नीरज कुमार जोशी : भगवान विट्ठलनाथ महाराज की पालकी यानि रथ यात्रा का महाराष्ट्र की संस्कृति में बहुत महत्व है। महाराष्ट्र में पुणे से शुरू होकर पंढरपुर तक करीब तीन सौ किलोमीटर तक पैदल चलने वाली इस रथ यात्रा में करीब सोलह दिन से ज्यादा का समय लगता है। प्रतिदिन बीस किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद यात्रा का पड़ाव आता है जहाँ पर भजन कीर्तन और श्रीमदभागवत् कथा का आयोजन किया जाता है । भगवान विट्ठलनाथ की मुख्य पालकी के लगभग साथ साथ ही मराठा समुदाय की हजारों अन्य पालकियां भी यात्रा का सौन्दर्य बढ़ाती हैं। हालांकि कीर्तन, भगवतकथा आदि सब मराठी भाषा में होता है लेकिन फिर भी जब कोई मराठी भाषा ना जानने वाला भी उस यात्रा में शामिल होगा तो यकीनन झूम उठेगा।
मैं उन पालकियों के साथ यात्रा में शामिल हुआ तो ऐसा लगा जैसे साक्षात वृन्दावन धाम पहुंचकर भगवान कान्हा और माँ राधा रानी के चरणों में समर्पित हो गया हूँ। चूंकि उत्तर भारत में हम भगवान कृष्ण और राधा रानी का पूजन करते हैं उन्हीं को महाराष्ट्र और कर्नाटक में भगवान विट्ठलनाथ महाराज और राधा रानी के नाम से जाना जाता है। भगवान विट्ठलनाथ महाराज की रथ यात्रा में पालकी में भगवान विट्ठलनाथ विराजमान रहते हैं और दो शक्तिशाली बैल इस पालकी को खींचते हैं। मुख्य पालकी के पीछे लाखों की संख्या में लोग राधे राधे नाम सुमिरन करते हुए और भगवान के संगीत में डूबे हुए मगन होकर चलते रहते हैं और जो छोटी छोटी समुदायों की पालकियां हैं उनमे भी हर समुदाय की पालकी को दो शक्तिशाली बैल खींचते हैं और हर समुदाय के पीछे करीब करीब पांच सौ से लेकर हजार लोग एकत्रित होते हैं जिनके नाश्ता और खाने आदि की व्यवस्था समाज के दानवीर लोग करते हैं।
जब मैंने ऐसे अन्न दान करने वाले लोगों से वार्तालाप किया तो उन्होंने कहा कि भाई अन्नदान सबसे बड़ा दान है और जो अन्न दान करता है उसके स्वयं के घर से दुःख और दरिद्रता का नाश होता है। मैं महाराष्ट्र की संस्कृति से बहुत प्रभावित हुआ हालांकि भारतीय समाज के कई लोग खासकर सेक्युलर वर्ग और आर्य समाजियों की नजर में ये सिर्फ ढकोसला हो लेकिन महाराष्ट्र के मुस्लिम समुदाय भी यात्रा का बहुत सम्मान करते हैं और इस बार तो इत्तेफाक से यात्रा के दौरान ही ईद का पर्व भी मनाया गया लेकिन यात्रा मार्ग में ही लोणंद के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बताया कि भगवान विट्ठलनाथ महाराज की पालकी की पवित्रता भंग न हो इसलिए हमने निर्णय लिया है कि जब तक भगवान विट्ठलनाथ महाराज की पालकी लोणंद से आगे न निकल जाय हम भी ईद साजरी नहीं करेंगे।
मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि ये हिन्दू मुस्लिम एकता का एक नया अध्याय है, एक नया आदर्श है। अपने अंतिम पड़ाव में जब भगवान विट्ठलनाथ महाराज की पालकी पन्डरपुर पहुंचती है तो प्रत्यदर्शियों के मुताबिक करीब ढाई से तीन करोड़ लोग या फिर उससे भी ज्यादा लोग भगवान विट्ठलनाथ महाराज की एक झलक पाने के लिए दो दो तीन तीन दिन तक लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं।