अंकित भोला : भारत एक ऐसा देश है जहा नारी को देवी का रूप माना गया है। लक्ष्मी,दुर्गा,सरस्वती,पार्वती
जाता है,सरस्वती को गायन की देवी कहा जाता है,पार्वती को शक्ति की देवी माना गया है और काली को सर्वनाश की।हिन्दू धर्म में स्त्री का बहुत महत्व है।स्त्री को हिन्दू धर्म में या भारत में पूजा जाता है।
परन्तु क्या हम धार्मिक प्रक्रिया से चल रहे है?
जवाब है नहीं।ज़मीनी सतर पे देखा जाए तो भारत में कन्या भ्रूण हत्या के आकडे सबसे अधिक है।इस सामाजिक कीताणु को निचला वर्ग या मधयम वर्ग के लोग नहीं बल्कि उच्च कुल या उच्च वर्ग के लीग भी इस प्रथा का पालन करते है और शर्म की बात तो ये है की भारत के सबसे समृद्ध राज्यों मी इसका चयन सबसे ज़यादा है। पंजाब,हरयाणा,रजिस्थान,दिल्ली और गुजरात में सबसे अधिक कन्या भ्रूण हत्या के मामले सामने आये है। सोचने की बात थो ये है की इस प्रथा को अनपढ़ लीग नहीं बल्कि सामाज के पड़े-लिक्खे लेग अनजाम देते है।
बीते कुछ समय से सरकार के कडे रवयिया और सामाजिक संस्थाओ के जागरूकता अभियानों से सुधार आया है।वर्ष 2000 की जनगणना मे 1000 पुरषो पे 933 महिलाये थी और वर्ष 2012 मे 1000 पुरुषो पर 972 महिलाये थी।परन्तु पंजाब और हरयाणा में स्थिति आज भी दयनीय है।इन राज्यों में महिला लिंग भेद है।
यह इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक समृध्दि और शिक्षा के बढते स्तर का इस समस्या पर कोई प्रभाव नहीं पड रहा है।वर्तमान समय में इस समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक जागरूकता बढाने के लिए साथ-साथ प्रसव से पूर्व तकनीकी जांच अधिनियम को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है।जीवन बचाने वाली आधुनिक प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग रोकने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए।
कुछ कदम सरकार की ओर से भी उठाये गए है।गुजरात में ‘डीकरी बचाओ अभियान’ चलाया जा रहा है। इसी प्रकार से अन्य राज्यों में भी योजनाएँ चलाई जा रही हैं।भारत में पिछले चार दशकों से सात साल से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है।
क्या यही हमारा सभ्य समाज है जहा स्त्री को एक ओर देवी कहा जाता है और दूसरी ओर उसकी हत्या कर दी जाती है?हर नारी,हर कन्या हमारे इस ‘सभ्य सामाज’ से आज यही सवाल कर रही है।वो पूछ रही है की क्यों घसी पिटी प्रथाओ के लिए उन्हें मार दिया जाता है?क्यों लिंग को लेकर भेध-भाओ किया जाता है?आखिर कब तक कन्याओ की हत्या ऐसे ही होती रहगी? भ्रूण हत्या करने वालो को एक ही सन्देश जाता है की बच्चो की अर्थी का बोज बहुत भारी होता है इसे अपने कंधो पर उठाने की कोशिश न करे।