आम आदमी पार्टी की 28 मार्च की नेशनल कौंसिल बैठक का चित्रण/ मिनट्स, राष्ट्रिय परिषद सदस्य द्वरा साथियों के नाम:
आम आदमी पार्टी की 28 मार्च 2015 को हुई राष्ट्रीय परिषद् की बैठक से बहुत साथियों (उनमें से पंजाब से सांसद धर्मवीर गाँधी व दिल्ली के एक विधायक पंकज पुष्कर भी शामिल थे) ने बायकॉट किया | साथ ही एक साथी से मारपीट किये जाने, बैठक में परिषद् सदस्यों को बोलने का समय ना दिए जाने व लोकतंत्र की हत्या के आरोप लगे, दूसरी तरफ से इन सब बातों को मनगढ़ंत करार दिया गया |
इसी बीच मिडिया में सूत्रों के माध्यम से अनेक ख़बरें चली, जिससे राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में जो कुछ हुआ उसको लेकर धुंध गहरी हो गई है | मैंनें भी बैठक से बायकॉट किया था, जिसके चलते कुछ लोग पूछ रहे हैं कि आखिर बैठक में हुआ क्या था? यह वक्त मांग करता है कि 28 मार्च को हुई आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद् बैठक का आँखों देखा सही ब्यौरा आप सब से सांझा किया जाये |
हो सकता है, आपको बताया जाए कि बैठक का मेरा यह ब्यौरा सही नहीं है| यह शक तो हमेशा रहना ही चाहिए| किसी को भी देवता मान कर विश्वास करने की राजनीति ही तो व्यक्तिवाद को जन्म देती है, जिसे चुनौती देना वैकल्पिक राजनीति का कर्तव्य बनता है | इन हालातों मेंराष्ट्रिय परिषद् की बैठक में लगाए गए दोनों कैमरों के असल वीडियो जारी किया जाए ताकि वोलंटियर व जनता तक सच्चाई जा सके | यदि असल वीडियो जारी नहीं किया जाता तो आप समझ सकते हैं कि सच कौन बोल रहा है |
27 मार्च को पता चला कि दिल्ली के विधायकों को हिदायत दी गई है कि 28 मार्च को पार्टी की राष्ट्रिय परिषद् के लिए हर विधायक कम से कम 50 लोगों को लेकर आये | यह समझना मुश्किल था कि जब इस तरह से आये लोग बैठक में शामिल ही नहीं हो सकते थे तो उन्हें क्यों बुलाया जा रहा है?
बैठक का एजेंडा कई दिन पहले भेजा गया था मगर 27 मार्च को एजेंडा बदल कर भेजा गया | जबकि राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक हुई ही नहीं थी, एजेंडा बदल कर भेजते हुए यह भी नहीं बताया कि किस बैठक में ऐसी राय बनी | जनवरी 30, 2014 में हुई राष्ट्रिय परिषद् की बैठक के मिनट्स अभी तक भेजे ही नहीं गए थे, उम्मीद थी कि 28 मार्च की बैठक शुरू होने से पहले पिछले मीटिंग के मिनट्स दिए जायेंगें |
28 मार्च को मैं बैठक स्थल पर पहुंचा तो देखा कि वहां एक हजार के करीब लोग जमा थे, जिनमें से करीब दो सौ लोगों के हाथ में तख्तियां थी जिनमें योगेन्द्र व प्रशांत के खिलाफ नारे लिखे थे | तब समझ आया कि इन लोगों को क्यों बुलाया गया था | जब योगेन्द्र वहां पहुंचे करीब सौ लोगों ने उन्हें घेर लिया व योगेन्द्र यादव मुरादाबाद के नारे लगाने लगे | योगेन्द्र यादव उन्हीं के बीच खड़े रहकर मीडिया के सवालों के जवाब देते रहे |काफी देर बाद पुलिस के सिपाहियों ने योगेन्द्र यादव को निवेदन किया कि वे रेलिंग के अंदर के क्षेत्र में आ जाएँ |मगर जब दरवाजे पर पहुचे तो परिषद् के अनेक साथी लाइन में लगे थे अन्दर जाने के लिए, तब योगेन्द्र भी लाइन में खड़े हो गए व पुलिस कोशिश करती रही कि तुरंत अंदर आ जाएँ, मगर लाइन के अनुसार ही योगेन्द्र अंदर गए |
