“ओ रे चिड़िया मट्टी की गुड़िया ,
अंगना में फिर आजा रे
तेरे पलकों पर सारे सपने जादू
तेरी चुनार सतरंगी बनु
तेरी मेहँदी में कच्ची धुप मै मलू
तेरे नैना सजा दू नया सपना ….”|
रूही गुप्ता , पंजाब :- आज दिल में इतना दुःख था क सोचा क्यों न अपने दुःख को कलम की आवाज दू और दुनिआ को बता सकु की हमारी इंसानियत खत्म होने की किस कगार पर पहुँच चुकी है| दुनिआ की हर लड़की माँ बनाना चाहती है |माँ बनाने का एहसास पाना चाहती है |हा , अगर हर लड़की माँ बनाना चाहती बी है तो इसमें कुछ गलत बी नहीं है | माँ बन कर नया जनम होता है |.नयी खुशीआ , नए सपनो को पंख मिलते है और उन पंखो को उड़ान मिलती है |जो इक लड़की सोचती है वो इक नन्ही बची क रूप में दुनिया में आ जाती है |
लेकिन जो लड़की माँ नहीं बन सकती उसके सपनो का क्या ??उसके सपनो की उड़न का क्या ?मै यहाँ आपके साथ अपनी बहिन मीणा की जिंदगी क कश्मकश भरे पल आपके साथ शेयर करना चाहती हु |.उसकी शादी को 20 साल हो गए हैi.शुरू में जिंदगी बहुत अछि चल रही थी पर जब उसे पता चला क वो माँ नहीं बन सकती मनो उसके सरे सपने टूट कर बिखर गए हो |मुसीबतो का बहुत बड़ा पहाड़ टूट पड़ा हो|.उसके ससुराल वालो का इक दम से उसके साथ वेव्हर हे बदल गया |लेकिन उसने फेर बी अपने दुखो में इक ख़ुशी की किरण ढूंढ़ ही ली | उसने की नन्ही पारी गोद ले ली |पर उसके ससुराल वालो को कहा उसकी ये नन्ही परी मंजूर थी |उसे मानसिकता तौर पर इतना परेशान करते के उसे कई बिमरिअ लग गई फेर बी मेरी बहिन ने हार न मनी .वो अपनी बेटी के सहारे ,उसके चहरे पर ख़ुशी देख कर जीती रही |उसे कोई दवा नहीं ले कर देता था |बात बात पर उसे तान्हे कस्ते थे .उसे बार बार यही एहसास दिलाते रहे की वो पागल है दिमाग से ठीक नहीं है i.वह दुःख , यातनाये सहती रही|चुप चुप कर रोतीं रही| इतना सेहम गई के किसी को अपना दुःख बताते हुए बी डरने लगी|.र वो अपनी बेटी की जिंदादिली देख कर हौसले से जीवन बसर करती रही .अपनी बिटिया में अपनी खुशिया ढूंढ़ती रही |.उसे अपने पति से बी तो होसला नहीं मिल रहा था| .औरत क लिए अपने पति के मुह से निकले दो प्यार क बोल सरे दुखो को खत्म कर देते है|.उस बेचारी को तो वो बी नसीब न हो रहे थे |.ऊपर ऊपर से जीती रही पर दिल में आग का समनदर उछल रहा था |.
इक दिन उसे परल्य्से का अटैक हो गया |.उसे अस्पताल ले जाया गया |.अभी बी उसके दुखो का अंत नहीं हुआ था|.उसके दिमाग का ऑपरेशन हुआ जिसमे उसने अपनी आवाज खो दी|.आज वो अस्पताल में इक जिन्दा लाश क जैसे पड़ी है |.बेचारी सारी जिंदगी दुःख सेहटी रही ,रोतीं रही |.अब तो वो अपना दर्द किसी को बता बी नहीं सकती क्यों के उसके दुखो अब वो लफ्जो की कमान नहीं मिलेगी |.ऐसे पड़ी है जैसे उसकी किसी को कोई जररूत नहीं है |.बस शांत चुप चाप दीवारे देख रही है |.मौत का इन्तेजार कर रही है |.सारी जिंदगी दुःख तकलीफे सेहन करने में गुजर दी |.पति आ कर काश प्यार के दो बोल देता की ,” डिअर उठो ,मै तुम्हे बहुत प्यार करता हु|.मुझे माफ़ कर दो जो बी हुआ |.मै तुम्हारे बिना जी नहीं सकता |.मै अब तुम्हारा साथ कभी नही छोड़ूंगा .प्ल्ज़ उठ जाओ .” शायद उसके कान यही सुनने को तरस रहे हो .
मै यहाँ पूछना चाहती हु के क्या इक औरत का यही लक्ष्य होता – “माँ बनाना ”.अगर वो माँ नहीं बन सकती तो उसमे उसका क्या कसूर है .सब उसक| साथ छोड़ देते है .माँ बाप अपनी इज्जत के ह|थो मजबूर है .ससुअरल वाले उसे बाँझ का नाम दे देते है .समाज उसे किसी रीती रिवाज में शामिल नी होने देते .समाज बनाया किसने है – हम लोगो ने मिलकर बनाया है .फेर हमने अपने समाज में इतनी घिटया सोच ,विचार क्यों बुने है .हमने क्यों प्यार ,सहयोग ,समझदारी के फूल नहीं बोये ?इक औरत पुरुष को जनम देती है जिस से ये दुनिया चलती है .फेर उसे ही इतना बेइज्जत किआ जाता है |.इक पति जो साथ देने का वायदा करता है वो बी दुःख में कायरो के जैसे साथ छोड़ कर भाग जाता है i.ऐसे घटिया समाज , रिश्तो से औरत को हक़ से कहना चाहिए की ’” हा ,माँ नहीं बन सकती .तुम लोगो को कोई हक़ नहीं मुझसे मेरी खुशीआ छीनने का .मुझे अपनी जिंदगी में वो रिश्ते नहीं चाहिए जो मेरा दुःख नही समझ सकते .”
औरत ने जनम दिए है मर्दो को ,
मर्दो ने उसे बाजार दिआ ,
जब जी चाहा ठुकरा दिआ ,
जब जी चाहा कुचला दिआ ,’
फेर क्यों भूल गया मर्द के
औरत ने ही जनम दिआ है मर्दो को “……..
Nicely written.Heart touching. PL keep it up, Ruhi
‘Yeh samaj bnaya kisne hmne’; so only we can change it, we must support our mother, sister, and wife
Well written
लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूं लेकिन इतना ही कहू गा बिना औरत के समाज अधूरा है, वो मां है ,बहन है , दोस्त है और पत्त्नी है ,
SO PLS RESPECT WOMEN THNX ROOHI
heart touching……….. 🙁