नवनीत गुलेरिया, घुमारवीं, हिoप्रo : अर्थशास्त्र,न्यायशास्त्र,सामाजिक,राजनीतिक शास्त्र तथा धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों का गहन ज्ञान रखने वाले पूज्य बाबा साहेब जी उच्चकोटि के राष्ट्र भक्त थे! बचपन से ही सामाजिक आपदाओं से लड कर आगे बढने वाले बाबा साहेब द्धारा देश के संविधान को निमित करने की बात जब सुनी जाती है तो हर भारतीय का सिर गर्व से उंचा हो जाता है! डॉक्टर आंबेडकर संविधान के रचियता ही नही बल्कि एक समाज सेवी भी थे! उनके जीवन का मुख्य उद्वेश्य देश में अमीर-गरीब,जात-पात,अस्पृश्यता ध्र्म के आधार पर भारतीयों को बांटने वाली बिमारी को जड़ से नष्ट करना व देश में समानता का भाव पैदा करना था!
इस उद्वेश्य व भारत को गौरवशाली व शक्तिशाली बनाने के मत को ध्यान में रखते हुए २६ नंवबर १९४९ को संविधान सभा के माध्यम से प्रस्ताव पारित हुआ और २६ जनवरी १९५० से भारत का संविधान प्रभावी हुआ।भारत की आजादी के बाद देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा हो गया था कि हम ब्रिटिश शासकों से मुक्त हो तो गये थे परन्तु देश को किस दिशा से किस गति की और बढ़ाया जाए ये बहुत बढ़ी समस्या देश के सामने खड़ी हो गयी।
देश को उन्नति व तरक्की की और बढ़ाने के लिए देश के बुद्वजीवी वर्ग में चर्चा का माहौल पैदा होने लगा। देश को संगठित करने के लिए देश का अपना एक लिखित संविधान समीति का गठन होना तय हुआ। ९ दिसंबर, १९४६ को संविधान सभा का काम प्रारम्भ हुआ। ११दिसंबर को डॉक्टर राजेन्द प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गये।
डWा० आंबेडकर को संविधान सभा समिति में गांधी जी द्वारा चुना गया परन्तु गांधी जी के साथ उनका सामाजिक मुद्वों पर विवाद चलता रहता था।लेकिन जब देश का संविधान बनाने को आया तो गांधी जी ने वल्लभ भाइ पटेल और जवाहर लाल नेहरु को बुलाकर यह पूछा कि आप किसको संविधान का काम सौंप रहे हैं,तो जवाहर लाल नेहरु जी ने कहा कि हम जर्मनी के ख्याति प्राप्त संविधान विद् सर ज्योर जेरी को बुला रहे हैंं। तब गांधी जी ने कहा कि इतना बड़ा देश है दुनिया क्या कहेगी कि हमारे देश में कोइ भी विद्वान नही है जो देश का संविधान बना सके। तब गांधी जी ने विचार किया कि देश में आंबेडकर जी बहुत विद्वान व्यक्ति है,और उन्हें ही यह काम सौंपना चाहिए। गांधी जी द्वारा डॉक्टर आंबेडकर जी को संविधान सभा की डाफटिंग कमेटी का चेयरमैन चुना गया। सवंधिान निर्मान समिति में सात सदस्यों की नियुक्ति की हुइ सात सदस्यों में से एक सज्जन ने त्याग पत्र दे दिया। उनके स्थान पर दुसरे सदस्य नियुक्त हुए और एक सदस्य का देहान्त हो गया। एक सदस्य भर्ती नही हुआ और दो दिल्ली के बाहर रहते थे। अवयवस्था होने के कारण सदस्य बैठक में नही आ सकते थे। जिस कारण आंबेडकर जी पर संविधान का का बहुत भार था। अंतत: सारा काम आंबेडकर जी को ही करना पड़ता था। स्वास्थ्य ठीक ना होने पर भी वे लगन से पूरी शक्ति लगा कर संविधान का काम करते थे। २५ नवंबर १९४९ को संविधान सभा में उन्होंने कहा था कि संविधान सफल होगा या फेल यह इस बात पर निर्भर करेगा कि यह कैसे लोगो के हाथ में रहेगा,कैसे इसका पालन किया जायेगा। किसी भी देश का संविधान अच्छा या बुरा नही होता। बुरे से बुरे लोग होगें, अच्छे से अच्छा संविधान होगा तो उसको भी वे असफल कर देगें इस लिए संसद,न्यायपालिका व कार्यपालिका तीनों मिलकर अच्छे लोगों की सहायता लेकर संविधान को सफल करेगें,यह अच्छे लोगो पर निर्भर करेगा।
२६ जनवरी ,१९५० को भारत का संविधान लागू हुआ। लेकिन उनके मन में एक सवाल था क्या हम पहले स्वतंत्र नही थे। क्या यह स्वतंत्रता स्थिर वह स्थायी रहेगी ?
भारत का गौरवशाली व शक्तिशाली भविष्य को ध्यान में रखकर बनाये गए संविधान की परिक्रमा करते हुए डॉक्टर भीमराव अबेंडकर जी के अंतिम भाषण का एक पैराग्राफ आपके सामने रखता हूं। हमको यह भी ध्यान में आएगा कि जीवन की विपरीत+परिस्थ्तिियों में भी उनका मन कितना उद्वार,कितना बड़ा था। चिंतन समाज को जोड़ने वाला था। वो कृतज्ञता से भरे थे। वे बोलते थे कि जब संविधान सभा में आया तब मुझे अपने बचपन से लेकर आज तक समाज में चल रही छुआछुत की बिमारी व जात-पात अस्पृश्यता के कारण अपनी माता द्वारा पढ़ने व स्कूल जाने के लिए मना करना याद था। आज भी मुझे जूतों के पास बैठ कर पढ़ना व कक्षा के बाहर अकेले बैठ कर पढ़ना और दीवार की तरफ मुंह कर के अपना भोजन करना याद था। आज भी मुझे एक अध्यापक का कार्य करते समय एक घड़े सं पानी पीना और फिर उस बात पर बहुत बड़ा बवाल होना और तो और मेरे ऑफिस के चपड़ासी द्वारा मेरे मेज पर फाइल को रोज जोर से फोड़ना तक मुझे याद था । इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही मैंने देश के संविधान का निर्माण किया।