विनोद कुमार सर्वोदय : 26 अक्टूबर 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ( इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 ) के अनुसार जिस विलय पत्र पर कश्मीर के राजा हरिसिंह ने हस्ताक्षर किये थे वह पूर्णतः बिना किसी शर्त के था। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी राज्य के भारत में विलय के निर्णय का संपूर्ण अधिकार केवल वहाँ के शासक का ही होता था। इस पर भी राजा हरिसिंह ने यह स्पष्ट कर दिया था कि इस विलय पत्र में कोई भी परिवर्तन या संशोधन हो तो उनकी स्वीकृति आवश्यक होगी । भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर 1947 को उस विलय पत्र पर अपने हस्ताक्षर करके उसी रूप में उसे स्वीकार किया था । लेकिन माउंटबेटन ने जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के कबाइलियों व सेना ने आक्रमण कर देने के कारण वहाँ की असामान्य स्थिति का अनुचित लाभ उठाते हुए अपनी कुटिल चाल चलते हुए राजा हरिसिंह को एक अलग पत्र द्वारा यह बताया कि भविष्य में जब कश्मीर राज्य की स्थिति सामान्य हो जाएगी और आक्रमणकारी निकाल दिए जाएँगे तो इस विलय पर वहाँ की जनता से राय ली जाएगी । पर “इस पत्र का कोई वैधानिक अधिकार नहीं था क्योंकि इस प्रकार के सशर्त विलय का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं था”। ध्यान रहे देश की अन्य समस्त 568 देशी रियासतों के समान ही जम्मू-कश्मीर का बिना शर्त भारत में विलय हुआ था। अतः जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय अन्य रियासतों के समान ही अविवादित, बिना शर्त व पूर्ण था । आज जो लोग अपनी कुटिल राजनीति के कारण देश को भ्रमित कर रहे हैं वे भारत विरोधी ही हो सकते हैं।
▶विभाजनकारी ‘अनुच्छेद 370’ ➖
भारतीय संविधान का अनुछेद 370 कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है , जिसके अनुसार रक्षा, विदेश व संचार नीति जैसे महत्वपूर्ण विषयों को छोड़कर बाकी सभी विषयों पर राज्य सरकार की सहमति आवश्यक होगी । कश्मीर के लोग भारत के किसी भी भाग में भूमि खरीद सकते हैं, चुनाव लड़ सकते हैं परंतु शेष भारत के लोग वहाँ न तो भूमि खरीद सकते हैं और न ही वहाँ कोई चुनाव लड़ सकते हैं । जम्मू-कश्मीर के लोग भारत के नागरिक हैं, परंतु शेष भारत के लोग इस राज्य के नागरिक नहीं माने जाते। इससे भारत व कश्मीर के नागरिकों के विरुद्ध आपसी भेदभाव बढ़ता जा रहा है । यही कारण है कि भारत विरोधी व अलगाववादी मानसिकता को प्रोत्साहन भी मिलता आ रहा है। यहाँ के लोगों को एक प्रकार से राज्य व केंद्र की दोहरी नागरिकता मिली हुई है। इस अनुच्छेद के कारण देश के 134 कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो पा रहे हैं। यदि ये कानून शेष देश के नागरिकों के हितों पर चोट नहीं करते तो जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के लिये कैसे हानिकारक हो सकते हैं ? इस अनुच्छेद के कारण वहां का क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ रहा है क्योंकि जम्मू व लददाख के लोगों से सरकारी नौकरियों व विकास कार्यों में भेदभाव करते हुए कश्मीर घाटी को प्रमुखता दी जाती रही है। इसके रहते यहाँ की अधिकांश हिन्दू जातियों को जो पिछड़ी हुई हैं भारतीय संविधान के अनेक प्रावधानों के लागू न होने कारण आरक्षण भी नहीं मिलता जिससे इन हिन्दुओं के और अधिक पिछड़ने से गरीबों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
इस अनुच्छेद का अधिकांश लाभ सामान्य जनता को नही केवल वहां के सत्ताधारियों व अलगाववादियों को ही मिल रहा है । इसके कारण अलगाववादियों, आतंकियों एवं भारतीय ध्वज व संविधान का अपमान करने वालों पर कठोर कार्यवाही भी नहीं हो पाती । सन् 2002 में पूरे देश मे लोकसभा क्षेत्रों का पुनर्गठन हुआ था पर इस विवादित अनुच्छेद के चलते यह जम्मू-कश्मीर में नही हो सका। क्या ऐसे में भारतीय संसद की भूमिका वहाँ अप्रासंगिक नहीं हो गई ? अतः यह विचार करना होगा कि अनुच्छेद 370 के होते वहाँ के सामान्य नागरिकों को क्या लाभ हुआ और अगर देश के अन्य कानून वहां लागू होते तो उन्हें कितना लाभ होता ?
