शिखा शर्मा, शिमला : 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. दुनिया की सभी महिलाओं को मान, प्रतिष्ठा और सम्मान देने की बात कही जाती है. खास इसी दिन महिलाओं को सम्मान और प्रतिष्ठा से नवाजा जाता है. भले ही इस दिन प्रथम श्रेणी का दर्जा दिया जाता है लेकिन बाकी साल के 364 दिन महिलाओं को पुरुषों की अन्य ज़ातियों से दो चार होना पड़ता है . आज महिला दिवस है, इसी को लेकर आज एक विचार मन में आया कि स्त्री को देवी, घर की लक्ष्मी अवश्य माना जाता है लेकिन कहीं न कहीं और उसे अपमानित होना ही पड़ता है. आज की महिला सशक्त होने के साथ साथ स्वतंत्र भी है. प्रश्न यह है कि वाकई में महिला पुरूषों से स्वतंत्र है? उन्हें वहीं मान-सम्मान मिलता है जिस पर उनका अधिकार है? सरकार की ओर से महिला को अधिकार दिए गए है, लेकिन समाज में रहते हुए महिला को तुच्छ शब्दों से पाला पड़ ही जाता है. बेशक कोई भी पुरुष यह मान ले कि वह स्त्री का बहुत मान-सम्मान करता है लेकिन कहीं न कहीं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से महिला के प्रति अपना गुबार निकाल ही लेता है. साफ़ शब्दों में कहा जाए तो उन्हें खुले तौर पर सबके सामने जलील शब्दों की गर्र्हाट सुनने को मिलती है .
आमतौर पर पुरुष नारी शक्ति की बातें करता है उसे तवज्जो देता है लेकिन हैरानी की बात तो तब होती है जब पुरुष का पुरुष के साथ झगड़ा होता है और महिला को घिन्न भरे शब्द बोले जाते है. बात कहीं की भी हो कोई भी हो या झगड़ा करने का कोई भी मुद्दा क्यों न हो महिला को गाली के शामिल करने से ही उन्हें संतुष्टि मिलती है. ऐसे मौके पर मां, बहन और बेटी को तुच्छ शब्दों से दुत्कारा जाता है. आपस के झगडे में महिला को ही तुच्छ शब्दों से निवस्त्र कर दिया जाता है . अगर पुरुष नारी का सम्मान करता है उसकी इज्ज़त करता है तो ऐसे समय में आपा क्यों नही सम्भाल पाता. देवी के रूप में नारी को पूजने वाले पुरुष अपने झगड़े में महिला को क्यों शामिल करते है ? अगर उनका झगड़ा किसी मुद्दे को लेकर हुआ है तो उसे महिला को शामिल किए बिना सुलझाए. इस तरह महिला का अपमान व अनादर करना पुरुष की कोई शेखी नहीं है बल्कि इस तरह के वाक्यों से पुरुष का महिला के प्रति नीचपन झलकता है .
सदियों से नारी की पूजा की जाती है लेकिन यह पूजा तब तक सम्पूर्ण नहीं कही जा सकती जब तक पुरुष नारी का शाब्दिक अपमान व अनादर करना नहीं छोड़ देता. महिलाओं को पूर्ण रूप से सम्मान देने के लिए पुरुष को इस तरह की प्रवृतियों को छोड़ना होगा. तभी महिला दिवस मनाने का पूर्ण सकरात्मक परिणाम और महिला को उसका सही सम्मान मिल पाएगा.