अमित तोमर , देहरादून : उत्तराखंड में एक नई प्रजाति विकसित हुई है जिसका नाम है-नेता पुत्र, यह ऐसी संताने है जिन्हें ना हगने का पता है ना मूतने का। महंगी SUV गाड़ियों में चलने वाली इस दिशाहीन प्रजाति को मैंने ‘परजीवी’ से अलंकृत किया है। यह ऐसी औलादे है जिनके माँ-बाप बड़े-बड़े नेताओ के तलवे चाट या उनके बिस्तर पर सोते हुए सत्ता में पहुंचे। सत्ता मिली तो अँधा पैसा भी आया और इन परजीवियों का भरपूर पोषण हुआ। जब पढ़-लिख नही सके (वैसे अधिकाँश नेता पुत्र किसी ना किसी शिक्षण संस्थान के मालिक अवश्य है ताकि अनपढ़ जनता इन्हें भी पढ़ा-लिखा माने) तो इन परजीवियों को इनके राजनेता माँ/बाप ने नेतागीरी में उतार दिया। इनका काम था ‘चिंटू पालन’ अर्थार्थ उन कार्यकर्ताओ को पालना जो इनके राजनेता बाप/माँ की चाकरी करते है। कॉलेज के छात्र नेता, पार्षद एवम् राजनैतिक महत्वकांशा पाले अंजे-गंजे जिन्हें अपने काले धंदो के लिए सफ़ेद संरक्षण की तलाश रहती है। 30-40 साल जनता का खून चूस जब नेता जी रिटायर हो जाते है तो इन मंदबुद्धि परजीवी नेता पुत्रों को कमान मिल जाती है।
उत्तराखंड में ऐसे परजीवियों की पूरी फ़ौज तैयार है। सफ़ेद लिनन की पैंट-शर्ट, आँखों पर RayBan/Gucci का चश्मा, लंबी गाडी में 6 चेले जो इन परजीवियों की चाटने में कोई कसर नही रखते, और सामने खड़ी असहाय मासूम जनता जो इन्हें ही विधायक/सांसद मानने को बेबस है।
आज ही एक विधायक पुत्र का पोस्ट पढ़ा। उसकी मंदबुद्धि देख हंसा और भारत के संविधान को जी भर कर कोसा। अरे जब चपरासी के लिए भी इम्तेहान होता है तो नेताओं के लिए क्यों नही।
इन नेता पुत्रों के पास पैसा है, चमचे है पर बुद्धि नाम की भी नही। क्या होगा इस देश का यदि इन परजीवियों को सत्ता सौंपी।
शायद भारत में भी ग्रह युद्ध निकट है।