यह वह धरती है, जहां वीर उगाये जाते हैं,तलवारों की धारों पर, शीश चढ़ाये जाते हैं।क्या कोई जीतेगा इसको, हार सुलाई जाती है,शौय-तेज की हर सुबह,रक्त सींच बुलाई जाती है।युद्ध मृत्यु का सतत् मंजर, सारे जग ने देखा है,अथक हिन्दू पथ है निरंतर, यह सब को संदेशा हैं।
10 मई 1857 को प्रारम्भ हुए इस प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के पहले सेनानी मंगल पांडे जी को शत शत नमन।
इस प्रथम युद्ध में सारा देश जाति ,भेद , मजहब को भुलाकर अंग्रेजो के विरुद्ध डट गया था ! विजय के नजदीक पहुंच कर हार के बावजूद अंग्रेजो को अपनी युद्ध नीति बदलनी पड़ी ! सीधे युद्ध के बजाय समाज मे फूट डालकर इसके टुकड़े टुकड़े कर दिये, 100 वर्षो तक राज किया, तथा जाते जाते अपने शुभचिंतको को राज दे गए !
जो आज भी उन्ही की नीतियों पर चल रहे है , जिसका दुष्परिणाम आज सारा देश भुगत रहा है |