मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। आर्यसमाज, सुभाषनगर, देहरादून का दो दिवसीय वार्षिकोत्सव आज सोल्लास सम्पन्न हो गया। प्रातः नौ कुण्डीय यज्ञ सम्पन्न किया गया। इस अवसर पर देहरादून के अनेक आर्यसमाजों के पुरोहित यथा पं0 वेदवसु शास्त्री, पं0 रणजीत शास्त्री, पं. पीयूष शास्त्री एवं प0 अमरनाथ शास्त्री जी मार्गदर्शन के लिये उपस्थित थे। गुरुकुल पौंधा-देहरादून के ब्रह्मचारियों ने यज्ञ में मन्त्रपाठ किया। उत्सव में भजनों के लिये हरिद्वार की युवा भजनोपदेशिका निकिता आर्या जी को आमंत्रित किया गया था।
उन्होंने आर्यसमाज के दो प्रसिद्ध भजनों को प्रस्तुत कर श्रद्धालु श्रोताओं को भक्तिरस में स्नान कराया। निकिता जी ने पहला भजन गाया जिसके बोल थे ‘दाता तेरे सुमिरन का अधिकार जो मिल जाये मुरझाई कली दिल की इक आन में खिल जाये।’ आपने दूसरा भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘भगवान! पहचान न पाया मैं तुमको’। इसकी एक पंक्ति में यह शब्द भी आये ‘अखिल विश्व में व्यापक सत्ता साक्षी दे रहा पत्ता पत्ता।’ यह भजन भी बहुत प्रभावशाली था। इसके शब्द ईश्वर के उपकारों को स्मरण करा रहे थे। यह भजन सम्भवतः पं0 प्रकाश चन्द्र कविरत्न जी का लिखा हुआ है। दोनों भजनों की हमने वीडीयो क्लिपें भी बनाई है जिसे हम फेसबुक एवं व्हटशप के मित्रों को प्रेषित कर चुके हैं। निकिता जी ने भजनों के मध्य कहा कि प्रभु की भक्ति प्रत्येक मनुष्य को प्रतिदिन प्रातः व सायं कम से कम एक घंटा करनी चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि जिस काम को करने में भय, शंका व लज्जा न हो और जो काम सबके हित के लिये किया जा रहो हो, उस काम को मनुष्य को अवश्य करना चाहिये।
उन्होंने किसी प्यासे को पानी पिलाना, किसी अन्धे व्यक्ति को सड़क पार कराना और किसी भूले व्यक्ति का पथ प्रदर्शन करने को भी यज्ञ बताया। निकिता जी ने कहा कि सभी परोपकार के कार्य यज्ञ कहलाते हैं। कार्यक्रम का संचालन कर रहे विद्वान पुरोहित पं0 रणजीत शास्त्री जी ने कहा कि जो पूर्व की ओर चलता व चलाता है अर्थात् जो सबको आगे ले जाता है वह पुरोहित कहलाता है। श्री रणजीत शास्त्री जी ने कहा कि आज के आयोजन के सभापति के लिये वह जिला आर्य उप-प्रतिनिधि सभा, देहरादून के प्रधान श्री शत्रुघ्न सिंह मौर्य जी का नाम प्रस्तावित करते हैं। उन्हें सर्वसम्मति से सभापति स्वीकार किया गया।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे आर्यसमाज लक्ष्मण चौक, देहरादून के विद्वान पुरोहित पं0 रणजीत शास्त्री जी ने कहा कि संसार में कहीं कोई जगह खाली नहीं है। सर्वत्र इस सृष्टि का स्वामी व रचयिता ईश्वर व्यापक एवं सर्वान्तर्यामी है। उनके शब्द थे कि ईश्वर जगत के कण-कण में व्यापक है। पुरोहित जी ने कहा कि मन की शुद्धि सत्य बोलने से होती है। पंडित जी ने एक कथा सुनाई और कहा कि एक बार एक राजा के पास कुछ सैनिक सोने का एक सुन्दर तोता लेकर आये। राजा उस तोते की सुन्दरता पर मुग्ध हो गया। उसने सैनिकों को तोते के लिए सोने का एक पिंजरा लाने को कहा। इस बीच तोते को एक कमरे में बन्द कर दिया गया। पिंजरा लाया गया परन्तु राजा को पसन्द नहीं आया। दूसरा पिंजरा आया, वह भी राजा को पसन्द नहीं आया। फिर तीसरा पिंजरा लाया गया। इस काम में पन्द्रह दिन व्यतीत हो गये। जब कमरा खोला गया तो वह तोता मर चुका था। पुरोहित जी ने कहा हमारे शरीर में भी एक तोता रहता है जिसे आत्मा कहते हैं। हमें आत्मा पर ध्यान अधिक देना है न कि इसके पिंजरे शरीर पर। होता यह है कि हम शरीर का ध्यान रखते हैं आत्मा का नहीं जिससे हमारा आत्मा रोगी होकर मर जाता है। