पंचकूला, 4 जुलाई: जो लोग महान हुए हैं उन्होंने कार्य और ज्ञान को पूजा है यश और धन तो स्वयं चला आता है । जिन लोगों ने निर्माण किया और जो लोग सफल हुए हैं उनकी शक्तियों का आधार एक अदृश्य और असीम वह शक्ति है जो मानव सीमा से बाहर है । ये है अध्यात्म की शक्ति ,अध्यात्म का अर्थ पूजा से लिया जाता है पर इसकी व्याख्या को सीमित नही किया जा सकता । यह अद्भुत ताकत है और एक दिन हर इन्सान इसकी शरण में आता है ,मैंने पाया जो जितना सफल है वो उतना ही अध्यात्मिक भी है । आपने देखा होगा अध्यात्मिक शक्ति से बंधा आदमी का दिल बड़ा विशाल होता है वह भेद -भाव नही मानता सम भाव में रहता है उसका हर काम बड़ा होता है । ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने पंचकूला सैक्टर-12ए तेरापंथ भवन मे कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा असीम को पाना है तो निरर्थक की धारणा को त्याग दो । जो करता वह ख़ुद को आगे नही रखता वह तो ओरों के द्वारा सराहा जाता है । मनीषीसंत ने कहा सफल ब्यक्ति हर कार्य को गंभीरता से लेता है उसका दिल,दिमाग और काम तीनो का अच्छा ताल -मेल होता है । हम अपनी क्षमता का बहुत छोटा सा हिस्सा अपने विकास पर खर्च करते है ,क्यों की हम क्या कर सकते हैं ये हम कभी नही सोचते एक लकीर पर चल कर जीवन गुजार देते हैं । हम अपनी उर्जा खर्च करते है दूसरो पर प्रभाव जमाने के लिए अपना गुण ,बुद्धि और दिमागी ताकत को इसमे ज्यादा खर्च करते है ,अपना बड़प्पन दिखाने के लिए हम अपनी पूरी क्षमता लगा देते हैं और दूसरी तरफ़ इसका प्रभाव हम पर भी पड़ता है हम भी यही देखते है की अमुक ने ऐसा किया तो मैं क्यों नही इस व्यर्थ के प्रभाव में हम भी वही करते हैं हासिल कुछ नही होता । मंजिल के प्रति स्पष्टता हो तो एक दिन जरुर पहुचेंगे, ज्ञान एक ऐसा समुद्र है जिसमे जीवन भर विद्यार्थी बने रहना चाहिए । ज्ञान ही हमारा मित्र है ,हमारा मार्ग दर्शक है ज्ञान के बिना मनुष्य की कल्पना नही हो सकती । ज्ञानी की दृष्टि ब्यापक होती है वह हर काम में मन लगा लेता है ,वह तनावग्रस्त नही रहता ,निराश भी नही होता ,वह जानता की हमको क्या करना है ,कैसे करना है उसकी बुद्धि सार्थक होती है ,रचनात्मक होती है वह जंगल में भी मंगल खोज लेता है .उसे हर काम में आनंद आता है ,वह हरदम सीखता है जिज्ञासु होता है अपनी योग्यता को बढ़ता रहता है ,तभी तो ज्ञानी ब्यक्ति सम्रद्ध होता है ।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया हम मनुष्य है कार्य तो करना ही पड़ेगा और कारण भी हजारों है पर ध्यान यह देना है की किया हुआ कार्य ब्यर्थ न हो और सार्थक कर्म करे यही तो है कर्म की सफलता। सफलता में विकास का सम्बन्ध हो तो जादुई व्यक्तित्व का निर्माण होता है और व्यक्ति महान बन जाता है । हर कोई चाहता है सफल होना अमीर ,गरीब ,गृहस्थ ,व्यापारी और धार्मिक सभी अपने को शिखर पर देखना चाहते है ,अपने कार्य क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं । हमारा योग शास्त्र कहता है कुछ नियमो का पालन करो अवश्य विकास होगा। यदि हम अपनी सूक्ष्म गलतियों पर निगाह रख सके तो कार्य और कारण का विश्लेषण कर सकते हैं और जब यह ज्ञान हमें हो जायेगा तो काम बनेगे । हमारी शक्ति तो सूक्ष्म में है -मन में ,बुद्धि में ,विचार में और वो जब नियंत्रित होगा तो कुशलता बढेगी, इसकी मात्रा इसकी पवित्रता पर होती है की हम कितना पवित्र सोचते है ,एक सदाचारी ही स्वयं पर नियंत्रण रख सकेगा । ऐसा करके हम अनायास ही बहुत सारी कठिनाइयों से स्वत: निकल जाते हैं और असफलताएं टाली जा सकती हैं ।