मदन गुप्ता सपाटू , ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़ : कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर पड़ने वाली अहोई माता का व्रत शनिवार को आ रहा है। शनिवार की दोपहर एक बज कर 11 मिनट पर सप्तमी समाप्त हो जाएगी तथा अष्टमी लग जाएगी जो रविवार की दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। जहां करवा चैथ का व्रत पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है वहीं अहोई अष्टमी का व्रत संतान की सुरक्षा व लंबी आयु के उद्ेश्य से रखा जाता है। उल्लेखनीय है कि दोनों व्रत ही निर्जल रखे जाते हैं और चंद्र दर्शन के बाद ही खोले जाते हैं।
पारंपरिक कथानुसार एक महिला द्वारा मिटट्ी खोदते समय अनजाने में सेही के बच्चे मारे गए थे । इसका पश्चाताप करने और जीव जंतुओं व वन्य प्राणियों विशेषः तौर पर गाय माता कीे सेवा , अहिंसा व दया भाव दिखाने का संकल्प करने के लिए इस व्रत का विधान रखा गया है। इस व्रत से यह संदेश भी जाता है कि हर कार्य बहुत सतर्कता व हर प्रकार के निरीक्षण , परीक्षण सोच विचार करने के बाद ही करना चाहिए ताकि जल्दबाजी में किसी की हानि , जाने – अनजाने भी न हो। इस व्रत पालन से संतान सुख एवं बच्चों से सुख प्राप्त होने का प्रतिफल मिलता है।
व्रत कब रखें ?
पूजा का मुहूर्त- षनिवार
सायं – 05 बजे से 6 बज कर 17 मिनट तक
सितारे देखने का समय- 05 बजकर 30 मिनट पर
चंद्र दर्शन- रात्रि- 11 बजकर 06 मिनट पर
क्या है अहोई अष्टमी ?
करवा चैथ के 4 दिन बाद और दीपावली से एक 8 पूर्व पड़ने वाला यह व्रत, पुत्रवती महिलाएं ,पुत्रों के कल्याण,दीर्घायु, सुख समृद्धि के लिए निर्जल करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सायंकाल घर की दीवार पर 8 कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। इसके साथ ही स्याहू माता अर्थात सेई तथा उसके बच्चों के भी चित्र बनाए जाते हैं। आप अहोई माता का कैलेंडर दीवार पर लगा सकते हैं।पूजा से पूर्व चांदी का पैंडल बनवा कर चित्र पर चढ़ाया जाता है और दीवाली के बाद अहोई माता की आरती करके उतार लिया जाता है और अगले साल के लिए रख लिया जाता है। व्रत रखने वाली महिला की जितनी संतानें हों उतने मोती इसमें पिरो दिए जाते हैं। जिसके यहां नवजात षिषु हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो , उसे अहोई माता का उजमन अवष्य करना चाहिए।
विधि
एक थाली में सात जगह 4-4 पूरियां रखकर उस पर थेाड़ा थोड़ा हलवा रखें। चंद्र को अध्र्य दें । एक साड़ी ,एक ब्लाउज,व कुछ राशि इस थाली के चारों ओर घुमा के , सास या समकक्ष पद की किसी महिला को चरण छूकर उन्हें दे दें।
वर्तमान युग में जब पुत्र तथा पुत्री में कोई भेदभाव नहीं रखा जाता , यह व्रत सभी संतानों अर्थात पुत्रियों की दीर्घायु के लिए भी रखा जाता है।
पंजाब ,हरियाणा व हिमाचल में इसे झकरियां भी कहा जाता है।