मदन गुप्ता सपाटू ,ज्योतिषविद्, चंडीगढ़ :
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:!
गुरुर्साक्षात् , परब्रहम तस्मै श्री गुरवे नम: !!
गुरु शब्द में ‘गु ’ का अर्थ है – अंधकार या अज्ञान और ‘ रु ’ को उसका निरोधक माना गया है। अर्थात अज्ञान के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। गुरु कृपा से ईश -दर्शन भी संभव है। हमारे देश में गुरु पूर्णिमा का पर्व बहुत धूमधाम से मनाने का की परंपरा रही है। गुरु ही ब्रहमा है, गुरु ही विष्णु और गुरु ही महेश हैं।
‘गुरु बिन ज्ञान कहां से लाऊं ?’, अक्सर कहा जाता है, और कबीर जी के दोहे- ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े ,काके लागूं पांव, बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय$$’$$$$ ने गुरु का महत्च और बढ़ा दिया। सिक्ख धर्म तो पूर्णतया है ही गुरुओं की शिक्षा एवं गुरुबाणी पर आधारित।
प्राचीन काल में गुरुकुलों में छात्र निशुल्क , विभिन्न विधाओं में शिक्षा ग्रहण करते थे। छात्र समापन पर श्रद्घावश , ऋण चुकाने के उदृेश्य से गुरु दक्षिणा देता था और गुरु को सम्मानित करता था। इस परंपरा को आज गुरु सम्मान कहा जाता है।
गुरु पूर्णिमा सद्गुरु को सम्मान देने का पर्व है।
ऐसे ही गुरु को नमस्कार करने के लिए अर्थात यहां ज्ञानवान और ज्ञान का पूजन समय है यह पर्व। आषाढ़ की शुक्ल पूर्णिमा , वेदव्यास जी के नाम पर व्यास पूर्णिमा भी कहलाती है। गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ में ही मनाई जाती है क्योंकि महर्षि वेदव्यास ने इसी दिन जय नामक महाकाव्य रचा जिसे बाद में महाभारत नाम से जाना गया । चार वेदों की रचना भी की थी। इन आदिगुरु के सम्मान में ही गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा कहा गया है। इसी दिन कबीर दास के शिष्य संत घीसा दास का भी जन्म भक्तिकाल में हुआ था।
आषाढ़ की पूर्णिमा जिसे गुरु पूर्णिमा कहा जाता है, के दिन गुरु पूजा का विधान एवं परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। इस पूर्णमासी के दौरान वर्षा ऋतु रहती है। साधु- संत एक ही स्थान पर रहकर इस चतुर्मास में ज्ञान की गंगा का प्रवाह करते हैं। इसका वातावरण अध्ध्ययन, चिंतन ,मनन, पठन , पाठन आदि के लिए उपयुक्त भी होता है। गुरु चरणों में साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति ,योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
गुरु शब्द का अर्थ ही गुरुता है। ज्योतिष में गुरु अर्थात बृहस्पति को ज्ञान एवं शिक्षा का कारक माना गया है। एक सच्चा गुरु आपका पथ प्रदर्शक है ,वह आपकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
गुरु-धर्म का निर्वाह अति कठिन है। ‘आचार्य देवो भव :’ कह कर गुरु को असीम श्रद्घा का पात्र बना दिया। जो अज्ञानता का अंधकार दूर करे वही गुरु कहलाने का हकदार है।
इस अवसर पर अपने गुरुजन की तन,मन,धन से यथाशक्ति सेवा कर उनसे ज्ञानरुपी गंगा जल प्राप्त किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु व शिव की पूजार्चना करके देव गुरु बृहस्पति, ऋषि वेदव्यास जी का पूजन कर अनाज, फल , वस्त्र एवं दक्षिणा देकर सत्कार करना चाहिए।
वर्तमान युग में शिक्षक दिवस
आधुनिक युग के बदलते हुए संदर्भ में हम अपने गुरुओं को सार्वजनिक रुप से सम्मानित कर सकते हैं। उनकी आवश्यकतानुसार धन अथवा उपयोगी वस्तुएं भेंट कर सकते हैं। यदि वे वृद्घ अथवा शारीरिक रुप से अक्षम हो गए हैं तो उनकी हर तरह से मदद का संकल्प ले सकते हैं। वस्तुत: गुरु पूर्णिमा ‘टीचर्स डे ’ का पुरातन संस्करण है जो भारत में प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है और आज के व्यावसायिक युग में यह और अधिक सार्थक एवं प्रासांगिक हो गया है। भारत में शिक्षक दिवस डा$सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिन पर मनाया जाता है। वह शिक्षकों का सम्मान दिवस है। परंतु गुरु पूर्णिमा शिक्षक की बजाय गुरु के अध्यात्मिक रुप का प्रतीक है।
भारत में गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व रहा है,हालांकि 21 वीं सदी आते आते, यह परंपरा आधुनिकीकरण का शिकार हो गई और माडर्न गुरुओं ने इस रिश्ते को कलंकित भी किया है। गुरु , गुरु घंटाल होकर जेल में प्रवचन फरमा रहे हैं। यही नहीं धन के बल पर टी$वी पर छाए कुछ आधुनिक गुरुओं एवं गुरुआइनों ने भी आम जनता को भ्रमित किया है। गुरुओं के प्रति सम्मान भाव में न्यूनता आई है। आज शिष्य फीस देता है,एकलव्य की भंाति अंगूठा नहीं दे सकता है। हां यह बात और है कि वह गुरु द्वारा उतीर्ण न किए जाने पर छात्र उसके मुंह में अंगूठा अवश्य दिए रहता है।
गुरु विश्वामित्र व गुरु वशिष्ठ ने राम का निर्माण किया , गुरु रामदास ने शिवा जी जैसे वीर का निर्माण किया। एक अरस्तु ने सिकन्दर का जीवन बदल दिया।एक चाणक्य ने चंद्रगुप्त जैसा सम्राट देकर भारत का इतिहास बदल डाला। विवेकानंद जैसा शिष्य पाकर रामकृष्ण परमहंस धन्य हो गए।
गुरु पूर्णिमा पर आप इस मंत्र का जाप कर सकते हैं-
ओम् परम तत्वाय गुरुवे नम:!
अपने अपने गुरुओं को इस दिवस पर सम्मान स्वरुप दक्षिणा, उपहार दे सकते हैं