मदन गुप्ता सपाटू : उस दिन वे कतई पहचान में नहीं आ रहे थे। वे अक्सर रोज सूटिड – बूटिड रहते हैं। मौका-ए- खास पर वे भी मोदी जी की तरह डिजाइनर ड्रे्स पहन कर, ब्रांॅंण्ड एम्बेस्डर बन कर , खासम -खास हो जाते हैं। मौका था हिंदी डे का जिसे राष्ट्र्भाषा में हिंदी दिवस कहा जाता है। पैंट -कोट की जगह खादी का पायजामा कुर्ता और लाल सदरी। जूतों की जगह चप्पलें। हाथ में ब्रीफ केस की बजाय कंधे पर धारी दार झोला। शांत माथे पर , अशांत कश्मीर के शुद्ध केसर का पारदर्शी तिलक। चाल में अंग्रेज़ियत की बजाय भारतीय सौम्यता, व्यवहार ,सभ्यता और सादापन।
जिस सप्त तारा होटल में हिंदी का जन्म दिवस मनाया जा रहा था, वहां का ज़र्रा ज़र्रा हिंदीमय था। पॉप सांग की बजाय वातावरण में, संतूर की स्वर लहरियां घुल रही थी । इस बीच हड़बड़ाते हुए एक महाशय लगभग ऐसी ही वेशभूषा में सुसज्जित, बड़ी कन्फयूज्ड हालत में बदहवास से घूमते हुए हर किसी से यह पूछते फिर रहे थे कि महोदय आज हिंदी का जन्मोत्सव है या पुण्य तिथि ? क्योंकि श्राद्ध अभी चालू आहे! बाद में पता चला कि उन्होंने राष्ट्र्भाषा के विकास पर एक पत्र पढ़ना था। चूंकि वे सरकारी जीव थे और सर पर सरकारी डंडा था कि आपका आज आपको ‘हैप्पी बर्थ डे टू हिंदी ’ गाना ही है, इस लिए जरा नर्वस थे। वे भले ही हमारी तरह टाट वाले स्कूल के टाटू छात्र थे लेकिन हमें पता चला कि उनकी औलाद अंग्रेजी मीडियम के एक क्रिश्चियन कान्वेंट स्कूल से निकल कर अमरीका की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में फिट थी। एक बेटा देश की डिस्पेंसरी त्याग कर कनाडा के एक बड़े अस्पताल में डाक्टर है।
अब यह हिंदी दिवस ऐसा राष्ट्र्ीय उत्सव है जिसमें हिंदी और अहिंदी दोनों तरह के ही प्राणियों को सम्मान और सामान से लाद दिया जाता है। जो दर्शन नहीं दे सकते उन्हें उनकी दोनों चीजें कोरियर कर दी जाती हैं। समारोह में मोटे मोटे शब्दों से सबको प्रभावित किया जाता है। यही एक ऐसा सुअवसर है जब छोटे से छोटे चुटकला लेखकों को भी शाल दुशाले ओढ़ा दिए जाते हैं ताकि वे व्हॉट्स ऐप या फेसबुक पर रात दिन इधर का माल उधर करने में मशगूल रहें । इसी मौके पर लेखकों के चरित्र चित्रण के अलावा उनकी जन्म तिथि, पुण्य तिथि के बारे पता चलता है। कई बार उनके लेख , व्यंग्य छपते रहते हैं और पता चलता है कि उनका तो अकाल चलाना कब का हो चुका है परंतु कोई और ही मदन गुप्ता सपाटू के नाम से लिख रहा है। बहुत से हिंदी प्रेमियों का पुनर्जागरण 14 सितंबर के शुभ दिहाड़े पर ही हो पाता है।
सरकारी दफ्तरों में पितृपक्ष की तरह , हिंदी पक्ष भी इसी महीने चलता है। कई सज्जनों को ऐसे मौकों पर कई कई शिफ्टों में काम करना पड़ता है। एक पैर श्राद्ध में एक तो एक हिंदोत्सव में । सार्वजनिक क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों में ऐसे आयोजनों के निमंत्रण पत्र शुद्ध भाषा में प्रकाशित हो जाते हैं परंतु कई बार हॅाल खाली रहते हैं। ऐसे में भोजन का लालच ही श्रोताओं को बांधे रखता है। व्याख्यान पढ़ने वाले इसी गलत फहमी में भाषण खींचे जाते हैं कि सुनने वाले बड़ी आत्मीयता से सुन रहे हैं। कई हिंदी प्रेमी, लेखक, कवि , साहित्यकार दिन में कई बार कई जगह सम्मानित हो चुके होते हैं । जैसे पितृ पक्ष में श्राद्ध खाने वालों का टोटा रहता है, ठीक वैसे ही शाल दुशाले उढ़वाने वालों का भी अकाल सा रहता है। संस्थाएं व प्रत्ष्ठिान उन्हें ऐसे ढूंढते फिरते हैं जैसे श्राद्ध पक्ष में विलुप्त होते कउव्वे !
ऐसे ही कार्यक्रम में एक सज्जन धोती, टोपी और मोटे चश्मे में मंच पर आए। थोड़ा पानी पिया। माइक एडस्ट किया। गला साफ किया। बोले- सभी हिंदी प्रेमियों को प्रणाम करता हूं। हिंदी सब की भाषा है। जो जोड़े से बैठे हैं उन्हें जोड़ों से सलाम करता हूं। जो विवाहित हैं और किसी और के साथ हिंदी का बर्थ डे मनाने आए हैं, उन्हें निवेदन करता हूं कि घर जाकर भाभी जी को ,मेरा चरण स्पर्श पहुंचाएं। कुवांरों को मेरा ईलू -ईलू कबूल हो , कबूल हो , कबूल हो। उन सज्जनों और सजनियों , भैणां ते ओनां दे भरावां नूं सत श्री अकाल कंहदा हां जिना दा हिंदी नाल दूर दूर दा कोई वास्ता नईंयो जे। उनका भी विशेष अभिवादन जो भोजन के चक्कर में अब तक चार बेसुरे भजन सहन कर चुके हैं। उन अफसरों की कर्त्व्यपरायणता के आगे भी नतमस्तक हूं जिनकी इस कार्यक्रम में डयूटी लगी है और आज ही नगर के एक बड़े सभागार में राखी सावंत भी अपना डांस कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं। उन महानुभावों का भी आभार प्रकट करता हूं जो बार बार घड़ी देख रहे हैं और यह सोच रहे हैं कि कहीं मैं भी भारी भरकम भाषण न देने लगूं और शाम का शो निकल का न जाए। हिंदी की बात नहीं करुंगा। ज्ञान नहीं बघारुंगा। ज्ञान की बातें तो आप सुबह चार बजे से ही सुननी आरंभ कर देते हैं जब 100 चैनलों पर 101 बाबे प्रवचन दे रहे होते हैं। या आपके मोबाईल पर ही यार मित्तर ज्ञान की गंगा बहाने लगते हैैं। यहां आज आप सात सितारे होटल के ब्रंच का मजा लीजिए और मोदी जी से प्रार्थना करिए कि हिंदी दिवस का पखवाड़ा न मनवा कर इसे पूरे महीने मनाया जाए ताकि राष्ट्र् भाषा का उत्थान हो । उसे वह स्थान मिल सके जिसकी अपेक्षा बापू गांधी ने की थी। जाहिर है सभी वक्ताओं में यही सज्जन कार्यक्रम लूट ले गए और सबसे अधिक तालियां बटोर ले गए।