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि आप आत्मा का ध्यान रखें और इसके लिये ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों का स्वाध्याय करने सहित सन्ध्या, यज्ञ व परोपकार के काम किया करें। पंडित जी ने कहा कि हमारा जीवन तब बदलेगा जब हम ऋषियों के मार्ग पर चलेंगे।
विद्वान वक्ता पं0 रणजीत शास्त्री ने कहा कि हम सूर्य व चन्द्र की तरह कल्याण के मार्ग पर चलें। हमें सच्चे विद्वानों की संगति करनी चाहिये। पंडित जी ने कहा कि ऋषियों ने वेदों की संस्कृति को बढ़ाया है। महात्मा बुद्ध का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि जो मनुष्य विनीत स्वभाव व क्षमाशील होता है उसका संसार में कोई विरोधी नहीं होता। पंडित जी ने बताया कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने सन् 1902 में कांगड़ी ग्राम में गुरुकुल खोला था। उन दिनों यहां 400 से 600 बच्चे संस्कृत भाषा व शास्त्रों का अध्ययन करते थे। गुरुकुल के इतिहास में पढ़ने को मिलता है कि गुरुकुल का एक वर्ष पूरा होने पर उत्सव किया गया था जिसमें पचास हजार लोग आये थे। उन्होंने गुरुकुल स्थापना के 117 वर्ष बाद आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय महासम्मेलनों की चर्चा की और कहा उनमें गुरुकुल के आरम्भ काल जितनी उपस्थिति नहीं होती। पंडित जी ने यह भी बताया कि स्वामी श्रद्धानन्द जी अपनी भजन-कीर्तन टोली के साथ प्रातः सड़कों पर भजन व कीर्तन गाया करते थे और लोगों को आर्यसमाज के सिद्धान्तों व कार्यक्रमों की सूचना देते थे। इसका प्रभाव यह होता था कि प्रचार के साथ लोग आयोजनों के लिये धन, अन्न व घर की रद्दी दे दिया करते थे जिससे आर्यसमाज के बड़े बड़े समारोह सुखपूर्वक हो जाते थे। पंडित रणजीत शास्त्री ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को प्रेरणा की कि आप लोग यहां संकल्प लें कि आप अपने घरों पर बड़े बड़े वेद पारायण यज्ञ किया करेंगे। पंडित जी ने यह भी बताया कि गुरुकुल स्थापना के लिये लोगों ने नगद दान ही नहीं दिया था अपितु चौधरी अमन सिंह जी ने अपना 1200 बीघा का पूरा कांगड़ी ग्राम गुरुकुल स्थापित करने के लिये स्वामी श्रद्धानन्द जी को दान दे दिया था। यह स्वामी श्रद्धानन्द जी के व्यक्तित्व का कमाल था। पुरोहित जी ने कहा कि यदि हम काम करेंगे तो हम अपने सभी मनोरथ पूरे कर सकते हैं। अपने प्रवचन में पंडित जी ने यह भी कहा कि आर्यसमाज मूर्तिपूजा का नहीं मूर्ति में गलत आस्था का खण्डन करता है। उन्होंने कहा कि जहां नारियों का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं।