कलिस्ता रिजोर्ट के मेन गेट के बाहर मगर रेलिंग के अंदर के क्षेत्र में राष्ट्रीय परिषद् के कुछ साथी जिन्हें बुलाया गया था, मगर अंदर नहीं जाने दिया जा रहा था,वे साथी अपनी बात कहने की कोशिश कर रहे थे, मगर कोई सुनने वाला नहीं था | तब योगेन्द्र ने उन्हें बैठक में जाने देने की मांग रखी व वहीँ जमीन पर धरने पर बैठ गए | तब जाकर कहीं कुछ साथियों को जाने दिया मगर कुछ अन्य साथीयों को तरह तरह के कारण बता कर अंदर नहीं जाने दिया गया |
रिसोर्ट के मेन दरवाजे के अंदर जाते ही अंदर जाने का पास दिया गया. वहीँ फोन रख लिए गए | थोड़ा आगे बढे तो मेटल डिटेक्टर से गुजरना था, वहां जाकर पेन भी रखवा लिए गए | सभागार से पहले जुते उतरवा दिए गए | वहीँ आगे बढ़ने पर कुछ सदस्यों को अलग से एक कमरे में ले जाया जा रहा था |
बैठक शुरू हुई तो दिल्ली के सभी विधायकों को ‘हीरा’ बताते हुए परिषद् सदस्यों के सामने लाया गया,फिर सांसदों को भी बुलाया गया | यह स्पष्ट नहीं किया गया कि विधायक सभा में आमंत्रित सदस्य भर हैं | तब मनीष सिसोदिया ने बैठक का संचालन शुरू किया व संयोजक अरविन्द केजरीवाल को मंच पर अध्यक्षता के लिए बुलाया, साथ ही पी.ऐ.सी के अन्य सदस्यों को भी मंच पर बुलाया | एजेंडा नम्बर एक पर संयोजक का भाषण था | तो पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जी को भाषण के लिए बुलाया गया | अरविन्द ने अपना भाषण शुरू किया जो करीब 60 मिनट्स तक चला |जिसका संपादित विडिओ आपने यू-ट्यूब पर सुना ही होगा | अरविन्द ने शुरू में कहा कि उन्हें साथियों ने पूरे भाषण को लाइव जनता को सुनाने के लिए कहा था, मगर मैंने (अरविन्द) ने कहा कि घर के अंदर की बात है, जिसे घर के अंदर ही रहना चाहिए| मगर बाद में संपादित वीडियो जारी कर दिया, जिसमें से वह “घर की बात घर में” रहने वाली बात हटा दी गई है|
संयोजक ने पहले दस मिनट बतौर मुख्यमंत्री सरकार की उपलब्धियां गिनाई, उसके बाद एक दम प्रशांत, योगेन्द्र व शान्ति भूषण के खिलाफ एक शिकायतकर्ता की तरह (वह सब कहा जो पहले ही दिलीप पाण्डेय के नाम से मिडिया में आ चुके थे) आरोप जड़ते हुए, जज की तरह आरोपों को सच बताते हुए (बिना किसी जांच के व बिना प्रशांत, योगेन्द्र या शांति भूषण को सुनवाई का मौक़ा दिए) फैसला सुनाते चले गए | (अरविन्द ने जो कहा उसके गुणदोष पर अलग अलग से लिखने का प्लान है)|इसी तरह अपने आरोप व फैसला रखते हुए अरविन्द ने कहा कि एक सम्मानित व वरिष्ठ साथी ने कहा कि किरण बेदी मुख्यमंत्री के लिए अरविन्द से बेहतर उम्मीदवार हैं| सभा में मौजूद लोगों को उकसाते हुए कहा कि क्या ऐसे व्यक्ति को पार्टी में रहना चाहिए?