वास्तव में जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ने का विरोध सभी राजनीतिक दलों , संविधान सभा व कांग्रेस कार्य समिति के सभी सदस्यों एवं जम्मू-कश्मीर के चारों प्रतिनिधियों ने भी किया था । संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर ने भी इस अनुच्छेद के पक्षधर पं जवाहरलाल नेहरु को समझाया था कि इस प्रकार के विशेष दर्जे से कश्मीर घाटी में भारतीय राष्ट्रवाद की पकड़ समाप्त हो जाएगी और भविष्य में कश्मीर के युवा अलगाववाद के रास्ते पर चलकर पाकिस्तान की गोद में चले जाएंगे । डॉ अंबेडकर ने अनुच्छेद 370 की फिरकापरस्ती जिद्द पर अड़े शेख अब्दुल्ला से भी स्पष्ट कहा था ” तुम यह तो चाहते हो कि भारत कश्मीर की रक्षा करे , कश्मीरियों को पूरे भारत में समान अधिकार हो, पर भारत और भारतीयों को तुम कश्मीर में कोई अधिकार देना नहीं चाहते। मैं भारत का कानून मंत्री हूँ और मैं अपने देश के साथ इस प्रकार की धोखाधड़ी और विश्वासघात में शामिल नहीं हो सकता”। इतने विरोध के उपरान्त भी जम्मू-कश्मीर के एक विशेष समुदाय (मुस्लिम) व शेख अब्दुल्ला को प्रसन्न रखने के लिये इस विभाजनकारी अनुच्छेद को नेहरु जी ने स्वीकार करके देश में धर्मनिरपेक्षता , लोकतंत्र और संघीय ढाँचे के स्वरूप को अपनी अड़ियल व अधिनायकवादी प्रवृत्ति के कारण बिगाड़ने का कार्य किया था।
▶अनुच्छेद 370 को हटाना कठिन नहीं➖
उस समय ऐसा भी कहा गया था कि पाकिस्तानी आक्रमण की पृष्ठभूमि में शेख अब्दुल्ला की कुटिल सलाह पर इस विशेष अनुच्छेद का प्रावधान नेहरु जी ने स्वीकारा, जिससे जनमत संग्रह की स्थिति में स्थानीय नेता होने के कारण शेख अब्दुल्ला भारत के पक्ष में रहेगा। शेख अब्दुल्ला ने भी यह माना था कि यह अनुच्छेद अपरिवर्तनीय नहीं है। जम्मू-कश्मीर के एक पूर्व मुख्यमंत्री जी.एम. सादिक़ ने भी सार्वजनिक रूप से इसको समाप्त करने को कहा था। कश्मीर की संविधान सभा के 1957 में समाप्त होते ही इस अनुच्छेद की प्रासंगिकता शेष नहीं रहती और वैसे भी इस सभा के निरस्त होने के बाद इसके सारे अधिकार लोकसभा को दिये गये हैं । अतः जो लोग जम्मू कश्मीर की संविधान सभा को पुनर्गठित करने की बात करते हैं, वह बिल्कुल निराधार है।संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 370 के शीर्षक में “जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थायी उपबंध” लिखकर इसे निहायत अस्थायी व्यवस्था के रूप में लिखा था। विधि-विशेषज्ञों के अनुसार इसके उपखंड (3) में इसको समाप्त करने की साफ साफ व्यवस्था है कि इसे संविधान से खारिज करने के लिए लोकसभा की किसी बैठक की आवश्यकता नहीं है । राष्ट्रपति एक साधारण उद्घोषणा द्वारा इसे समाप्त कर सकते हैं।प्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ सुब्रमणियन् स्वामी ने भी यह स्पष्ट बताया था कि केंद्रीय मंत्रिमंडल भी अगर इस अस्थायी अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की विधिवत् अनुशंसा राष्ट्रपति को भेजे तो वह उसे स्वीकार करके इस दशकों पुरानी विवादित समस्या का निदान करने में सक्षम हैं। इस विवादकारी अनुच्छेद के कारण ही पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग नही मानता। अतः इसको हटाने की माँग को सांप्रदायिक रंग देना दुःखद है। बल्कि वास्तविकता यह है कि इस अनुच्छेद के हटने से जम्मू-कश्मीर के भारत मे पूर्ण विलय सम्बन्धित सभी भ्रम दूर हो जाएंगे। वैसे भी जम्मू-कश्मीर के दोहरे स्तर को समाप्त करके मूलधारा से जोड़कर सशक्त भारत के निर्माण के लिये इसको हटाना अति आवश्यक है।
विनोद कुमार सर्वोदय , (राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक), गाज़ियाबाद