूर पत्र में प्रकाशित लाला जी के लेखों की विषय वस्तु के अनेक उदाहरण दिये। उन्होंने उन दिनों में कांग्रेस को अंग्रेजों का पिट्ठू बताया था। उन्होंने कहा कि उन दिनों की कांग्रेस अंग्रेज भक्त थी। विद्वान वक्ता ने यह भी कहा कि कांग्रेस में 85 प्रतिशत सदस्य आर्यसमाज के सदस्य होते थे। लाल-बाल-पाल की चर्चा कर उन्होंने कहा कि यह नेता भी आर्यसमाज के विचारों से प्रभावित थे। क्रान्तिकारियों की चर्चा कर प्रो. नवदीप जी ने कहा कि देश की आजादी में इन क्रान्तिकारियों के योगदान को जानबूझकर भुला दिया गया। इन सभी क्रान्तिकारियों ने भी आर्यसमाज से ही प्रेरणा ली थी। ‘इंडिया अनरेस्ट’ अंग्रेजी लेखक की अंग्रेजी पुस्तक की चर्चा कर उन्होंने कहा कि उन्होंने लिखा है कि उन दिनों कांग्रेस में आर्यसमाजी पृष्ठभूमि के ही अधिकांश लोग थे। विद्वान वक्ता ने आर्यसमाजियों के मातृभूमि की वन्दना एवं अन्य गुणों का वर्णन किया। प्रो. नवदीप जी ने पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा, राजस्थान के बारहठ परिवार के सदस्यों, पं. गेदाराम दीक्षित, पं. रामप्रसाद बिस्मिल आदि क्रान्तिकारियों के नामों का उल्लेख भी किया। इंग्लैण्ड में पं. श्यामजी कृष्ण वर्म्मा द्वारा बनाये ‘इण्डिया हाउस’ की चर्चा कर उन्होंने इंग्लैण्ड आने वाले विद्यार्थी युवको को भारत के महापुरुषों के नाम से छात्रवृत्तियां देने का उल्लेख किया और उन्हें देश की आजादी के महत्व को समझाया था। पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा जी की क्रान्तिकारी गतिविधियों का भी उन्होंने वर्णन किया और कहा कि प्रायः सभी क्रान्तिकारी आर्यसमाज की विचारधारा प्रभावित थे। विद्वान वक्ता ने कांग्रेस के नेता दादा भाई नैरोजी की चर्चा भी की। उन्होंने कहा था कि स्वराज्य शब्द मुझे ऋषि दयानन्द जी की पुस्तकों सत्यार्थप्रकाश तथा आर्याभिविनय से मिले हैं। दादा भाई नैरोजी ने यह भी कहा है कि हम आर्यसमाज के योगदान को भूल नहीं सकते।
प्रो. नवदीप कुमार जी ने गांधी जी की चर्चा की और कहा उन्होंने अफ्रीका में जन आन्दोलन किया था। भारत में आने पर स्वामी श्रद्धानन्द ने उनको अपना सहयोग दिया। रालेट एक्ट के विरोध में किए गये आन्दोलन की चर्चा कर उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने दिल्ली में आन्दोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने अंग्रेज सिपाहियों के विरोध करने पर अपनी छाती खोल दी थी और सिंहनाद कर कहा था कि हिम्मत है तो मेरे सीने पर मारो गोली। विद्वान वक्ता ने कहा कि अछूतोद्धार पर गांधी जी और कांग्रेस से सहयोग न मिलने के कारण स्वामी श्रद्धानन्द ने कांग्रेस व गांधी जी का साथ छोड़ दिया था और अछूतोद्धार व जाति तोड़क आन्दोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने कहा कि गांधी जी सन् 1942 के बाद राजनीतिक रूप से कुछ खास नहीं कर पाये। डा. नवदीप कुमार ने आर्यसमाज द्वारा हैदराबाद में वहां के निजाम के आर्य हिन्दू मत विरोधी रूख व उत्पीड़न के विरोध मे किये गये आर्य सत्याग्रह का भी उल्लेख किया। इस आन्दोलन में देश भर के बारह हजार युवकों ने भाग लिया था और हैदराबाद के नवाब को घुटने टेकने पर मजबूर किया था। उन दिनों हिन्दुओं के उचित मानव धार्मिक अधिकारों के लिए किए गये इस सत्याग्रह में गांधी जी के कारण कांग्रेस ने साथ नहीं दिया था। इसके विपरीत हिन्दू महासभा के सुप्रसिद्ध नेता एवं देशभक्त वीर विनायक दामोदर सावरकर जी ने आर्यसमाज से सहयोग किया। प्रो. नवदीप जी ने यह भी बताया कि वीर सावरकर जी ने अपने ग्रन्थ ‘हिन्दुत्व’ में लिखा है कि आर्यसमाजियों ने सन् 1885 से 1947 तक स्वतन्त्रता आन्दोलन में कांग्रेस का साथ दिया। सावरकर जी ने यह भी कहा है कि हिन्दुओं में सर्वश्रेष्ठ आर्यसमाजी हैं। डा. नवदीप जी ने बताया कि वीर सावरकर की ही प्रेरणा से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस देश छोड़कर देश से बाहर गये थे और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने वहां आजाद हिन्द फौज गठित की थी। विद्वान वक्ता ने कहा कि नेताजी ने आजाद हिन्द फौज में जो लघु पुस्तकें बांटी थी वह सब आर्यसमाज की देशभक्ति की विचारधारा व मान्यताओं के अनुकूल थी। उन पर आर्यसमाज के विचारों का प्रभाव था। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए डा. नवदीप कुमार जी ने कहा कि आर्यसमाज को आगे बढ़ाने के लिए संगठन में एकता एवं जुझारुपन जरूरी है।
प्रो. नवदीप कुमार जी के बाद वेद विदुषी डा. श्रीमति सुखदा सांलंकी जी, श्री प्रदीप मिश्र जी, डा. धनंजय जी और वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने भी समारोह को सम्बोधित किया। इन के विचार हम अलग से प्रस्तुत करेंगे। गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारियों ने शान्तिपाठ के मंत्र का सस्वर पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन जिला सभा देहरादून के मंत्री श्री महेन्द्र सिंह चौहान ने किया। सभा के प्रधान श्री शत्रुघ्न कुमार मौर्य ने सभी दानियों, सहयोगियों व समारोह में सम्मिलित लोगो का आभार व्यक्त कर धन्यवाद किया। कार्यक्रम के समापन पर ऋषि लंगर की व्यवस्था भी की गई थी।
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।