मित्रों!वैसे तो हिन्दुस्तान1947 में आज़ाद हुआ। लेकिन उसका एक क्षेत्र ऐसा भी है, जो उससे भी पहले स्वतंत्र हो गया था। वह एक ऐसी खूबसूरत जगह है, जो आज देश की सबसे बड़ी “टूरिस्ट डेस्टिनेशनस” में से एक है| हम जिसकी बात कर रहे हैं,वह जगह है “अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह”।
मित्रों!क्या आपने कभी सोचा भी है कि यह जगह कई दूसरे देशों के सबसे नज़दीक होते हुए भी यह द्वीपसमूह भारत का ही हिसा क्यों बना?जबकि मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया और म्यांमार जैसे देश इस द्वीपसमूह के ज्यादा नजदीक हैं। वैसे यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं कि “अंडमान- निकोबार द्वीपसमूह” बाकी सभी देशों से पहले स्वतंत्र हो गया था। वैसे ही यह द्वीपसमूह भारत हिस्सा क्यों बना? इसके कारणों के बारे में भी सबको पता नहीं है|
मित्रों!यह द्वीपसमूह अंग्रेजों के चंगुल से छूटने वाला भारत का पहला टुकड़ा था। “अंडमान निकोबार द्वीपसमूह” को स्वतंत्र कराने का यदि किसी को श्रेय जाता है तो,वह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को जाता है।यह जमीन भारत की पहली आज़ाद होने वाली ज़मीन थी।यह सब ऐसा मुमकिन हो पाया था,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जज्बे की वजह से| द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होते ही नेताजी जर्मनी से सिंगापुर आए और उसके बाद उन्होंने भारतीयों से यह वादा किया था कि सन् 1943 के आते आते वे अपनी धरती पर अपना झंडा जरूर ही फहराएंगे।इसी दौरान “अंडमान द्वीपसमूह” पर “जापानी नवल कोर्स” का कब्ज़ा हो गया था।क्योंकि इस जमीन पर से अंग्रेजों ने तो बिना कोई लङाई लड़े ही मैदान छोड़ दिया था और यहाँ से कालापानी कैद में कैद सभी राजनीतिक कैदियों को निकालकर ब्रिटिश अफसरों और सैनिकों को बंदी बनाकर बर्मा भेज दिया गया था।इसके बाद “आज़ाद हिन्द फौज” जापानी सेना को इस बात पर मनाने में कामयाब रही कि वह “अंडमान निकोबार द्वीपसमूह” को “आज़ाद हिन्द” सरकार को सौंप दें।सन् 1943 में नेताजी “पोर्ट ब्लेयर” में उतरे और वहां जापानी मिलिट्री कमांडर से मिले। फिर नेताजी ने अपने देशवासियों से किए गए वादे को निभाने के लिए 30 दिसम्बर,1943 को “अंडमान निकोबार द्वीपसमूह” में भारत का तिरंगा फहराया।
मित्रों!इस द्वीपसमूह से भारत का पहले से ही क्यों इतना गहरा सम्बन्ध था?विश्व प्रसिद्ध “सेलुलर जेल या कालापानी की जेल “अंडमान निकोबार द्वीपसमूह” में ही थी|अंग्रेज अपने सभी कैदियों को इसी जेल में सजा देकर भेजा करते थे|हमारे सबसे बड़े क्रान्तिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को भी इसी जेल में भेजा गया था।इस जेल में भेजे गए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों में से प्रमुख थे विनायक दामोदर सावरकर, योगेन्द्र शुक्ल, बटुकेश्वर दत्त, मौलवी लियाकत अली,नंदगोपाल, भाई परमानन्द, और वामनराव जोशी।किंतु!अंग्रेजों ने गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद तथा अपने चाटुकार कांग्रेसियों को इस जेल में सजा काटने नहीं भेजा।यदि भेजते तो उन्हें पता चल जाता कि कैद कैसी होती है।इसका साफ संदेश जाता है कि अंग्रेजों की दृष्टि में गांधी और नेहरू सामान्य तथा टुकङेल क्रांतिकारी थे।
मित्रों!अब तो आपको पूरा विश्वास हो गया होगा कि यदि इस द्वीपसमूह पर 30 दिसम्बर,1943 को नेताजी ने “आजाद हिंद फौज” सरकार की स्थापना कर तिरंगा नहीं फहराया होता तो इस देश को भी अगस्त,1947 में अंग्रेज छोङकर नहीं जाते।नेताजी के डर से ही अंग्रेजों ने इस देश को विभाजित कर हिन्दू-मुस्लिम राष्ट्रों की नींव गढी।इस द्वीपसमूह पर जब आजाद हिंद फौज ने अपनी सरकार कायम करली तो नेहरू और गांधी के दिल भी दहल गए कि अब तो हमारे सपने फलीभूत नहीं हो सकेंगे।सुभाष कभी भी अपने स्वभाव के अनुसार कूटनीतिक चाल चलकर अंग्रेजी वर्चस्व को खत्म कर देगा।लेकिन इस देश के भाग्य में इन चोर लुटेरों के हाथ में बटेर ही लगनी थी,सो लगी।लेकिन यह द्वीपसमूह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज सरकार का होने के कारण ही भारत का अंग बना और किसी अन्य इसके नजदीक लगने वाले देशों ने दावा नहीं किया।यह थी हमारे राष्ट्रवादी क्रांतिकारी और अमर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी सुभाष चंद्र बोस की कूटनीतिज्ञता और राष्ट्र की सेवा।