आयोजन में डी0ए0वी0 पीजी कालेज की संस्कृत विभाग की आचार्या डॉ0 सुखदा सोलंकी, पं0 पीयूष शास्त्री, पं0 वेदवसु शास्त्री एवं पं0 अमरनाथ शास्त्री जी के भी प्रवचन हुए। डॉ0 सुखदा सोलंकी जी ने कहा कि जब घर में पुत्री का जन्म होता है तो माता पिता को एक ओर खुशी होती है और दूसरी ओर चिन्ता भी होती है। चिन्ता का कारण पुत्री के भविष्य से जुड़ा होता है। माता पिता सोचते हैं कि क्या बड़ी होने पर उनकी पुत्री को अच्छा वर मिलेगा, क्या यह सुखी रहेगी, क्या इसके सास ससुर आदि इसके साथ अच्छा व्यवहार करेंगे? उन्होने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने कहा था कि यदि बेटी को शिक्षित करोगे तो उससे उसके पीहर एवं ससुराल दोनों पक्ष शिक्षित होंगे। पं0 पीयूष शास्त्री जी ने कहा कि ब्राह्मण उसे कहते हैं कि जो वेद पढ़ता और पढ़ाता है। साथ ही ब्राह्मण का काम यज्ञ करना व करवाना भी है। इसके अतिरिक्त ब्राह्मण का अनिवार्य कर्तव्य दान लेना व दूसरे पात्र लोगों को दान देना भी है। उन्होंने कहा कि मनुष्य की उन्नति तब होती है जब वह सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करता है। पं0 वेदवसु शास्त्री जी ने कहा हमें अपने पूर्वज तपस्वी ऋषियों के जीवन जैसा आचरण करना है। यदि हम चाहें और प्रयत्न करें तो वर्तमान कलियुग में भी सतयुग लाया जा सकता है। पं0 अमरनाथ शास्त्री ने कहा कि हमारा भारत प्राचीन काल में स्वर्ण भूमि थी। प्राचीन काल में हमारे देश में नालन्दा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय थे जहां विश्व के हजारों युवा चरित्र सहित ज्ञान विज्ञान की शिक्षा लिया करते थे।
व्याख्यानों के मध्य दो कन्याओं प्रगति एवं आरती ने एक भजन गया जिसके बोल थे “सूरज बन दूर किया जिसने पापों का घोर अन्धेरा, वो देव गुरु है मेरा। वह देव दयानन्द मेरा। मथुरा नगरी से उदय हुआ गुरु विरजानन्द का चेरा, वह देव दयानन्द मेरा, वह देव दयानन्द मेरा।“ इस भजन को लोगों ने बहुत पसन्द किया। दो भजन सुश्री शिवानी शर्मा ने भी प्रस्तुत किये। उनका पहला भजन था ‘धीरे धीरे मोड़ तू इस मन को, इस मन को तू इस मन को।’ शिवानी जी का दूसरा भजन था ‘मन में मिलन की चाह तो लाये कभी नहीं। दर्शन कभी न ईश के पाये कभी नहीं।’ इन दोनों भजनों को श्रोताओं को खूब पसन्द किया।
कार्यक्रम को श्री सुखवीर सिंह वर्मा एवं श्री शत्रुघ्न सिंह मौर्य ने भी सम्बोधित किया। आज के कार्यक्रम में विधायक एवं पूर्व मेयर श्री विनोद चमोली जी भी पधारे थे। उनके हाथों से आर्यसमाज के दो प्रमुख विप्र व विज्ञ सेवकों डॉ0 ब्रजेश बछेती एवं वैद्य राजकुमार सिंह जी को अभिनन्दन पत्र एवं शाल देकर सम्मानित किया गया। वैद्य राजकुमार सिंह कैन्सर के रोगियों की सफल चिकित्सा करते हैं। उनकी धर्मपत्नी को भी कैन्सर हुआ था। वह अपने पति की चिकित्सा से ही स्वस्थ हुई हैं। श्री मेघराज आर्य, श्रीमती विमला मलहोत्रा, श्रीमती लता रानी ढण्ड एवं श्रीमती सुरेन्द्र पूरी जी को भी सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख लोगों में श्री विनोद चमोली जी, श्री सुखलाल सिंह वर्मा, श्री भगवान सिंह आर्य, श्री ओम्प्रकाश मलिक, श्री शत्रुघ्न सिंह मौर्य, श्री मदनपाल काम्बोज आदि विद्यमान थे। कार्यक्रम की समाप्ति पर ऋषि लंगर हुआ। कार्यक्रम पूर्णतः सफल रहा। ओ३म् शम्।