विवेक शर्मा : ज्योॢतमय भगवान सूर्य के तेजस्वी पुत्र, माता के परम भक्त, शिव के परम शिष्य तथा भगवान श्रीकृष्ण के भक्त शनिदेव अपनी न्यायप्रियता, क्रोध, क्रूर दृष्टिï, तपस्या व हठीले स्वाभाव के कारण ब्रह्मïाण्ड में प्रतिष्ठत हैं। बारह राशियों में मकर व कुम्भ राशि के स्वामी हैं। नक्षत्रों में अनुराधा, पुष्प तथा उत्तर भाद्रपद के स्वामी हैं।
अन्याय के विरुद्ध अस्वीकृति मेें उठे हाथ हैं शनिदेव। तपस्वीयों की तपस्या से उन्हें महिमा मंडित कने के लिए शनिदेव नाना प्रकार की परीक्षाएं भी लेते हैं। फिर चाहे श्री गणेश हों, शिव हों, राजा हरिश्चन्द्र हो, सती तारा हो, नल दमयंत्री हों, राजा दशरथ हो, या प्रभुश्री कृष्ण हों। शनिदेव की सत्य व न्याय की गती ने सभी को प्रभावित आवश्य किया है।
प्राय: लोग शनि के नाम से ही भयभीत हो उठते हैं, क्योंकि इनकी दृष्टि भगवान शिव की भांति अत्यंत प्रलयकारी हैं अत: अति क्रूर है। इसी कारण शनि को स्वभाव से क्रूर, पानी अभाव तथा दुख का कारक माना जाता है। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है, तभी तो महॢष देवव्यास जी का यह कथन, जो उन्होंने गौरीपुत्र श्री गणेश को कहा था—
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वंयं।
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडऩं।।
अर्थात 18 पुराणों में महॢष वेदव्यास जी के दो ही वचन हैं— परोपकार से बढक़र कोई पुण्य नहीं तथा दूसरों को पीड़ा देने से बढक़र कोई पाप नहीं है। इसी कारण परपीडक़ों के प्रति हिंसक शनिदेव अति क्रूर व निष्ठïुर हैं। परंतु चरित्रवान, परोपकारी, दयावान, मातृ-पितृ भक्त तथा दान-पुण्य करने वाले आस्तिकों के परम मित्र, सहायक, दया के सागर एवं साक्षात आर्शीवाद हैं।
मात्र धन को ही सर्वोपरि मानकर हम सत्य, न्याय, भाईचारा, प्रेम, सहानुभूति, अहिंसा, परिश्रम तथा बड़ों का सम्मान आदि सभी दिव्य गुणों को त्याग देते हैं और अन्याय, छल, कपट तथा धोखे के द्वारा दूसरों को लूटते हैं, जुल्म करते हैं। इन्हीं पाप कर्मों से कुपित होते हैं शनिदेव। ऐसे ही जुल्म, भ्रष्टïाचार, अन्याय तथा लूटपाट का जब बोलबाला हो तो शनिदेव का कोप काल बनकर व्यक्ति पर टूट पड़ता है। देवादिदेव महादेवके वरदान से मनुष्यों को उनके अनन्त जन्मों में किये पाप व क्रूर कर्मों का दंड देते हैं, नहीं है माफी इनके पास। अपनी दृष्टि नीची किये बीना भेदभाव के अमीर हो या गरीब, राजा हो या रंक, पापी हो या धर्माधिकारी सभी को एक ही दृष्टिï से उनके कर्मों का फल आवश्य प्रदान करते हैं।
यदि व्यक्ति ने अपने सभी धर्म कर्तव्यों का पालन किया है, अपनों के बीच रहकर अपनों का मान पाया है और फिर अपने बचे हुये समय को जरूरतमंदों की सेवा में, समाजसेवा में, राष्टï्र के कल्याण में, धर्म की स्थापना में तथा शुभ कर्मों में लगाया है तो उसके जीवन में जब भी शनि का समय आएगा तो शुभ फल ही प्रदान करेगा तथा उसे शनि की पीड़ा का सामना नहीं करना पड़ेगा। पूर्ण जन्मों के पाप भी इस जन्म के पुण्य कर्मों द्वारा परिवॢतत हो जाएंगे। वह फल आघात कम तथा निर्माण अधिक करेगा। कष्टï ही उसके लिये वदान-सा बन जाएगा।
शनि का समय हर व्यक्ति पर निश्चित रूप से आता ही है। इसीलिए शनि के बारे में अक्सर कहा जाता है—
जिसने नहीं छोड़ा अपने बाप को।
वह क्या छोड़ेगा हमें और आपको।
