प्रिय अमर बलिदानी मित्र चंद्रकांत जी!
शत-शत प्रणाम! कल आप भारत की एकता अखंडता के लिए अपना बलिदान कर इतिहास में नाम अंकित कर गए। मुझे जहां अथाह दुख है, वहीं पर एक गर्व भी है की हमारा एक स्वयंसेवक-कार्यकर्ता जिसके साथ मैंने 2002 से लेकर 2005 तक,प्रत्यक्ष काम किया वह भारत माता के चरणों में अपना जीवन बलिदान कर गया।
मुझे याद है जब मैं उधमपुर(जम्मू-कश्मीर)विभाग प्रचारक होकर गया था और सितंबर 2002 में आप से मेरी पहली मुलाकात हुई थी।मुझे वहां के कार्यकर्ताओं ने बताया था, आप यहां के सबसे प्रमाणिक स्वयंसेवक हैं, और जिला शारीरिक प्रमुख का दायित्व आपने दिया।बाद में जिला कार्यवाह,विभाग कार्यवाह बने,अभी प्रान्त सहसेवा-प्रमुख थे।
आपके घर पर दो विवाह योग्य बहनें थी, किंतु आर्थिक स्थिति सामान्य होते हुए भी आप पूरी तरह से संघ कार्य में निमग्न हो गये।
आतंकवाद उन दिनों चरम पर था।एक दिन मोटरसाइकिल पर जब मैं आपको बिठाकर आ रहा था तो आप किसी दूसरे रास्ते से लाए।
मेरे पूछने पर आपने कहा कि ये हमें आर्मी की तरफ से इंस्ट्रक्शन है कि कभी भी जिस एक तरफ से जाओ उस तरफ से वापस नहीं आना,कोई दूसरे मार्ग से आना।
जब मैं रात को आपके घर पर सोया तो आपने ग्राम सुरक्षा समिति की बंदूक मेरे दायीं और रखी और पानी का जग बाईं और।
मैंने पूछा “यह क्या है?” तो आपने कहा “यहां पर रात को सिरहाने पर बंदूक तो रखनी ही होती है।”
…फिर आपने बताया मुझे कि आप कितने आतंकवादियों के ऑपरेशन में सेना के साथ गए हो। और कैसे-कैसे दुर्दांत आतंकियों को भी आपकी सहायता से सेना ने मार गिराया।जीवन में कभी भी डर आपको निकट भी छू नहीं पाया।
एक बार मैंने पूछा तो आपने कहा “यहां डर से तो 1 दिन भी जी नहीं सकते,डरा कर ही जी सकते हैं।” और वास्तव में अलगाववादी से लेकर आतंकी तक आपके नाम से डरते ही थे।
फिर आपने जीवन में आर्थिक शुचिता और सादगी, इसका हमेशा ध्यान रखा। अभी एक माह पहले ग्वालियर की प्रतिनिधि सभा में आप मिले ही थे।
एक पुराना प्रसंग! जब गुरु गोविंद सिंह के दोनों बेटों को दीवारों में चुना जा रहा था।तो जब दीवार छोटे वाले के मुंह तक आने लगी तो बड़े वाले की आंखों में आंसू आ गए तो छोटे ने बड़े से कहा “अरे भाई! क्या डर गए हो,जो रोने लगे हो?”
तो बड़े ने कहा “नहीं-नहीं! यह आंसू तो इसलिए आ रहे हैं कि पैदा पहले मैं हुआ था,किंतु देश धर्म पर बलिदान होने का वक्त आया तो मेरे से पहले तू बाजी मारे जा रहा है…!”
मैं भी सोच रहा हूं “प्रचारक तो मैं हूं, किंतु भारत मां की सेवा में कल बलिदान होकर मेरे से मीलों आगे आप निकल गए हो।”
“जो भी हो,कभी चिंता ना करना चंद्रकांत! आपको सूर्यलोक मिलना ही है।और यहां पर परिवार की चिंता तो संगठन करेगा ही। तुम्हारे साथ तुम्हारा पीएसओ राजेंद्र भी अमर हो गया है बलिदान देकर।”
Journey Breaks but..Mission Continues
जिस पथ पर आप गए हैं उस पथ पर पीछे भी पंक्ति बनी रहे,इसकी चिंता हम सदैव करते रहेंगे।
इस देश को सुरक्षित और दुनिया का सिरमौर बनाने के लिए जो भी प्रयत्न करने होंगे,करेंगे और आपका बलिदान हमें हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
आपका #सतीशकुमार