फिर से कहा कि आप बताओ क्या ऐसे व्यक्ति को पार्टी में रखा जाये? इस पर सभा में से कुछ लोगों (विशेष कर मौजूद विधायकों) ने हंगामा शुरू कर दिया, नारे लगाते वे लोग शान्ति जी की तरफ बढ़ने लगे | ये लोग ललकार रहे थे कि इन गद्दारों को सभा से बाहर निकालो | इस समय अरविन्द माइक लेकर चुपचाप खड़े सब देख रहे थे (सिवाय दो चार बार चुप होने के लिए कहने के)| मैंने (राजीव गोदारा) खड़े होकर अरविन्द को कहा कि यह सब क्या हो रहा है, इस हंगामे को बंद करवाइए, आप अध्यक्ष हैं सभा के | मगर अरविन्द चुप थे| तब संजय सिंह ने कहा कि यदि शान्ति नहीं बनाई गई तो हम बाहर चलें जायेंगें | करीब सात मिनट के बाद बैठक की कार्यवाही फिर से शुरू हुई (पार्टी द्वारा जारी किये गए विडिओ में इस सात मिनट में से सिर्फ 25 सेकण्ड का वीडियो दिखाया गया है )| अरविन्द ने अपनी बात उसी अंदाज में जारी रखी| अरविन्द नेफैसला सुनाते हुए कहा कि मैं तो जीतने के लिए आया हूँ, जो जीत के साथ आना चाहते हैं, मेरे साथ आ जाएँ, जिनको हार के साथ जाना है, वे उस तरफ चले जाएँ | इसके बाद कहा कि आप उन्हें (प्रन्शत–योगेन्द्र) को चुन लें या मुझे चुन लें (इस के बाद फिर से विधायकों सहित परिषद् सदस्यों के एक समूह ने हल्ला शुरू कर दिया, कोई कह रहा था हम आपके साथ हैं, यानि अरविन्द ने इस तरह से बिना परिचर्चा के व बिना वोट के माहौल को अराजकता की चरम सीमा पर पहुंचा दिया, इस हालत में व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश भी नहीं की गई) | मैं (राजीव गोदारा) भी निवेदन कर रहा था कि एक तरफा फैसला कैसे कर सकते हैं, चर्चा करवाई जाये, दूसरे पक्ष को सुना जाये| तभी रमजान चौधरी जी ने भी अरविन्द को कहा कि यह सब क्या हो रहा है, इसे बंद करवाइए | यह आवाज मैंने सुनी | उसके तुरंत बाद ही किसी ने जोर से कहा कि रमजान को वे लोग बाहर ले गए | मैं (राजीव गोदारा) बाहर की तरफ भागा, तब नवीन हॉल के बाहर दिखे जो मुझे देखते ही पीछे के दरवाजे से वापिस अंदर चले गए | तभी मैंने सुना कि सभागार के दरवाजे के बाएं तरफ से रमजान की आवाज आई कि मुझे मार क्यों रहे हो |मुझे जूते तो पहनने दो | तभी मैंने देखा तो रमजान को 8 -10 लोगों ने घेर रखा था| तब मैं चिलाया कि छोडिये रमजान को| उसके साथ ही हॉल से संजीव वालिया, योगेन्द्र यादव भी बाहर आ गए व सभी ने रमजान को छोड़ देने के लिए कहा | अंदर जाकर हमने सवाल उठाया कि यह मारपीट किस तरह से हो रही है, ऐसे बाउंसर्स नुमा लोगों को यहाँ से हटाइये | विधायक कर्नल सहरावत ने भी आवाज उठाई, योगेन्द्र यादव ने भी मंच के पास जाकर अरविन्द से कहा कि यह सब आपके सामने हो रहा और आप चुप हैं | क्या यही आपका कर्तव्य है?