अपनी मातृ भक्ति हेतु अपने पिता, भगवान अदितिनंदन सूर्य द्वारा अपनी माता का तिरस्कार करने पर, अपनी मां के स्वाभिमान, आन व पतिव्रता धर्म की रक्षा के लिए शत्रुतापूर्ण वैर करने लगे। यह वैर शनिदेव द्वारा आज तक भुलाया नहीं गया। शनिदेव की पूजा-अराधना हमेशा पूर्व जन्म के पाप, अपराधों की क्षमा प्रार्थना हेतु एवं इस जन्म के वर्तमान के संकटों से बचने हेतु की जाती है। शनि की पूजा-अर्चना द्वारा ही हमारे सर्व पाप कर्मों का प्रायश्चित होता है तथा प्रायश्चित पूरा होने पर हमारी कोई भी आराधना शीघ्र फलित होती है।
शनिदेव जी की पूजा, अभिषेक, यज्ञ, व्रत, दान-पुण्य आदि के लिए शनिदेव के त्यौहार सर्वोत्तम रहते हैं। इस वर्ष शनि जयंती (शनि जन्मोत्सव) १८ मई, २०१५ (सोमवार) को संपूर्ण भारतवर्ष के शनि मंदिरों में बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाएगी। इसलिए इस दिन जो भी उपाय, पूजा, दान-पुण्य आदि शनिदेव जी के लिए किये जाएंगे वह बहुत जल्दी स्वीकार होंगे तथा अनंत शुभ फल भी प्रदान करेंगे। रूठे हुए शनिदेव को मनाने तथा उनकी असीम कृपा की प्राप्ति हेतु कुछ उपाय निम्नलिखित हैं :-
* प्रत्येक शनिश्चरी अमावस्या के दिन व्रत रखें तथा अपने परिवार की शनि पीड़ा शांति हेतु शनिदेव के पसंद की सामग्री 250 ग्राम की मात्रा में रख लें (आटा, उड़द (साबुत), काला चना, तिल के लड्ïडू, गुड़, तिल (काले), नमक, काला कपड़ा (1द मीटर), तेल (सरसों) आदि यह सामग्री) शनि मंदिर में पूर्ण श्रद्धा से अपने संपूर्ण संपूर्ण परिवार की समृद्धि एवं सुख-शांति की प्रार्थना करके शनि मूर्ति या शनि शिखा से स्पर्श कराकर वहां के पुरोहित को दक्षिणा सहित दान में दें तथा यथा शक्ति शनि मंत्र तथा शनि चालिसा का यथा शक्ति जाप करें।
प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठें। स्नानादि से निवृत्त होकर केसरिया का काला वस्त्र पहनकर श्री लक्ष्मी जी व शनिदेव जी के आगे एक तेल का तथा घाी का दिया जलाकर मिष्ठïान अर्पण करें। शनि मंदिर जाकर शनिदेव का तेलाभिषेक करें।
परिवार का प्रत्येक सदस्य सूर्योदय के पूर्व स्नान कर एक कटोरी में थोड़ा-थोड़ा तेल बारी-बारी से सभी को अलग-अलग लेकर उसमें अपना चेहरा देखकर अपने कष्टï, बाधा एवं परेशानियों को संपूर्ण श्रद्धा भाव से शनिदेव को सुनाएं तथा उस तेल को इकट्ïठा कर दिये में दिनभर अखंड ज्योति के रूप में जलाएं।
अपना पहना हुआ कोई भी वस्त्र, जूता-चप्पल, चमड़े का सामान किसी गरीब को दान करें तथा प्रार्थना करें कि हमारी शनि पीड़ा शांत हो।
रास्ते में बैठे हुए मोची को काले छाते तथा निर्माणाधीन शनि मंदिर में लोहे तथा लोहे की वस्तुओं का दान करें।
रात्रि में सरसों के तेल में मिट्ïटी वाले 9 दिये जलाएं तथा इन्हें मुख्य द्वार पर, छत पर, पूजा घर में, तुलसी पर, रसोई घर में पानी के स्थान पर तथा एक दिया पीपल के पास रखें। मुख्य द्वार के दोनों तरफ तथा छत की चारों दिशाओं पर भी एक-एक दिया रखा जा सकता है।
गरीबों को यथा शक्ति भोजन कराएं।
शनिदेव भगवान शिव द्वारा पृथ्वी लोक के न्यायाधीश नियुक्त किये गये हैं जो कि जीव को उसके शुभ-अशुभ कर्मों का न्यायोचित फल प्रदान करेते हैं। अपनी गोपनीय गति से वक्री होने पर, मार्गी होने पर, पनौति की स्थिति में, साढ़ेसाती की दशा में, महादशा व अंतरदशा में जीव को अपने समस्त शुभ-अशुभ कर्मों का भोग-भोगना ही पड़ता है।
पूर्व जन्म कृतं पापं व्याधि रूपेणा बाध्यते॥
तत शान्तमं औषधं, रत्नधारणम, होम च शुरार्चनै:॥
अर्थात :- पूर्व जन्मों में किये पाप कर्मों के कारण मनुष्य नाना प्रकार के रोग व कष्टï भोगता है। कष्टïों की निवृत्ति के लिए औषधि, रत्नधारण, हवन व प्रभु-भक्ति उपरोक्त श्रेष्ठï उपाय सिद्ध है।