अमित तोमर, देहरादून : भारत के हर खिलाड़ी को मेरा नमन !
भारत में पैसों की बरसात खिलाड़ियों पर जीतने के बाद ही क्यों होती है ? सोचो अगर पहले इतना प्रोत्साहन मिले तब ?
आजकल भारत के कथाकथित बुद्धिजीवी अपने पूरे ज्ञान को ओलिम्पिक खेलों में भारत के निराशाजनक प्रदर्शन पर अपनी भोंडी एवम् घटिया टिप्पणियो से व्यक्त कर रहे है, शोभा डे जैसी लेखिका जिसकी कलम केवल सेक्स तक सीमित रहती है आज स्पोर्ट्स पर लिख रही है।
परंतु सच में यह प्रश्न विचारणीय है कि 130 करोड़ की आबादी में क्यों 130 पदक विजेता पैदा नही होते ?
राष्ट्रीय स्तर पर SAI (Sports Authority of India) जैसे संस्थानों पर सरकार प्रतिवर्ष अरबों रूपये खर्च करती है, भारत में लगभग हर राज्य में स्पोर्ट्स कॉलेज खुले है जिनमे किसी आम बच्चे का प्रवेश हो जाना असंभव है। राज्य स्तर पर करोड़ों रूपये खेल और खिलाड़ियों पर खर्च होते है । स्कूल-कॉलेज में लाखों रुपयों का बजट खेल के लिए रखा जाता है।
फिर क्यों हम हर बार औंधे मुहँ गिरते है ?
क्यों भारत के 130 करोड़ लोग हर बार पराजित होते है ?
सोचो ?
जवाब कठिन नही।भारत में खेल का सारा पैसा सरकार खा जाती है। भारत में खेल और खिलाडी सभी राजनीती की भेंट चढ़ जाते है। एक नेता जिसने कभी हॉकी स्टिक हाथ में ना पकड़ी हो वो IHF का बाप बना दिया जाता है। एक गुंडा जिसपर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हो उसे ओलिंपिक संघ का प्रधान सरकार नियुक्त कर देती है! (बृज भूषण शरण सिंह ने कौनसे तीर खेलों में चलाये जो उसे रेसलिंग संघ का अध्यक्ष बनाया गया)। भारत में खेल गुंडे खेलते है खिलाडी नही। एक खेल बताओ जिसका जिम्मा किसी खिलाडी के पास हो। सभी Sports Federation के आका राजनैतिक लोग या IAS/IPS मिलेंगे। यदि 1947 से लेकर 2016 तक के सच्चे आंकड़े सामने ला दूँ तो आप खेल में बच्चों को डालना ही बन्द कर दोगे। भारत में खेलों की दुर्दशा का कारण भारत की सरकार और नौकरशाही है।
भारत के खिलाडीयो को जो गाली दे उसके गाल पर खींच कर तमाचा मार दो। ऐसी विकट और घिनोनी राजनीती के बीच भी हमारे बच्चे मैडल लाते है।
गर्व है भारत के हर खिलाडी पर जो इतना प्रताड़ित होने पर भी माँ भारती के मान पर मर-मिटता है।
भारत के हर खिलाड़ी को मेरा नमन !