इसी समय संजीव वालिया व मुझे (राजीव गोदारा) कुछ मुस्टंडे किस्म के लोगों ने पकड़ लिया व खड़े होकर पॉइंट ऑफ आर्डर रखने की भी इजाजत नहीं दी, वालिया जी को कुछ बाउंसर्स ने धक्के भी मारे | रमजान ने भी पिटाई किए जाने कि शिकायत की, इसी दौरान संजय सिंह ने रमजान के पास जाकर माफ़ी मांगी व फिर माइक पर जाकर कहा कि यह धक्का मुक्की बंद की जाये | इसके बाद ही हंगामा करने वाले लोग शांत हो गए | (यह शोर शराबा व सारा घटना क्रम काफी देर तक चलता रहा, मगर जारी की संपादित विडिओ में बहुत छोटा हिस्सा ही दिखाया गया है | साथ ही एक दूसरा कैमरा जिसका फेस श्रोताओं की तरफ था, उसके असल फुटेज जारी नहीं किये गए हैं, क्योंकि वह सारे मामले की असलयीत सामने ला सकता है, (यह हिस्सा भी जारी किये विडिओ से निकाल दिया गया है)| इसके बाद कहा कि मुझे किसी जरूरी बैठक की बजह से अभी जाना है | अब सभा की अध्यक्षता गोपाल राय करेंगें | अध्यक्षता करने का फैसला सभा पर नहीं छोड़ा गया | बल्कि उन गोपाल राय द्वारा अध्यक्षता करवाने का फैसला सुना दिया गया,जो कतई निष्पक्ष नहीं थे , क्योंकि गोपाल राय पहले ही प्रशांत व योगेन्द्र के खिलाफ ब्यान दे चुके थे |
जब अरविन्द जाने लगे तो बहुत से साथियों (परिषद् सदस्यों) ने आग्रह करना चाहा कि अरविन्द दूसरा पक्ष भी सुनें व सदस्यों को सवालों के जवाब दें|मगर वहां तैनात किये गए मुस्टंडों ने मुझे (राजीव गोदारा) व अन्य साथियों को उठ कर अपनी बात कहने ही नहीं दी | बहुत से साथियों को पकड़ कर उठने से रोका गया, पॉइंट ऑफ़ ऑर्डर रखने का भी मौक़ा नहीं दिया गया | मगर योगेन्द्र यादव ने तब तक अध्यक्षता कर रहे अरविन्द से कहा कि आप सयोंजक के भाषण (जो असल में शिकायत व फैसला ही था) पर चर्चा करवाई जाये, जिन पर आरोप लगा कर फैसला सुनाते हुए उन्हें दोषी बता दिया गया है, उनकी बात भी सुनी जाये व अरविन्द सवालों के जवाब भी दे | मगर अरविन्द सभा में बाउंसर्स की गुंडागर्दी (जो परिषद् सदस्यों को बात रखने की छूट नहीं दे रहे थे) को रोकने की बजाय सभा कक्ष से चले गए |
अरविन्द के बाद माइक सिसोदिया जी के हाथ में था, वह घोषणा कर रहे थे कि गोपाल राय अध्यक्षता करेंगें | पॉइंट ऑफ़ आर्डर रखने की कोशिश अजीत झा व अन्य साथियों ने रखने की कोशिश की मगर कुछ नहीं सुना गया | इस तरह उन्हीं गोपाल राय को अध्यक्ष बना दिया गया, जिनका व्यवहार पहले से प्रशांत व योगेन्द्र यादव के प्रति पक्षपाती रहा |
