विवेक कुमार , नई दिल्ली : हम अकसर आपसे कहते हैं कि खबर वही होती है जिसे दबाने की कोशिश की जाए लेकिन ज़ी न्यूज़ ऐसी दबी हुई खबरों को जगज़ाहिर करने का बीड़ा उठाता है। हमारे पास पश्चिम बंगाल के मालदा से एक ऐसी ही खबर आई है जिसे हमारे देश के तमाम न्यूज़ चैनल्स में दबाने की कोशिश की गई लेकिन ज़ी न्यूज़ पर जनहित से जुड़ी कोई भी खबर दबाई नहीं जा सकती। इसलिए अब हम मालदा में भड़की नफरत की आग वाली खबर के बारे में आपको बताते हैं।
हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी द्वारा पैगंबर मोहम्मद के बारे में की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध में पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में हिंसा भड़क उठी। कमलेश तिवारी ने एक महीने पहले ये टिप्पणी की थी जिसके खिलाफ गुस्सा जताने के लिए रविवार को हज़ारों मुसलमानों ने मालदा के शुजापुर इलाके में विरोध रैली निकाली।
कमलेश तिवारी की फांसी की मांग कर रहे लोगों की बेकाबू भीड़ नेशनल हाइवे नंबर 34 पर उतर आई और धीरे-धीरे भीड़ हिंसक हो गई। भीड़ ने एक बस पर हमला कर दिया। बस के यात्री बहुत मुश्किल से किसी तरह बचकर निकल पाए। इसी बीच भीड़ ने बस को आग लगा दी। इसी दौरान बीएसएफ की एक गाड़ी में भी आग लगा दी गई। भीड़ ने दो दर्जन से ज्यादा गाड़ियों को फूंक दिया जिनमें पुलिस की गाड़ियां भी शामिल हैं। इसके बाद भीड़ ने इकट्ठा होकर कालियाचक पुलिस स्टेशन पर भी हमला कर दिया। लोगों ने थाने में जमकर तोड़फोड़ की और गोलियां चलाईं। लोगों ने पुलिसवालों की पिटाई की। बताया जा रहा है कि भीड़ ने करीब 25 घरों में लूटपाट भी की जिसके बाद मालदा जिले में दुकानें बंद करनी पड़ीं और पूरे इलाके में धारा 144 लगा दी गई। पुलिस के मुताबिक हालात काबू में करने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स की टीमों को हिंसाग्रस्त इलाके में तैनात किया गया है। मालदा ज़िले में अभी भी तनाव बरकरार है।
दरअसल ये मामला उस वक्त शुरु हुआ जब उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान ने 29 नवंबर को कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। जानकारी के मुताबिक इसी की प्रतिक्रिया में हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी ने भी पैगंबर मोहम्मद के प्रति कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी।
कुछ दिनों तक कमलेश तिवारी का बयान सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होता रहा। कमलेश तिवारी की कथित टिप्पणी पर पहली प्रतिक्रिया 2 दिसंबर को सहारनपुर में हुई जहां देवबंद में मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन किया। मुसलमानों के गुस्से को देखते हुए कमलेश तिवारी को 2 दिसंबर को ही गिरफ्तार कर लिया गया और वो फिलहाल नेशनल सेक्युरिटी एक्ट यानी एनएसए के तहत लखनऊ जेल में बंद हैं। इसके अलावा कमलेश तिवारी पर दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने के आरोप में आईपीसी की धारा 153ए और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में धारा 295A लगाई गई है।
शांति कायम रखने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ मुलाकात भी की थी। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि कमलेश तिवारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन उत्तर प्रदेश से शुरू हुई नफरत की आग पश्चिम बंगाल तक पहुंच गई और हज़ारों लोगों की भीड़ ने धार्मिक उन्माद में आकर हिंसा की हदें पार कर दीं। अब सवाल ये उठता है कि अगर कमलेश तिवारी पर तमाम धाराएं लगाकर उसे 2 दिसंबर 2015 को ही लखनऊ जेल में बंद कर दिया गया था तो फिर इसके एक महीने बाद यानी 3 जनवरी 2016 को पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले में इसके विरोध में हिंसा क्यों हुई? क्या इसके पीछे किसी की सुनियोजित साज़िश है? आखिर वो कौन से लोग हैं जो देश में धार्मिक सौहार्द के माहौल को खराब करना चाहते हैं?
ये हालात तब हैं जब कमलेश तिवारी जेल में बंद हैं यानी मालदा में हिंसा करने वाले लोगों के मन में कानून के प्रति कोई सम्मान नहीं है और वो सिर्फ अपनी बदले की आग ठंडी करने के लिए गिरफ़्तारी के एक महीने बाद हिंसक प्रदर्शन कर रहे थे। वैसे मालदा में फैली नफरत की आग ने देश के कथित बुद्धिजीवी वर्ग के दोहरे मापदंडों को भी जगज़ाहिर कर दिया है जो लोग दादरी में हुई अखलाक नामक व्यक्ति की हत्या के विरोध में अपने अवॉर्ड लौटाने के लिए कतार में खड़े हो गए थे और देश में असहनशीलता के माहौल पर हंगामा मचा रहे थे जिन्हें देश के माहौल में सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी वो अब मालदा में हुई घटना पर चुप्पी साधे हुए हैं।
मालदा की ये घटना असहनशीलता का जीता-जागता उदाहरण है और दादरी की घटना से कम गंभीर नहीं है लेकिन इस ख़बर पर कोई असहनशीलता की बात नहीं कर रहा है न ही कोई अवॉर्ड वापस कर रहा है और न ही मीडिया इस ख़बर को दिखा रहा है। लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि ज़ी न्यूज़ पर कोई भी ख़बर दबाई नहीं जा सकती। इसलिए हमने आज मालदा में भड़की हिंसा से जुड़े तमाम तथ्य आपके सामने रखे। आगे भी हमारी नज़र इस मामले पर बनी रहेगी। हमें लगता है कि किसी भी ख़बर को सिर्फ धर्म के चश्में से देखना ठीक नहीं है। देश के तमाम मीडिया हाउसेज को ख़बरों को समझने के लिए अपना धार्मिक चश्मा उतारकर फेंकने की ज़रूरत है।