अमित तोमर , देहरादून : जैसे ही चुनावी बिगुल बजता है दंगा भड़काने वाली “कंपनियों” की चांदी कटने लगती है। जीतना बड़ा दंगा उतना बड़ा पैसा। भारत का इतिहास उठाकर देखें तो हर दंगे की पटकथा इन्ही दंगा फ़ैलाने वाली कंपनियों ने लिखी है।
भारत में आजतक जब भी हिंसा हुई उसके पीछे केवल राजनैतिक पार्टिया नज़र आई।सोचों वो कौन होते होंगे जो मंदिर में गौमांस और मस्जिद में सूअर फैंकते होंगे ? वो कौन होंगे जो मुँह पर कपडा लपेटे पहली आगज़नी करते होंगे या पहला पत्थर उछालते होंगे ? कौन होंगे वो लोग जो दंगे की पहली चिंगारी छोड़ मजे से घर में बैठ आनंद लेते होंगे? इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढना किसी के लिए भी मुश्किल नही क्योकिआप निश्चित ही इन लोगों को बहुत करीब से जानते है।
यह वो बेकार नौजवान है जिसे दंगा फैलानी वाली कंपनी कभी शराब तो कभी थोड़े से पैसों का लालच देकर, कभी धर्म के नाम पर भड़का कर या कभी राजनैतिक मोह जगाकर इस्तेमाल करती है। दुर्भाग्य की बात यह है की आज ऐसे लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है।