बिना अध्यक्ष की अनुमति लिए मनीष सिसोदिया ने माइक से बोलना जारी रखते हुए कहा कि प्रशांत,योगेन्द्र, अजीत झा व आनंद कुमार के खिलाफ 167 लोगों ने प्रस्ताव दिया है कि इन्हें राष्ट्रिय कार्यकारिणी से हटाया जाये | जिस पर फिर से पास पास का शोर शुरू हो गया, जिसमें विधायकों की भी आवाजे थी (विधायक जिन्हें राष्ट्रिय परिषद् में वोट का अधिकार भी नहीं था)|बिना वोट के इस तरह से उक्त प्रस्ताव को पास हुआ घोषित कर दिया गया | अनेक साथियों ने व्यवस्था का प्रश्न उठाना चाहा, मगर मुझ (राजीव गोदारा) सहित अनेक सदस्यों को बाउंसर्स ने घेर लिया व अपनी बात नहीं कहने दी | प्रश्न उठा कर परिचर्चा की मांग करने वाले व प्रस्ताव पर गुप्त मतदान करवाने वाले सदस्यों की मांग को अनसुना कर दिया गया | योगेन्द्र यादव ने मूक बैठे सभा अध्यक्ष को कहा कि आप दखल दें व प्रस्ताव को उचित तरीके से रख कर चर्चा करवाएं व गुप्त मतदान भी करवाएं | मगर मोम की मूर्ती की तरह चुप बैठे सभा अध्यक्ष ने कहा कि लिख कर दे दीजिये,इस पर योगेन्द्र ने कहा कि आप सभा की कार्यवाही को रोकिये ताकि हम लिख कर एतराज व अपनी मांग रख सकें | मगर अध्यक्ष ने एक बात भी नहीं सुनी, तब अलोकतांत्रिक तरीके से चल रही सभा की कार्यवाही का बायकॉट करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था, इसलिए अनेक सदस्यों ने बायकॉट किया, जिनमें से मैं भी एक था | राष्ट्रिय परिषद् के करीब 60 सदस्यों ने सभा का बायकॉट किया जिसमें पंजाब के पटियाला से सांसद डा. धर्मवीर गाँधी व दिल्ली के तिमारपुर विधान सभा क्षेत्र से विधायक पंकज पुष्कर ने भी बायकॉट किया|
सभा कक्ष से बाहर आने के बाद पीछे से भगवंत मान व अलका लाम्बा आये व रमजान चौधरी को बाहर ना जाने के लिए दवाब बनाने लगे| उनका रमजान भाई से कहना था कि आप परिसर में डाक्टर को अपनी चोट दिखा लें, बाहर ना जाएँ वरना मिडिया खबर को दिखाएगा | इस जिद्द को लेकर बहुत देर तक उस ई-रिक्शा को रोक कर रखा जिसमें रमजान भाई व शांति भूषण जी बैठे थे | जब मैंने (राजीव गोदारा) अलका लांबा से रिक्शा रोकने व रमजान को रोकने का दबाव बनाने की बजाय सभा में हुई गुंडागर्दी के खिलाफ बोलने की बात कही तो सांसद भगवंत मान बीच में आ गए | मैंने उन्हें भी कहा कि भगवंत मान जी भगत सिंह की पगड़ी पहनते हो कुछ तो उसकी लाज रखो| हिम्मत दिखाओ व सभा में हुई लोकतंत्र की ह्त्या के खिलाफ आवाज उठाओ | यह भी पूछा कि पंजाब की जनता को क्या जवाब दोगे कि लोकतंत्र व स्वराज की निमर्मता से ह्त्या हो रही थी, तब तुम चुप क्यों थे? क्या आपको मुख्यमंत्री का सपना पालने के लिए व्यक्ति विशेष की पूजा करना इतना जंचने लगा है? यह भी कहा कि तुम चाहे प्रशांत व योगेन्द्र के साथ मत जाओ मगर सभा कक्ष में जो कुछ हुआ, उसके खिलाफ तो आवाज उठाओ|
सभा में किन लोगों को विशेष तौर से आमंत्रित किया गया, किस ने यह फैसला लिया, यह नहीं बताया गया | राष्ट्रीय परिषद् के उन लोगों की लिस्ट भी नहीं जारी की गई जिन्हें वोट देने का अधिकार था | सभा कक्ष में वोटर व वोट ना दे सकने वालों की पहचान भी नहीं की जा सकती थी | इसलिए शोर मचाते हुए विधायक भी जो आमंत्रित सदस्य भर थे, सभा में अपनी राय थोप रहे थे, जबकी परिषद् के सदस्य अपनी बात नहीं कह पाए |